हर मौसम, रोजाना बीस किलोमीटर साइकिल चलाती हैं ऋषिकेश की ग्रेजुएट जसोदा
जच्चा- बच्चा और गर्भवती महिलाओं की देखभाल को बनाया आजीविका का माध्यम
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
मौसम का मिजाज कुछ भी हो, चाहे तेज बारिश हो या फिर तेज धूप, श्यामपुर की जसोदा देवी की साइकिल चलती रहती है। हाईवे हो या फिर गांवों की गलियां, उनको देखा जा सकता है। बताती हैं, प्रतिदिन औसतन 20 किमी. साइकिल चला लेती हूं।
बीते सोमवार की दोपहर, करीब 43 साल की जसोदा देवी, गुमानीवाला के एक घर पर रैनकोट पहनकर साइकिल से पहुंचीं। यहां हाल ही में एक बच्चे का जन्म हुआ है और जसोदा देवी का कार्य जच्चा- बच्चा की देखभाल करना है।
बताती हैं, 2010 में पति की मृत्यु हो गई थी, मेरे सामने दो छोटे बच्चों को पालने की चुनौती थी। आर्थिक सहयोग का कोई स्रोत नहीं था। ससुर जी भी एक प्राइवेट नौकरी से सेवानिवृत्त हो गए थे।
हम पहले दिल्ली में रहते थे, वहां एक जानी मानी कंपनी में नौकरी करती थी। मैंने इग्नू (IGNOU) से इकनॉमिक्स, सिविक्स और हिन्दी में ग्रेजुएशन किया है। 2001 में पहला बेटा हुआ। बच्चे की देखभाल करना मेरे लिए बहुत जरूरी था। मैंने नौकरी छोड़ दी और उसके स्वास्थ्य पर ध्यान दिया। इस दौरान एक संस्था के माध्यम से, गर्भवती महिलाओं, नवजात बच्चों की देखभाल करने का प्रशिक्षण लिया। यह काम केवल अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए सीखा था।
पर, मुझे क्या पता था, एक दिन यह काम मेरे लिए आजीविका का प्रमुख स्रोत बन जाएगा। हम लोग, 2005 में दिल्ली से यहां श्यामपुर गुलजार फार्म, ऋषिकेश (Shyampur Rishikesh) में आ गए। 2008 में छोटे बेटे का जन्म हुआ। जिन्दगी ठीक चल रही थी, पर 2010 में पति की मृत्यु हो गई।
मेरे सामने बड़ी आर्थिक चुनौती थी। मैंने एक फैक्ट्री में नौकरी शुरू की, पर मैं अपने बच्चों को ज्यादा समय नहीं दे पा रही थी। बच्चों को स्कूल भेजकर फैक्ट्री चली जाती। उनकी छुट्टी के समय, खाना खिलाने के लिए घर आती। बच्चे ट्यूशन जाते तो फिर से फैक्ट्री चली जाती। मेरे लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण था, बच्चों को बेहतर परवरिश देना।
जसोदा बताती हैं, एक दिन ऋषिकेश की एक महिला, जो प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका थीं, ने मुझे अपने बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी। मैंने यह काम स्वीकार कर लिया। उस समय मुझे ढाई हजार रुपये प्रतिमाह मिलते थे। इस पैसे से घर का गुजारा चलाना मुश्किल था। मैंने, इसी दौरान, दो -तीन घरों में, सुबह जल्दी और देर शाम गर्भवती महिलाओं, जच्चा-बच्चा की देखभाल का काम शुरू कर दिया। जब यह काम अच्छा होने लगा, मुझे कुछ आय होने लगी, घर का गुजारा चलने लगा तो उन शिक्षिका के घर का काम छोड़ दिया। वहां मैंने चार साल काम किया।
2001 में सीखा हुआ काम, 2010-11 में फिर से शुरू किया, कोई दिक्कत तो नहीं हुई, पर जसोदा देवी कहती हैं, मैंने अपने बच्चों के साथ ही, पहले आस-पड़ोस में महिलाओं और नवजात बच्चों की देखरेख की थी। पर, मैंने उनसे पैसे नहीं लिए थे। इससे मैं लगातार इस कार्य से जुड़ी रही, मेरा अभ्यास चलता रहा।
पर, जब आर्थिक दिक्कतें आईं, परिवार चलाने की जिम्मेदारी आई तो गर्भवती महिलाओं, जच्चा बच्चा की देखरेख के कार्य को मैंने अपने परिवार के गुजारे का स्रोत बनाया। लगभग 11-12 साल हो गए हैं, मैंने दोनों बच्चों को बेहतर शिक्षा दी है। बड़ा बेटा एक प्राइवेट कॉलेज से बी.एससी. आईटी के फाइनल ईयर (B.Sc. IT Final Year) में है और छोटा बेटा हाईस्कूल में है। बच्चे भी बहुत समझदार हैं और आर्थिक स्थिति की समझ रखते हैं।
जसोदा बताती हैं, पहले कुछ साल तक पैदल या फिर टैंपो से गांव-गांव आना जाना होता था। कुछ साल पहले मैंने साइकिल ली। मुझे साइकिल चलानी नहीं आती थी। कई बार साइकिल से गिरकर चोट खाई है। अब मैं अच्छी तरह से साइकिल चला लेती हूं। नेपाली फार्म, छिद्दरवाला, श्यामपुर, गुमानीवाला, ऋषिकेश तक से मेरे पास काम है। यह सब नेटवर्किंग से होता है। मां और बच्चे की अच्छे से देखभाल की वजह से लोग मुझे पसंद करते हैं। वो दूसरे लोगों को बताते हैं, इस वजह से काम बढ़ रहा है।
जब ज्यादा काम होता है, तो सुबह चार बजे ही घर से निकल जाती हूं। वैसे, मैं हर दिन सुबह चार बजे जाग जाती हूं। घर के कामकाज निपटाकर, पूजा पाठ करके घर से सात बजे तो निकलना हो ही जाता है। दिन में एक बार घर आती हूं। बच्चों के लिए खाना बनाकर फिर शाम चार बजे घर से निकल जाती हूं। कभी कभार तो घर लौटने में रात के आठ- नौ तक बज जाते हैं। कुल मिलाकर, रोजाना चार घंटे की नींद ही मिल पाती है। पर, ऐसा अक्सर नहीं होता, कभी कभी काम कम होता है। पर, अब ऐसा समय नहीं आया कि मेरे पास कोई परिवार नहीं हो।
बताती हैं, नवजात बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं। उनकी केयर करना, उनको नहलाना बहुत सावधानी बरतने वाला काम है। हमें साफ सफाई का बहुत ध्यान रखना होता है। हमारे नाखून कटे होने चाहिए। हमें नवजात की मालिश के लिए सही ऑयल का इस्तेमाल करना होता है। गर्भवती महिलाओं, जच्चा-बच्चा की देखभाल बहुत सावधानी वाला कार्य है।
एक सवाल पर, जसोदा कहती हैं, मैं जब उन बच्चों को देखती हूं, जिनकी देखरेख का जिम्मा मुझे दिया गया था, तो बहुत खुशी मिलती है। मैं हर बच्चे को स्वस्थ देखना चाहती हूं। हर मां को स्वस्थ देखना चाहती हूं।
गुमानीवाला निवासी प्रभा थपलियाल बताती हैं, जसोदा देवी को चार-पांच साल से जानती हूं। मैंने इनको अक्सर साइकिल पर सफर करते देखा है। बारिश में रैनकोट पहनकर साइकिल चलाते हुए जसोदा देवी को कई बार देखा है। इनका काम तारीफ के योग्य है। इनके संघर्ष से दूसरों को प्रेरणा मिलती है।
(श्रीमती जसोदा देवी से बातचीत पर आधारित)