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तक धिनाधिनः हम तो छू लेंगे आसमां

रविवार का मुझे बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। सप्ताह में एक छुट्टी तो सबको चाहिए, मुझे भी। रविवार का दिन मेरे लिए इसलिए भी अहम है, क्योंकि इस दिन तक धिनाधिन का सफर कुछ आगे बढ़ता है और नये बच्चों से मिलने का मौका मिलता है। ये वो बच्चे हैं जो खुशहाली और समृद्धि का सपना पूरा करने के लिए आगे बढ़ और पढ़ रहे हैं। उनकी बात अपनी ही खुशहाली और समृद्धि तक ही सीमित नहीं है बल्कि वो पूरे देश और समाज की तरक्की की बात करते हैं, क्योंकि ऐसा उनको रोजाना बताया और सिखाया जाता है। शुरुआत में उनको तो यह भी नहीं पता था कि हमें करना क्या है। उनके सपनों को यथार्थ की ओर ले जाने का काम बड़ी मशक्कत से किया जा रहा है- अपने सपने संस्था के साथ।

 रविवार 23 दिसंबर 2018 को मुझे अपने सपने संस्था पहुंचने का मौका मिला। नियो विजन संस्था के गजेंद्र रमोला जी ने मुझे अपने सपने संस्था के बारे में बताया था। अपने सपने के अध्यक्ष अरुण कुमार यादव से बातचीत में सुबह दस बजे का समय तय हुआ। मुझे बताया गया था कि माह के चौथे रविवार को अपने सपने में पढ़ने वाले बच्चों का जन्मदिन मनाया जाता है। उस माह में संस्था के जितने भी बच्चों का जन्मदिन है उन सभी का। डोईवाला से सुबह साढ़े आठ बजे मैं अपने बेटे सक्षम के साथ सुभाषनगर की ओर रवाना हुआ, जो लगभग 30 किमी. है। सक्षम ने तक धिनाधिन की फोटोग्राफी औऱ वीडियो बनाने की जिम्मेदारी ली है। दूधली घाटी होते हुए कारगी चौक औऱ फिर आईएसबीटी के सामने से सुभाषनगर पहुंचे।

मुझे दूधली क्षेत्र बचपन से ही काफी पसंद है। दूधली और इससे सटे हुए गांवों के बीच से होकर सीधे देहरादून जा सकते हैं। सड़क भी ठीक है और ट्रैफिक भी ज्यादा नहीं है। यदि आपके पास समय है तो इस रास्ते से सीधे कारगी चौक पहुंच सकते हैं। हालांकि बड़कली के आसपास सड़क कुछ किमी. खराब है और इस रोड पर स्पीड ब्रेकर भी बहुत हैं। शायद आबादी के वजह से। एक तरफ जंगल और दूसरी ओर सुसुवा नदी, जो आगे चलकर गंगा में मिलती है का नजारा मुझे तो लुभाता है। सुसुवा प्रदूषित हो गई है। एक दिन सुसुवा के प्रति स्थानीय लोगों खासकर बच्चों को आकर्षित करने के लिए तक धिनाधिन का विचार है।

खैर फिर से अपने सपने संस्था के बीच चलते हैं। देहरादून सहारनपुर रोड की बाई ओर कुछ आगे चलकर संस्था के दफ्तर पहुंचा। वहां पहले से ही बच्चे आ रहे थे।  छोटे बच्चों को लेकर अभिभावक पहुंच रहे थे। यादव जी से मुलाकात हुई। चार वर्ष से यादव जी और उनकी पत्नी ने इस पहल का आगाज किया था। ओगल भट्टा क्षेत्र के बच्चे बड़ी संख्या में यहां आते हैं। सभी बच्चे अनुशासन में दिखाई दिए। ये वो बच्चे हैं, जो सपनों को हकीकत में बदलने की कोशिश कर रहे हैं, अरुण कुमार यादव और उनके परिवार के साथ। अरूण जी संस्था के अध्यक्ष हैं। उनके निवास पर ही एलकेजी से लेकर दस तक के 120 बच्चे शाम तीन से छह बजे तक रोजाना पढ़ने आते हैं। यहां अधिकतर बच्चों की कहानियां आपको आसमां छूने के लिए प्रेरित करती हैं।

दस बजे तक छत पर धूप ने तक धिनाधिन के पांचवे संस्करण को आगे बढ़ाने में भरपूर साथ दिया। बच्चों ने दरी बिछाई थी और कुर्सियां लगाई थीं। इनमें से वो बच्चे भी हैं, जिनके लिए जीने का मतलब सिर्फ और सिर्फ रोटी पानी की तलाश में सड़कों पर भटकना था। अव वो स्कूल जा रहे हैं और अच्छा प्रयास कर रहे हैं। नंबरों में ही नहीं बल्कि अभिनव गतिविधियों में भी सबसे आगे हैं। मैंने बच्चों को अपनी डायरी देकर कहा, अपना नाम और क्लास लिखिए। बच्चों के बीच में से किसी ने सवाल किया, सर इंगलिश में या हिन्दी में। मैंने कहा जिस भी भाषा में, आपकी इच्छा है। यहां एलकेजी तक के बच्चों ने भी अपना नाम इंगलिश में लिखा। कक्षा तीन की मुस्कान ने लिखा माई नेम इज मुस्कान। आई स्टडी इन क्लास थ्री।

मुस्कान के बाद किरन ने भी इसी तरह अपना परिचय दिया। मुझे अच्छा लगा, मैं चाहता था कि सभी बच्चे ऐसे ही अपना परिचय दें। लेकिन सौ बच्चों के नाम लिखने में काफी समय लगता, इसलिए मैंने केवल नाम और क्लास लिखने को कहा। मैंने महसूस किया कि ये बच्चे एक दूसरे से प्रभावित होकर आगे बढ़ रहे हैं, वो भी सकारात्मक दिशा में। ऐसा सोचकर और देखकर बहुत अच्छा लगता है।

हमने बच्चों को बताया, जीव और वन से जीवन बना है। वन और जीव मिलकर ही जीवन को आगे बढ़ाते हैं। जहां बड़ी संख्या में पेड़ होते हैं, वह स्थान वन कहलाता है। इसका मतलब यह हुआ कि पेड़ हैं तो हम हैं। हमने बच्चों से सवाल किया, पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता। बच्चों ने कहा, उनकी जड़ें होती हैं। जड़ों को मिट्टी ने कसकर पकड़ा है। बच्चों को सोचने का समय दिया गया। एक बेटी ने कहा, अगर पेड़ घूमने चला गया तो हमें आक्सीजन कौन देगा। कुल मिलाकर कुछ देर की दिमागी कसरत में बच्चे यथार्थ के करीब पहुंच गए।

हमारा मकसद भी कल्पनाओं के जरिये यथार्थ तक पहुंचना है। अगर पेड़ घूमने जाता तो क्या होता। इसका भी जवाब यही मिला कि हमें आक्सीजन कौन देता। पक्षियों के बच्चों को कौन संभालता। छाया कौन देता। फल कैसे मिलते। लकड़ियां कौन देता। फिर तो बच्चों ने वो सब कुछ बताया, जो इंसानों को पेड़ों से मिलता है। बच्चों ने माना और जाना कि पेड़ हमारे मित्र हैं और मित्रों के साथ स्नेह के साथ रहा जाता है। उनको कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए।

तक धिनाधिन में पेड़ घूमने क्यों नहीं जाता शीर्षक वाली स्वरचित कहानी सुनाई गई। जिसमें कहा गया कि पेड़ जीवों पर परोपकार के लिए घूमने नहीं जाता। जबकि पहले वो घूमने जाता था, जहां उसकी इच्छा होती थी। आज वह अपनी स्वतंत्रता का त्याग करके प्रकृति के निर्देशों का पालन कर रहा है। वह हमें जड़ों से जुड़कर रहने, अनुशासन में रहने और प्रकृति के निर्देशों का पालन करने का पाठ पढ़ाता है। बच्चों कुमकुम, महक, अवंतिका, अजय, भरत, मुस्कान, एंजिल ने कविताएं और छोटी छोटी कहानियां सुनाईं। बच्चों ने कहानियों में छिपे संदेश पर भी बात की।

  

हमने मुझसे दोस्ती करो और साहसी नन्हें पौधे की कहानी को साझा किया। एंजिल ने कितने सुंदर फूल कमल के… कविता सुनाई। भरत ने सेब और आम के पेड़ की कहानी सुनाई। बच्चों ने तालियां बजाकर कहानियों को स्वागत किया। यादव जी ने कहानी क्लब बनाने की बात कही। बच्चे आज के तक धिनाधिन कार्यक्रम को अपने शब्दों में लिखकर अपने शिक्षकों को दिखाएंगे। यहां बद्रीविशाल जी और नीतू गुप्ता जी बच्चों को निशुल्क पढ़ाते हैं। बच्चों ने विषयों को रटने की बजाय समझकर लिखने का वादा किया। बच्चों ने अपने साथियों प्रिंस, विनायक, अंश शर्मा, अंकिता, सुनयना, आयुष, कुमकुम का बर्थडे मनाया।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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