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उत्तराखंड चुनाव 2020ः बच्चों की कसम तक दिलाने से भी नहीं चूक रहे नेताजी

देहरादून। उत्तराखंड में कुछ दिन से कांग्रेस के दो नेताओं के बीच सोशल मीडिया पर जंग चल रही है। एक दूसरे को पुरानी बातें याद दिलाने तक तो ठीक है, पर यहां तो देवताओं और बच्चों की कसम लेने को कहा जा रहा है। उत्तराखंड में राजनीति का गिरता स्तर चिंता बन गया है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय कुछ दिन से पार्टी नेता हरीश रावत पर उनके साथ षड्यंत्र करने का आरोप लगा रहे हैं। इस पर कांग्रेस नेता एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री शूरवीर सजवाण ने सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर दी। इसके बाद से दोनों के बीच सार्वजनिक रूप से एक दूसरे के खिलाफ बयानों का दौर जारी है।
सोशल मीडिया पर एक फोटो के साथ, जिसमें सजवाण कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और किशोर उपाध्याय के साथ अपना एक फोटो साझा करते हुए लिखते हैं-
हास्यास्पद बयान।
दरअसल, सजवाण ने किशोर उपाध्याय के उस बयान को हास्यापद कहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि संभवतः मेरे बड़े भाई 1985 भूल गए…।
वहीं फोटो के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि किशोर उपाध्याय से ज्यादा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के समक्ष उनको (सजवाण) ज्यादा तरजीह मिलती है। इस फोटो में सजवाण सोनिया गांधी से बात कर रहे हैं और उपाध्याय उनके पीछे खड़े हैं।
सोशल मीडिया पोस्ट में सजवाण लिखते हैं-
मित्रों, मेरे दादाजी और ताऊजी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे हैं। मेरे ससुर साहब *अशोक चक्र* से सम्मानित थे।आजादी के ज़माने से मेरे घर में *पट्टी स्तर* का कांग्रेस का कार्यालय होता था। मेरा नाता कांग्रेस के चुनाव चिह्न ‘बैलों की जोड़ी’ से लेकर ‘गाय-बछिया’ व अब ‘हाथ का पंजा’ तक लगातार बना हुआ है।
वो लिखते हैं, वर्ष 1962 के चुनाव के दौरान जब मेरी उम्र मात्र 12 वर्ष की थी, विद्यार्थियों की टोली में काम करते हुए मुझे इलाहाबाद(प्रयागराज) से आए हुए पर्यवेक्षकों ने मेरे जुनून को देखते हुए इंदिरा जी की वानर सेना का 8 गांवों का यूथ संयोजक बनाया।तब से लेकर 1967,69,71,74,77 के चुनाव में एनएसयुआई, यूथ कांग्रेससेवादल के विभिन्न पदों पर रहते हुए बढ़ चढ़कर पार्टी का काम किया।
सजवाण की सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार, उसी का नतीजा था कि 1980 के चुनाव में ही मेरा नाम पार्टी विधानसभा पैनल में तय हो गया था किन्तु ऐन वक्त पर वह टिकट सनद विक्रम शाह जी को दिया गया, जिसके बाद उनकी निष्क्रियता व मेरी सक्रियता के कारण 1985 में श्री कमलनाथ जी,श्री वीर बहादुर सिंह जी एवं श्री चंद्रमोहन सिंह नेगी जी के आशीर्वाद से टिकट प्राप्त होने के बाद इतने विशाल विधानसभा क्षेत्र देवप्रयाग की महान जनता ने मुझे 55 प्रतिशत से अधिक वोटों देकर अपना युवा विधायक चुनकर सेवा करने का मौका दिया व मैंने उस दौरान विकास के अनेक कीर्तिमान स्थापित किए जो सर्वविदित हैं।

जरूर पढ़ें- किशोर को नसीहत देते हुए पूर्व मंत्री सजवाण बोले, षड्यंत्र तो मेरे साथ हुआ

पूर्व मंत्री सजवाण की इस पोस्ट को साझा करते हुए पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय टिप्पणी करते हैं, मेरे परम सम्मानित बड़े भाई श्री घण्डयाल देवता, माँ चन्द्रबदनी, बड्डी जी व अपने बच्चों की शपथ ले के कह दें कि जिन सज्जनों के नामों का उल्लेख उन्होंने किया है, देवप्रयाग से 1985 में उन्होंने उन्हें विधान सभा टिकट दिया तो मैं अपनी बात वापस ले लूँगा।
सजवाण ने राजनीतिक सफर का जिक्र किया तो उपाध्याय ने उनको देवताओंं और बच्चों की शपथ लेने को कह दिया। वो 1985 में देवप्रयाग से टिकट दिलाने वालों के नामों पर सवाल उठाते हैं।

दरअसल, उपाध्याय का मानना है कि 1985 में सजवाण को देवप्रयाग से विधानसभा का टिकट उन्होंने दिलाया था।
उन्होंने 1985 में टिकट का जिक्र करते हुए सोशल मीडिया पर पूर्व कैबिनेट मंत्री सजवाण के लिए टिप्पणी की थी- सम्भवत: मेरे बड़े भाई 1985 भूल गये, मेरी माँ ने कई बार PM हाउस फोन किया कि “यू छोरा छापर यख लफड़्याड़ लग्यूं, हमारा मेल्यूट मां, मरी जालू, ये कु टिकट कर दी”।
राजनीति में एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर तो हमेशा चलता रहा है, पर बच्चों और बड़ों को बीच में नहीं लाया जाता। क्योंकि सभी एक दूसरे के बच्चों और बड़ों के लिए समान रूप से स्नेह और सम्मान का भाव रखते हैं। राजनीति में बदलता यह व्यवहार वास्तव में चिंता का विषय है।

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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