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Kartik Swami मंदिर की यात्रा में दिखता है इंसानों का प्रकृति से गहरा नाता

रुद्रप्रयाग जिला स्थित कार्तिक स्वामी मंदिर में पहुंचकर प्रकृति के साथ जुड़ जाते हैं श्रद्धालु

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

भगवान शंकर के बड़े पुत्र कार्तिक स्वामी (Kartik Swami) के दर्शन का सौभाग्य मिला और साथ ही, प्रकृति से इंसानों के उस रिश्ते को जानने का मौका भी हासिल हुआ है, जिसके बिना जीवन का अस्तित्व नहीं हो सकता।

रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) जिले में कनक चौरी (Kanak Chauri) से लगभग तीन किमी. पैदल चढ़ाई के बावजूद बहुत ज्यादा थकान महसूस नहीं होती, यह इसलिए क्योंकि पूरा रास्ता वन क्षेत्र से होकर है। यहां प्राकृतिक नजारे आपको लुभाते हैं और शांत हवाएं आपकी तरोताजा रखती हैं।

कार्तिक स्वामी का मंदिर क्रौंच पर्वत (Kraunch Parwat) पर है, जो रुद्रप्रयाग शहर से लगभग 38 किमी. दूर है। मंदिर में पहुंचने के लिए रुद्रप्रयाग से पोखरी मार्ग पर वाया चोपता जाना होगा। चोपता (Chopta) रुद्रप्रयाग शहर से लगभग 20 किमी. दूरी पर है। चोपता के पास ही फलासी गांव में भगवान श्री तुंगेश्वर महादेव (Shri Tungeshwar Mahadev Mandir) का पौराणिक मंदिर है, जिसको पांडवों ने उस समय बनाया था, जब वो भगवान शंकर के दर्शनों के लिए श्री केदारनाथ (Shri Kedarnath) जा रहे थे। चोपता से आगे घिमतोली (Ghimtoli) होते हुए कनकचौरी पहुंचेंगे। यह पर्वतीय मार्ग प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है।

रुद्रप्रयाग और चमोली जिले की सीमा के पास कनकचौरी एक छोटा गांव है, जहां पूजा सामग्री, चाय-पानी और सामान्य जरूरत का सामान मिल जाता है। कनक चौरी के युवा- बच्चे पर्यटकों को गाइड करते हुए वन मार्ग से होते हुए कार्तिक स्वामी मंदिर तक पहुंचाते हैं। रास्ते में आसपास के गांवों के लोग पशुओं को चराते हुए मिल जाएंगे।

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बरसात में यहां बहुत संभलकर चलने की जरूरत है, क्योंकि मिट्टी फिसलन वाली हो जाती है। पैदल रास्ता पार करने के बाद खानपान और चूड़ी- कंगन, माला, मूर्ति की दुकानें हैं। कनकचौरी में रहने वाले अधिकतर बच्चे चमोली जिला स्थित पोखठा के राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज में पढ़ते हैं, जो यहां से लगभग तीन किमी. दूर है। कॉलेज का भवन ऊंचाई से नजर आता है।

रुद्रप्रयाग जिला स्थित श्री कार्तिक स्वामी मंदिर की सीढ़ियां और प्रकृति का अनुपम सौंदर्य। फोटो- राजेश पांडेय

आगे की यात्रा सीढ़ियों से होते हुए है। जैसे – जैसे सीढ़ियां चढ़ते जाएंगे, आप दोनों और विशाल पर्वतों, घने वनों को देखने का आनंद उठाएंगे और खुद को प्रकृति की गोद में पाएंगे।

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कोई पहाड़ बादलों से ढंका मिलता है और कोई हरियाली की चादर ओढे़ हुए। घाटियां वृक्षों से पटी दिखती हैं और शांत- ठंडी हवाएं आपको सबकुछ भूल जाने को कहती हैं।

रुद्रप्रयाग जिला में श्री कार्तिक स्वामी मंदिर जाते समय हिमालय की श्रेणियां और घाटियों का अनुपम नजारा पेश आता है। फोटो- राजेश पांडेय

बुरांस के सीजन में घाटी लाल रंग के फूलों से ढंकी नजर आती है। आप महसूस करेंगे कि पूरी दुनिया बस यहीं बसी है। आप अपने आसपास के नजारों में खो जाते हैं। मुझ पर विश्वास नहीं होता तो आप समय निकालकर भगवान कार्तिकेय के मंदिर की यात्रा अवश्य करें। आप मंदिर की सीढ़ियां शुरू होने से पहले रात्रि विश्राम कर सकते हैं, यहां रुकने की व्यवस्था है। उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने मंदिर क्षेत्र में सुविधाएं विकसित की हैं।

श्री कार्तिक स्वामी के मंदिर से पहले स्थापित श्री बजरंग बली की मूर्ति। फोटो- सक्षम पांडेय

कार्तिक स्वामी मंदिर समुद्रतल से 3048 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह स्थान हिमालय की श्रेणियों से घिरा हुआ है। मौसम साफ रहने पर यहां से हिमालयी चोटियां चौखंबा, मद्महेश्वर, केदार पर्वत, मेरु-सुमेरु, त्रिशूल, पंचाचूली, नीलकंठ, नंदा देवी, कामेट, रुद्रनाथ आदि दिखते हैं। कहा जाता है, मंदिर से हिमालय की लगभग 80 प्रतिशत चोटियां साफ दिखती हैं।

श्री कार्तिक स्वामी मंदिर जाते समय रास्ते में स्थित मंदिर में स्थापित श्री भैरव नाथ जी की मूर्ति। फोटो- सक्षम पांडेय

श्री कार्तिकेय स्वामी के मंदिर में जाते समय रास्ते में श्री भैरवनाथ जी का मंदिर भी है। जहां श्रद्धालु दर्शनों का लाभ उठाते हैं।

श्री कार्तिक स्वामी मंदिर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों से कहा कि वे पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगाकर आएं और घोषित किया कि जो भी पहले चक्कर लगाकर यहां आएगा, वह माता-पिता की पूजा करने का प्रथम अवसर प्राप्त करेगा। भगवान श्री गणेश, जो कि शिवजी के दूसरे पुत्र थे, ने अपने माता-पिता के चक्कर लगाए। उनके लिए माता-पिता ही ब्रह्मांड थे।

श्री गणेश ने यह प्रतियोगिता जीत ली। इस पर कार्तिकेय क्रोधित हो गए। और अपने शरीर का मांस माता-पिता के चरणों में समर्पित करके स्वयं हड्डियों का ढाँचा लेकर क्रौंच पर्वत चले आए। बताया जाता है कि भगवान कार्तिकेय की ये हड्डियाँ आज भी मंदिर में हैं, जिनकी पूजा करने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं। यह मंदिर बारह महीने श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है।

रुद्रप्रयाग जिला स्थित श्री कार्तिक स्वामी मंदिर जाते समय रास्ते में वन देवी ओखली। श्रद्धालु वन देवी को श्रृंगार सामग्री अर्पित करते हैं। फोटो- सक्षम पांडेय

वन देवी की ओखली, श्रद्धालु अर्पित करते श्रृंगार सामग्री
यहां वन देवियों का वास है। श्रद्धालुओं में उनके प्रति अपार आस्था है। लोग वृक्षों पर बिंदियां, चुन्नियां, श्रृंगार की सामग्री अर्पित करके वन देवियों को नमन करते हैं। यह संबंध वनों यानी वृक्षों के साथ इंसानों के अटूट रिश्ते को व्यक्त करता है। यहां वन देवी की ओखलियां भी हैं, जिनमें भी श्रृंगार सामग्री चढ़ाकर अन्न, समृद्धता की कामना की जाती है।

श्री कार्तिक स्वामी मंदिर के महंत नंदू पुरी। फोटो- दीपक सिंह भंडारी

सुविधाएं बढ़ने से बढ़ी श्रद्धालुओं की संख्या
मंदिर के महंत नंदू पुरी बताते हैं, पहले यहां पानी नहीं था, बिजली नहीं थी। दीया जलाने के लिए कड़ुवा तेल नहीं मिलता था। रास्ता सही नहीं था। पहले, स्थानीय लोग ही आते थे, बाहर से तो बहुत कम लोग आते थे। अब तो सोशल मीडिया पर प्रचार ने श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ाई। बाहर से यात्री आ रहे हैं। यहां सुविधाओं का विस्तार लगभग दो -ढाई साल पहले हुआ। अब बिजली पानी है, मंदिर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां हैं। अब फिलहाल कोई कमी महसूस नहीं होती।

बैंकुंठ चतुर्दशी को कार्तिकेय जी से मिलने आते हैं देवता
महंत नंदू पुरी बताते हैं, यहां वर्ष भर में भगवान कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान कार्तिक स्वामी से मिलने के लिए देवी देवता आते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी पर मेला लगता है। मंदिर परिसर में बड़ी संख्या में छोटी-बड़ी घंटियां देखने को मिलती हैं। मान्यता है, मंदिर में घंटी बांधने से मनोइच्छा पूर्ण होती है।

मेरे लिए तो वो भगवान ही थे
महंत नंदू पुरी बताते हैं, पहले बर्फबारी के समय तो कोई नहीं आता था। छह सात साल पहले की बात है, मैंने 11 दिन तक किसी श्रद्धालु को यहां नहीं देखा था। मुझे बुखार आ गया था, मैं उठ भी नहीं पा रहा था। पर, ईश्वर की कृपा हुई कि एक गाइड और दो अंग्रेज वहां पहुंचे। मैंंने उनको चाय पिलाना चाहा, पर मैं स्टोव तक नहीं जला पा रहा था। उन्होंने मेरी हालत देखकर दवा और बिस्किट का पैकेट दिया। वो लोग, श्री कार्तिकेय मंदिर की ओर चले गए। इस बीच मैंने दवा और बिस्किट खाया और ठीक हो गया। बाद में, वो वापस लौटे और मैंने उनको चाय बनाकर पिलाई। उन्होंने मुझे ठंड में दवा खाने की सलाह दी और दवा का पूरा पत्ता मुझे दिया। भगवान इसी तरह भक्तों की मदद के लिए आते हैं।

प्लास्टिक और पॉलिथीन लेकर न आएं
अजीम प्रेमजी फाउंडेशन से जुड़े शिक्षक दीपक रावत ने हमें मंदिर की पौराणिक कथा सुनाई। उनका कहना है, यहां का वातावरण आपके मन और मस्तिष्क को सुखद अनुभूति प्रदान करता है। यहां स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।

शिक्षक दीपक रावत। फोटो- राजेश पांडेय

उन्होंने लोगों से अपील की, प्लास्टिक और पॉलिथिन लेकर न यहां न आएं। अपने साथ वो वस्तुएं ही लेकर आएं, जो पर्यावरण की स्वच्छता के लिहाज से सही हों। कहते हैं, सरकार को चाहिए कि इन डेस्टिनेशन को प्रमोट करे। यह मंदिर वर्षभर खुला रहता है। सर्दियों, गर्मियों और बरसात के लिहाज से यहां शेड बनाए जाने बहुत जरूरी हैं।

Herbal tourism को Religious tourism से जोड़ा जाए
मेडिसिनल प्लांट्स के विशेषज्ञ वैज्ञानिक डॉ. विजय प्रसाद भट्ट कार्तिकेय स्वामी मंदिर के आसपास दूर तक फैले वन क्षेत्र को औषधीय पौधों के नजरियों से अपार संभावनाओं वाला बताते हैं। उनका कहना है, उत्तराखंड में Herbal tourism को Religious tourism से जोड़ दें, तो ईश्वर और प्रकृति के प्रति आस्था एवं अनुभूति में वृद्धि होगी। जैसे-जैसे आप हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते जाएंगे, यह अनुभूति और मजबूत होती जाएगी। यह सब बातें बोलने से नहीं होंगी, बल्कि हमारी आत्मा की आवाज से साकार होंगी।

प्लांट्स एक्सपर्ट साइंटिस्ट डॉ. विजय प्रसाद भट्ट। फोटो- राजेश पांडेय

उनका कहना है, हम उत्तराखंड में लोगों को जागरूक करते हैं कि यात्रियों के लिए यहां के पारंपरिक व्यंजन परोसे जाएं। यात्रा रूट्स पर डोसा, इडली, सांभर मिल जाएगा, पर मंडुवा की रोटी नहीं मिलती, चौसा भात नहीं मिलता। हम यात्रियों को आलू की थिंच्वाणी खिलाएं, चौसा भात खिलाएं, मंडुवे की रोटी परोसे तो आय बढ़ेगी। हम Religious tourism के साथ Herbal tourism को भी बढ़ाएं। Herbal Gardens को प्रमोट करें, लोगों को उत्तराखंड की हर्बल टी पिलाएं। इससे यात्रियों का स्वास्थ्य अच्छा होगा। इस दिशा में सभी को काम करना होगा। इससे ईश्वर और प्रकृति के प्रति सम्मान का भाव व्यक्त होगा।

अन्य प्रमुख मंदिरों की दूरी
श्री कार्तिक स्वामी मंदिर से श्री बदरीनाथ मंदिर- 181 किमी., श्रीकोटेश्वर महादेव मंदिर- 35 किमी., ऊखीमठ मंदिर- 52 किमी., कालीमठ मंदिर-57 किमी., श्रीतुंगनाथ मंदिर- 81 किमी.।

क्या कहते हैं यात्री

युवा इंजीनियर रविंद्र सिंगला। फोटो- राजेश पांडेय

मल्टीनेशनल टेक कंपनी में सीनियर इंजीनियर युवा रविंद्र सिंगला का कहना है, श्री कार्तिक स्वामी मंदिर के बारे में काफी सुना था। यहां आकर बहुत अच्छा लगा। यहां से दिखती हिमालयी पर्वत श्रृंखलाएं और हरियाली से समृद्ध घाटियां बहुत लुभा रही हैं। यहां आने वाले सभी लोगों को स्वच्छता का बहुत ख्याल रखना होगा। मैं तो इस पवित्र स्थान को धरती पर स्वर्ग कहूंगा।

नई दिल्ली निवासी हयात सिंह। फोटो- सक्षम पांडेय

नई दिल्ली से आए युवा हयात सिंह बताते हैं, वो भी यहां पहली बार आए। बहुत अच्छा अनुभव हुआ। रास्ते में वृक्षों पर बिंदिया लगी देखीं। चुन्नियां, श्रृंगार सामग्री वृक्षों को अर्पित की गई हैं। पेड़-पौधों और इंसानों के बीच रिश्तों को देखना और समझना है तो यहां आइए।

शाम को बकरियों को चराकर घर वापस लौटते पशुपालक। फोटो- राजेश पांडेय

हम लोग शाम को श्री कार्तिक स्वामी मंदिर से वापस कनक चौरी की ओर लौट रहे थे। रास्ते में महिलाएं बकरियां लेकर वापस घरों की ओर लौट रही थीं। उनके पास लगभग 40 बकरियां थीं। बताते हैं, सुबह सात बजे बकरियों को लेकर जंगल जाते हैं। शाम को इस वक्त करीब पांच बजे घर लौटते हैं। पशुपालन और खेती उनका व्यवसाय है। जंगली जानवरों से बकरियों की सुरक्षा करना चुनौती का काम है।

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राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन कर रहे हैं। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते हैं। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन करते हैं।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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