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नव का रव
उमेश राय
अब नवीन सूझ-बूझ का सही विकास हो,
मेल-जोल नित बढ़े,मनुष्यता का वास हो,
एक धरती,आसमां है एक,नेक तो बनो,
विग्रह का ग्रह छटे,सदैव रस – समास हो.
धर्म वह जोड़े हमें जो,विवेक पूर्ण रंग दे,
कर्म हो रहित अहं-मम,शांतिमय तरंग दे,
भाव-पूरित,नेह-सूत्रित मानवीय चेहरा बने,
मर्म सबका भाईचारा,प्रेम-करूणा संग दे.
भूख न बिलखे कहीं, बचपन न घिरे तमस में,
स्वार्थी रण बंद हो,मरहम रहे हर परस(स्पर्श)में,
नव संवत्सर,नवरात्र का संदेश,रहित काल-देश,
नव सृजन रव-रूह हो,हर आचरण व दरस में.
एक चेहरा,एक मानक,एक ही आशय रहे,
ऐक्य हो वाणी-कर्म में,सत्य का आश्रय गहे,
मत बढ़ाओ दूरियाँ,कमजोरियाँ भी मत भुनाना,
रख समन्वय-सहकार,साझेपना में हम बहे.
– नव-संवत्सर व नवरात्रि की अशेष स्वस्तिकामना…