दुनियाभर में 1975 के बाद से मोटापे के शिकार लोगों की संख्या लगभग तीन गुना बढ़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बीते शुक्रवार (चार मार्च,2022) को ‘विश्व मोटापा दिवस’ पर मोटापे से संबंधित आंकड़ें पेश किए, जिनके अनुसार दुनिया भर में एक अरब लोग मोटे हैं, जिनमें से 65 करोड़ वयस्क, 34 करोड़ किशोर और 3.90 करोड़ बच्चे शामिल हैं। यह संख्या अभी भी बढ़ रही है। डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि 2025 तक, लगभग 16.70 करोड़ लोग, जिनमें वयस्क और बच्चे शामिल हैं, कम स्वस्थ हो जाएंगे, क्योंकि या तो उनका वजन अधिक होगा और वो मोटापा का शिकार होंगे।
विश्व मोटापा दिवस 2022 पर, डब्ल्यूएचओ ने सभी देशों से रोके जा सकने वाले इस स्वास्थ्य संकट को दूर करने के लिए और अधिक प्रयास करने का आग्रह किया है। इस संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है, ऐसे में यूएन स्वास्थ्य एजेंसी का अनुमान है कि वर्ष 2025 तक लगभग 16 करोड़ 70 लाख लोग, कम स्वस्थ बन जाएंगे क्योंकि या तो उनका वज़न ज़्यादा होगा या फिर वो मोटापे के शिकार होंगे.
ज़्यादा वजन या मोटापे को, चर्बी या वसा का असामान्य या अत्यधिक रूप में इकट्ठा हो जाने से परिभाषित किया जाता है, जो स्वास्थ्य को बाधित करता है। मोटापा सम्पूर्ण शरीर की प्रणालियों को प्रभावित करने वाली एक ऐसी बीमारी है जो हृदय, यकृत या जिगर, गुर्दों, जोड़ों और प्रजनन प्रणालियों पर भी असर डालता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मोटापे के कारण, अन्य गैर-संचारी बीमारियों का भी रास्ता खुलता है, जिनमें टाइप-2 डायबिटीज़, हृदय रोग, हाइपरटेंशन और पक्षाघात, कैंसर के विभिन्न रूपों के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य मुद्दे भी शामिल हैं। यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, मोटापा के शिकार लोगों के, कोविड-19 के कारण, अस्पतालों में भर्ती होने की तीन गुना ज़्यादा सम्भावना है।
यूएन समााचार की रिपोर्ट में कहा गया है, सभी देशों को, एक बेहतर भोजन व खाद्य वातावरण बनाने के लिए, एक साथ मिलकर काम करने की ज़रूरत है ताकि हर एक व्यक्ति को स्वस्थ और सुलभ ख़ुराक उपलब्ध हो सके। ये लक्ष्य हासिल करने के लिए, बच्चों के लिए ऐसे खाद्य व पेय पदार्थों की मार्केटिंग यानि विपणन पर प्रतिबन्ध लगाने होंगे, जिनमें चर्बी या वसा, शुगर और नमक की उच्च मात्रा होती है। अत्यधिक मीठे पेय पदार्थों पर ज़्यादा टैक्स लगाना होगा, और क़िफ़ायती व स्वस्थ भोजन तक पहुँच आसान बनानी होगी।
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी, खान-पान के तरीक़ों में बदलाव के साथ-साथ, व्यायाम व क़सरत करने की भी सलाह देती है। एजेंसी का कहना है, “शहरों व क़स्बों को, सुरक्षित चहल-क़दमी, टहलने, साइकिल चलाने व मनोरंजन के लिए और ज़्यादा जगहें मुहैया करानी होंगी, साथ ही स्कूलों को, शिशुओं के शुरुआती जीवनकाल से ही स्वस्थ आदतें विकसित करने में, परिवारों की मदद करनी होगी।”
25 फीसदी वयस्क नहीं करते व्यायामः विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, हर चार में एक, यानि लगभग 25 प्रतिशत वयस्क, और हर पाँच में से चार किशोर , इस समय पर्याप्त शारीरिक गतिविधियों या व्यायाम में हिस्सा नहीं लेते हैं। पुरुषों की तुलना में, महिलाएं और भी ज़्यादा निष्क्रिय हैं। दुनिया भर में शारीरिक सक्रियता रखने वाले और व्यायाम में हिस्सा लेने पुरुषों की संख्या, लगभग 32 प्रतिशत और महिलाओं की संख्या लगभग 23 प्रतिशत है।
उच्च आय वाले देशों में, निष्क्रिय और आलसी लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा है जो कि लगभग 37 प्रतिशत है, जबकि मध्यम आय वाले देशों में निष्क्रिय व आलसी लोगों की संख्या 26 प्रतिशत और निम्न आय वाले देशों में 16 प्रतिशत लोग निष्क्रिय और आलसी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों में सिफ़ारिश की गई है कि वयस्कों को हर सप्ताह, 150 से लेकर 300 मिनट की, सामान्य से लेकर सघन शारीरिक गतिविधियाँ और व्यायाम करने चाहिए। बच्चों और किशोरों को, हर दिन औसतन 60 मिनट का व्यायाम करना चाहिए।