
जल में बहुत बड़ी सजीवता होती है, जिस प्रकार पौधों को पानी देकर हरा भरा रखा जाता है, इसी प्रकार शरीर को भी जल से सिंचित किया जाता है। पौधों को पानी देने के नियमों की तरह, मनुष्य को भी पानी पीते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए, ताकि शरीर को इसका लाभ प्राप्त हो सके।
आपको कितनी भी प्यास क्यों न लगी, पानी को दूध की तरह घूंट- घूंट कर पियें। पानी को एक सांस में गटागट नहीं पीना चाहिए। घूंट घूंट कर पिया गया पानी शरीर के लिए गुणकारी होता है। हर एक घूँट के साथ मन में यह विचार होना चाहिए- ”इस अमृत के समान जल में जो मधुरता और शक्ति है, उसको मैं अपने शरीर में प्राप्त कर रहा हूं।” इस विचार के साथ पिया हुआ पानी, दूध के समान गुणकारक होता है।
पानी पीने में किसी भी तरह ही कंजूसी नहीं होनी चाहिए। परन्तु, भोजन करते समय अधिक पानी न पियें।
सुबह सोकर उठते ही वरुण देवता की उपासना करने का एक तरीका यह है कि कुल्ला करने के बाद एक गिलास स्वच्छ जल पीया जाए। इसके बाद कुछ देर चारपाई और इधर उधर करवटें बदलनी चाहिए। इसके बाद शौच जाना चाहिए। इससे खुलकर शौच होता है और पेट साफ हो जाता है। यह ‘उषापान’ वरुण देवता की प्रत्यक्ष आराधना है।
स्नान से शरीर को साफ सुथरा ही नहीं रखा जाता, बल्कि स्नान का उद्देश्य है- जल में मिली हुई विद्युत शक्ति, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन आदि अमूल्य तत्वों से शरीर को सिंचित करना, इसलिए ताजे, स्वच्छ, सहने योग ताप के जल से स्नान करना चाहिए।