
देहरादून। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग शहर से करीब 22 किमी. दूर पोखरी रोड पर विश्वप्रसिद्ध श्री तुंगेश्वर महादेव मंदिर फलासी गांव में है। इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने उस समय किया था, जब वो महाभारत युद्ध के बाद गोत्र हत्या के पाप से दुखी होकर भगवान शिव के दर्शन के लिए भटक रहे थे। पांडवों ने भगवान शिव को ढूंढते समय जहां – जहां विश्राम किया, वहां उन्होंने भगवान शिव के मंदिरों को स्थापित किया।
फलासी गांव में स्थापित श्री तुंगेश्वर महादेव मंदिर को श्री फलेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। हजारों वर्षों पुराने मंदिर में हर वर्ष भगवान श्री तुंगेश्वर महादेव के दर्शनों के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। शिवरात्रि पर मंदिर में रात्रि के चारों पहर भगवान शिव की पूजा अर्चना होती है। दूर-दूर से आए श्रद्धालु मनोकामना पूर्ण कराने के लिए मंदिर में रात्रि जागरण करते हैं। फलासी गांव रुद्रप्रयाग जिला के अगस्त्यमुनि ब्लाक और रुद्रप्रयाग तहसील में आता है। फलासी चोपता से सड़क मार्ग से पांच किमी.है, जबकि यहां से पैदल यात्रा लगभग डेढ़ किमी. है। इन दिनों चोपता -बावई के कच्चे मार्ग को पक्का किया जा रहा है।
स्थानीय ग्रामीण रूप सिंह भंडारी बताते हैं, श्री तुंगनाथ मंदिर के आसपास साढ़े तीन सौ भी अधिक पौराणिककालीन छोटे मंदिर थे, जिनकी निर्माण शैली, ठीक श्री तुंगेश्वर नाथ मंदिर की तरह थी। इनमें भी उसी पत्थर का इस्तेमाल किया गया था, जैसा कि मुख्य मंदिर में किया गया है।
श्रीतुंगेश्वर महादेव मंदिर की दीवारों पर टेराकोटा शैली की मुहरें और शिव-पार्वती और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। यहां 11 अन्य मंदिर भी हैं, जिनकी निर्माण शैली मुख्य मंदिर की तरह है। इनमें सूर्य मंदिर की दीवारों पर पौराणिक मंदिरों की प्रतिकृतियों के दर्शन होते हैं, जिनमें चारों धामों के साथ ही देवभूमि के अन्य प्रसिद्ध मंदिर शामिल हैं।
पांडवकालीन मंदिर में दिव्य कलश
मंदिर परिसर में श्री विष्णु भगवान का मंदिर है, जिसकी दीवार पर बने छिद्र से ध्यानपूर्वक देखने पर आपको दिव्य कलश के दर्शन होंगे। यह कलश मंदिर निर्माण के समय ही स्थापित किया गया होगा। इस मंदिर की स्थापना महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने की थी, ऐसा वर्णन किया जाता है। यह कलश, किस धातु का है, या फिर पत्थरों से बना है, इसके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है। स्थानीय निवासी भंडारी बताते हैं, काफी ध्यान से देखने पर ही इस कलश के दर्शन होते हैं।
ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के घंटियों की आवाज से जागते हैं गांव
श्री तुंगेश्वर महादेव मंदिर परिसर में लगभग 45 साल से सेवादार भूपाल सिंह बताते हैं, वो सुबह करीब चार बजे मंदिर की घंटियों को बजाते हैं, ताकि आसपास के गांवों को ब्रह्ममुहूर्त में जगाया जा सके। मंदिर की देखरेख में 14 गांवों की समितियां योगदान देती हैं। मंदिर का जीर्णोद्धार भी समितियों ने संपूर्ण कराया। उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने भी करीब दो साल पहले मंदिर परिसर के रखरखाव में सहयोग किया था। श्री तुंगेश्वर नाथ मंदिर से श्री दुर्गादेवी मंदिर 5 किमी. कार्तिकेय स्वामी मंदिर 20 किमी., गुप्तकाशी 65 किमी., तुंगनाथ मंदिर 89 किमी., गौरीकुंड 91 किमी. है।