एक पेड़ कटने पर रोया तो मां ने डेढ़ बीघा जमीन देकर कहा, यहां जंगल बसा दो
घर और आसपास लगा दिए एक हजार से भी ज्यादा पेड़
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
मैं उस समय बहुत छोटा था, सरस्वती शिशु मंदिर में पहली कक्षा में पढ़ता था। मां स्कूल से घर लौटते समय सड़क किनारे, घर के आसपास कुछ पौधे या कभी कभार बीज बो देती थीं। अक्सर मां को पौधे-बीज बोते देखता, तो एक दिन पूछा, आप इतने पौधे क्यों बोती हो। उनका जवाब था, तुमको यह आज नहीं पता चलेगा, जब बड़े हो जाओगे, तब इस काम को समझ पाओगे। मुझे मां ने सिखाया, कौन सा पौधा कब बोना है, पौधों की देखरेख कैसे करनी है।
अच्छी तरह याद है, मैंने अपने जीवन का सबसे पहला पौधा जुलाई 1997 में बोया था। वो पौधा पय्या का था, पर दुर्भाग्य की बात है, यह पौधा अब आपको नहीं दिखा सकता, क्योंकि उस पौधे को मकान बनाने के दौरान काटना पड़ा था। उस दिन मैं बहुत रोया था, क्योंकि मां और मैंने पौधे को बहुत प्यार किया था। मुझे रोता देख मां की आंखें नम हो गई थीं, उन्होंने उसी दिन मुझसे वादा किया था, तुम्हें उस पौधे के बदले डेढ़ बीघा जमीन देती हूं, जिस पर हम कभी निर्माण नहीं करेंगे, तुम इस जमीन को पेड़ पौधों से भर दो।
हम देहरादून जिले के ऋषिकेश रोड पर टिहरी बांध विस्थापित क्षेत्र के वार्ड नंबर नौ, कोटी अठूरवाला में रहने वाले लगभग 30 साल के यशपाल सिंह से मिलने पहुंचे। यशपाल को उनके जानने वाले राहुल के नाम से जानते हैं। उनको घर का पता है, पेड़ों वाला घर। फूलों की बेलों, क्रीपर्स से ढकी चहारदीवार, पाम ट्री की पहरेदारी वाला घर राहुल का है। उनके घर सहित लगभग डेढ़ बीघा भूमि पर लगभग एक हजार पेड़, पौधे, जिनमें कई सजावटी हैं और बहुत सारे फूलों और फलों के हैं। व्यावसायिक पौधे भी बड़ी संख्या में हैं।
यशपाल कहते हैं, मां तो अब दुनिया में नहीं हैं, पर उनसे पेड़ों के नाम पर मिली डेढ़ बीघा जमीन को मैंने पेड़ों का घर बना दिया है। मां ने अपना वादा पूरा किया और मैं पर्यावरण से किए उस वादे को पूरा करने में जुटा हूं, जो अब तक लगभग 15 हजार पौधे लगाने तक पहुंच गया है। अगर 75 साल तक जिंदगी रही तो देशभर में एक करोड़ पौधे लगाने का संकल्प पूरा करने में जुटा रहूंगा।
उन्होंने ये पौधारोपण और बीजारोपण देहरादून, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल, नैनीताल, रुद्रप्रयाग, चमोली और अल्मोड़ा जिलों में चले अभियान के दौरान किया। कई राज्यों और विदेश से भी फूल पौधे लाए हैं।
कहते हैं, “आपसे जिस घर में, मैं मुलाकात कर रहा हूं, वो मेरा नहीं है, यह घर पेड़ों का है, उन पर मंडराती तितलियों का है, यहां चहचहाने वाली चिड़ियों का है। मुझे अच्छा लगता है, जब लोग क्रीपर्स से ढंकी बाउंड्रीवाल और विविध रंगों वाली Bougainvillea से लदी पेड़ों की टहनियों को बैकग्राउंड में रखकर सेल्फी लेने की इच्छा रखते हैं। घर के आंगन में सफेद बैंगनी Chinese wisteria फूलों की चादर सबको लुभाती है। लोग, घर आंगन में पेड़ों की छाया में कुछ देर बैठने की इच्छा व्यक्त करते हैं।
बताते हैं, वो पेड़ों की न तो छंटाई करते हैं और न ही कटाई। वो चाहते हैं, ये पेड़ उसी तरह अपनी ऊंचाइयों पर पहुंचें, जैसे कि एक जंगल में होते हैं। उनका मकसद, आसपास दिखाई दे रहे कंक्रीट के बीच जंगल खड़ा करना है। कई बार उनको विरोध झेलना पड़ता है।
सड़क किनारे स्थित भूमि पर राहुल ने बांस, आम, लीची, कटहल सहित फूलों की कई प्रजातियां बोई हैं। उनका विचार अभी और पौधे लगाने का है, क्योंकि उनको यहां जंगल तैयार करना है। बताते हैं, उनके पास कई बार इस जमीन को खरीदने वालों ने ऑफर भेजे हैं। वो इस भूमि के दो से ढाई करोड़ तक देने को तैयार हैं, पर मैंने इस जमीन को पेड़ों के नाम कर दिया है। यहां सिर्फ और सिर्फ पेड़ रहेंगे। तेजी से कंक्रीट का जंगल बनते अठूरवाला क्षेत्र में, यह जगह पक्षियों और कीट पतंगों सहित कई तरह के जीवों के लिए सुरक्षित प्रवास है।