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एक किसान ने सुनाई, बुरी तरह झुलस गए आलू की कहानी

इस बार आधी फसल भी नहीं मिल पाएगी किसानों को, कुड़कावाला गांव में आलू का बड़ा नुकसान

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

देहरादून जिले के डोईवाला ब्लाक का कुड़कावाला गांव, जिसकी पहचान खेती किसानी में होती है, वो भी खासकर आलू की खेती के लिए। अब यह खेती सिमटकर लगभग आधी रह गई। आलू की अधिकतर फसल झुलसा रोग का शिकार हो गई। पैदावार आधी होने की आशंका है। कुड़कावाला के ही चमन लाल, जिन्होंने लगभग एक बीघा खेत से आलू निकाला है, बताते हैं, 50-60 की जगह दस कट्टे ही मिल पाए। एक और जानकारी मिली है, कुड़कावाला में कुछ खेत ऐसे भी हैं, जहां नुकसान कम रहा है, यहां उत्पादन लगभग पूरा मिलने की उम्मीद बताई जा रही है।

हमने, कुड़कावाला में आलू के प्रमुख उत्पादक 50 वर्षीय सुभाष चंद से बात की। उन्होंने लगभग 16 बीघा में दो प्रजातियां पुखराज और पुष्कर को बोया है। अक्तूबर में बोई फसल को फरवरी में निकाला जाएगा। सुभाष हमें अपने तीन खेत दिखाते हैं, जिनमें दस बीघा, दो बीघा और चार बीघा में आलू है। बताते हैं, दस बीघा खेत में बड़ी संख्या में पौधे झुलस गए, पांच बार दवाइयों का स्प्रे करने के बाद भी। हर जरूरी उपाय किया, पर पौधों को नहीं बचा पाए। इस खेत से उम्मीद के विपरीत आधा उत्पादन ही मिल पाएगा।

देहरादून के डोईवाला क्षेत्र के गांव कुड़कावाला में आलू का खेत, जो पूरी तरह रोगग्रस्त है। फोटो- राजेश पांडेय

सुभाष चंद, एक ही खेत में उगे स्वस्थ और रोगी पौधों में उत्पादन का अंतर समझाते हैं। वो, पहले रोगग्रस्त पौधे से उत्पादित आलू निकालकर दिखाते हैं, जिनकी संख्या कम है और आकार में भी छोटे हैं। वहीं, स्वस्थ पौधे से उत्पादित आलू को मिट्टी से निकालकर दिखाते हैं, जिनकी संख्या ज्यादा है और वो आकार में भी बड़े हैं। सुभाष कहते हैं, अब आपको इस खेत को देखकर उत्पादन का अंदाजा लग गया होगा।

देहरादून के डोईवाला क्षेत्र के गांव कुड़कावाला में आलू के रोगग्रस्त पौधे की फसल दिखाते हुए किसान सुभाष चंद। इस बार आलू की फसल को झुलसा रोग से काफी नुकसान पहुंचा है। फोटो- राजेश पांडेय

लगभग 30-35 साल से आलू की खेती कर रहे सुभाष का कहना है, “इस साल नुकसान ज्यादा होने की आशंका है। पर, हम किसान हैं, निराश नहीं होते। क्योंकि खेती में यह सबकुछ चलता रहता है।”

बताते हैं, “आलू का इंश्योरेंस होता है, इस बार हमने नहीं कराया। खेत में खराब हो चुकी फसल को देखने के बाद भी इंश्योरेंस नहीं मिलता। इंश्योरेंस वालों का कहना होता है, नुकसान मौसम पर आधारित होता है। वो अपनी मशीन से मौसम का हाल चेक करते हैं। पर, हम किसान मौके पर रहते हैं, फसल को उपजाते हैं, कोई कमी नहीं छोड़ते, हर तरह का उपचार करते हैं, पर रोग की रोकथाम एक सीमा तक ही संभव हो पाती है। इस बार कुछ ज्यादा ही नुकसान है।”

देहरादून के डोईवाला क्षेत्र के गांवों के खेतों में प्लाटिंग हो रही है। इससे कृषि एवं उद्यान का क्षेत्रफल कम हो रहा है। फोटो- राजेश पांडेय

आलू की खेती में लागत और फायदे पर उनका कहना है, “आलू उगाने में मेहनत बहुत है, इसलिए गांव में धीरे-धीरे आलू का रकबा कम होता जा रहा है। इस समय, कुड़कावाला में लगभग ढाई सौ बीघा में आलू लगा होगा, जबकि पहले इसकी दोगुनी खेती होती थी। यह हमारी प्रमुख फसल होती थी, पर अब गन्ना ज्यादा उगाया जा रहा है। गन्ने में उतनी मेहनत नहीं है। वैसे भी अब खेत कम हो रहे हैं। खेती करना कठिन है, खेत बेचना आसान है। बताते हैं, आलू में खेत को तैयार करने से लेकर बुवाई, दवाई और इसको उखाड़ने सहित कई काम होते हैं, जिन पर पैसा खर्च होता है। हम बहुत ज्यादा हिसाब नहीं लगाते।”

डोईवाला क्षेत्र के गांव कुड़कावाला में किसान सुभाष चंद का आलू का खेत। इस बार आलू की फसल को झुलसा रोग से काफी नुकसान पहुंचा है। फोटो- राजेश पांडेय

सुभाष बताते हैं, “उनको एक बीघा में, लगभग 75 कट्टे आलू मिलने थे, जो घटकर लगभग 30-35 कट्टे रह जाएंगे। इस तरह दो एकड़ के खेत यानी दस बीघा में लगभग एक लाख रुपये का नुकसान समझो। पांच महीने की इस फसल में हर माह लगभग 20 हजार रुपये का नुकसान। पर, हम नुकसान से नहीं घबराते। इस बार नहीं, तो अगली बार अच्छी फसल मिलेगी।”

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उन्होंंने लगभग 300 मीटर फासले पर आलू के दो और खेत दिखाए। इसमें दो बीघा में खड़ा आलू भी फरवरी में निकाला जाना है, पर इस खेत को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा। सुभाष के अनुसार, “इस खेत पर बीमारी ने असर तो किया था, पर हमने चार स्प्रे करके इस पर कंट्रोल कर लिया था।” उन्होंने एक पौधे के आलू निकालकर दिखाए, जो साइज में बड़े थे और इनकी संख्या भी सात-आठ थी। सुभाष बताते हैं, “इस खेत से उनकी पूरी फसल यानी लगभग डेढ़ सौ कट्टे आलू मिल जाएगा। पास ही, एक अन्य खेत है, जिसमें चार बीघा में अभी कुछ दिन पहले ही आलू बोया गया है। बताते हैं, यह पछेती है यानी बाद में बोया जाने वाला। इस फसल को अप्रैल में निकाल लेंगे।”

देहरादून के डोईवाला क्षेत्र के गांव कुड़कावाला में किसान चमन लाल, जिनके एक बीघा खेत में इस बार 50 से 60 की जगह मात्र दस कट्टा आलू ही मिला। फोटो- राजेश पांडेय

वहीं, खेत से घास लेकर जा रहे किसान चमन लाल बताते हैं, उनके “एक बीघा खेत में मात्र दस कट्टे निकले। ब्लॉक वाले (उद्यान विभाग) से अधिकारी आए थे। स्प्रे भी खूब किया था, पर अब क्या करें। किसान को यह सब झेलने की आदत है। हम निराश नहीं होते और न ही खेती में नुकसान से घबराते हैं।”

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वहीं, उद्यान विभाग के सर्वे के अनुसार, “डोईवाला ब्लाक में आलू की लगभग 70 प्रतिशत फसल को नुकसान पहुंचा है। समय पर बारिश नहीं होने और कोहरा छाने की वजह से आलू रोगग्रस्त हुआ है।”

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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