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हिन्दी क्यों नहीं हो सकती विज्ञान की भाषा

देहरादून। अक्सर लोग सोचते हैं कि अगर हम अंग्रेजी को अपने कामकाज की भाषा-बोली नहीं बनाएंगे तो तरक्की करती दुनिया के साथ कदमताल नहीं कर पाएंगे। हिन्दी हमारी मातृभाषा है और जन्म से लेकर आज तक यह हर पल हमारे साथ रही है, लेकिन मैं अपने दफ्तर, स्कूल, देश और विदेश में इसका इस्तेमाल करने से परहेज करूंगा। यह इसलिए है क्योंकि मेरे जेहन में यह बात पुख्ता तौर पर अपनी जगह बना चुकी है कि हिन्दी में बोलना, लिखना मुझे आगे बढ़ने से रोक देगा। इसलिए अंग्रेजी को अपनाओ और अपनी जुबान पर हिन्दी को सीमित कर दो।

हम सभी जानते हैं कि हिन्दी उन भारतवंशियों की मातृभाषा है, जो दुनिया में छाए हैं। हिन्दी कई संस्कृतियों, समुदायों, परंपराओं, संस्कारों और समृद्ध ज्ञान की भाषा है। हिन्दी में संवाद ने लोगों को एकजुटता सिखाई। यह अपनेपन की भाषा-बोली है, जो भारत के गरिमामय आज और अतीत की साक्षी रही है। इसमें रचित साहित्यों और ग्रंथों ने दुनिया को जीने की कला सिखाई है।हम हिन्दी को विज्ञान की भाषा क्यों नहीं बना सकते।

फ्रांस, जापान और इजरायल समेत कई छोटे देशों में भी विज्ञान के शोधपत्र उनकी अपनी भाषा में प्रकाशित होते हैं, हमारे देश में क्यों नहीं। न्यूटन के कई सारे शोधपत्र ग्रीक में भी हैं, जिनको पूरी दुनिया ने अनुवाद करके अपने लिए इस्तेमाल किया। अंग्रेजी को अपनाकर गर्व करने से ज्यादा अच्छा है कि दुनिया को अपने साथ हिन्दी में संवाद के लिए प्रेरित करो।

हिन्दी पर कही गईं ये बातें मानवभारती स्कूल के छात्र-छात्राओं के उन विचारों का सार हैं, जो उन्होंने हिन्दी का आधुनिक विकास में योगदान पर वाद विवाद प्रतियोगिता के दौरान व्यक्त किए। शुक्रवार सुबह हिन्दी सप्ताह के तहत हिन्दी के पक्ष और विपक्ष में बोलने और सुनने वाले छात्र-छात्राएं सभागार में इकट्ठा हुए। स्कूल के निदेशक डॉ. हिमांशु शेखर, निर्णायक मंडल व शिक्षक-शिक्षिकाओं की उपस्थिति में प्रतिभागियों ने विचार व्यक्त किए।

उन्होंने जितने प्रभावी तरीके से राष्ट्र विकास में हिन्दी के महत्व को नकारा , उतने ही सक्षम तरीके से छात्र-छात्राओं ने यह बताया कि अपनी मातृभाषा हिन्दी के बिना अपने समुदाय, राज्य और देश का विकास संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा कि वो देश तरक्की के पथ पर लगातार आगे बढ़ते जा रहे हैं, जिन्होंने अपने संवाद के लिए अपनी मातृभाषा को महत्व दिया। उनका कहना था कि हम किसी भी भाषा व बोली का विरोध नहीं करते, लेकिन अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करना हमारे लिए सबसे गर्व की बात है।

हिन्दी का आधुनिक विकास में योगदान के पक्ष में सान्या जैदी ने कहा कि हिन्दी जन-जन की भाषा है। हम जिस भाषा में आसानी से संवाद कर सकते हैं, जो जन्म से लेकर हमारे साथ है, उसको अपनाने में परहेज क्यों। आप अंग्रेजी को विज्ञान की भाषा कहते हैं, लेकिन आप अपनी भाषा में विज्ञान की जटिलता को सरल कर दोगे तो वो दुनिया की भाषा हो जाएगी। दुनिया में न्यूटन जैसे महान वैज्ञानिकों के विज्ञान पर लिखे लेख उनकी अपनी मातृभाषा ग्रीक में हैं।

दुनिया को न्यूटन के लेखों की जरूरत थी, तो उन्होंने उनको अपनी भाषा में अनुवाद कराकर इस्तेमाल किया। अगर आप खुद अपनी भाषा के इस्तेमाल से परहेज करेंगे तो अंग्रेजी तो हावी होगी ही। हम अपनी भाषा किसी पर थोप नहीं सकते, लेकिन अंग्रेजी को अपनाना हमारी मजबूरी नहीं होनी चाहिए।

विकास के लिए संवाद चाहिए और अपनी मातृभाषा से ज्यादा अच्छा संवाद किसी और भाषा में नहीं हो सकता। इसलिए हम यह गर्व से कह सकते हैं कि भारत राष्ट्र के विकास में हिन्दी का भी महत्व है। हमें सभी भाषाओं का आदर करना चाहिए, लेकिन अपनी मातृभाषा हिन्दी पर गर्व करना हमारे लिए ज्यादा सम्मानजनक है।

विपक्ष में छात्र मानस खंडूड़ी ने कहा कि हिन्दी में कामकाज की बात करना, 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाना, केवल अपनी भावनाओं का प्रदर्शित करने का जरियाभर रह गया है। व्यवहारिकता में देखिये, हिन्दी विज्ञान और तकनीकी के इस दौर में कितनी प्रासंगिक रह गई है। अगर आप दूसरे देशों के लोगों से संवाद करेंगे तो क्या यह हिन्दी में संभव हो सकेगा। कितने लोगों के मोबाइल और कंप्यूटर, लैपटॉप में हिन्दी के फोंट मौजूद हैं।

कितने लोग अपने फोन पर हिन्दी में लिखकर चैटिंग करते हैं। अपने देश में हर व्यक्ति अपनी बातचीत में अंग्रेजी के शब्दों को इस्तेमाल कर रहा है, चाहे वो किसी भी राज्य का हो। आप अपने देश के दक्षिण में चले जाएं, वहां कोई भी व्यक्ति या तो अंग्रेजी में बात करेगा या फिर अपनी क्षेत्रीय भाषा में।

हर व्यक्ति की चाह है कि वो अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में दाखिला दिलाए। सरकारों का पत्राचार हिन्दी की जगह अंग्रेजी में होता है। हिन्दी को अपने ही देश में अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है, यह इसलिए हो रहा है, क्योंकि सूचना व तकनीकी के जमाने में दुनिया एक प्लेटफार्म पर आ रही है और वैश्वीकरण की भाषा के तौर पर अंग्रेजी को प्रमुखता दी जा रही है।

हमें दुनिया से जुड़ने के लिए, उसके साथ विकास की इबारत गढ़ने के लिए, उससे अपनी बात कहने के लिए, उसमें अपने प्रभावी दखल के लिए अंग्रेजी को जानना जरूरी हो गया। केवल भावनाओं से ही काम नहीं चलेगा, व्यवहारिकता को भी समझना होगा। प्रतियोगिता के पक्ष में सान्या जैदी और विपक्ष में मानस खंडूड़ी विजेता घोषित किए गए। वाद विवाद में संपत पटनायक, अंजली पंवार, दीक्षा ने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर मानवभारती स्कूल के निदेशक डॉ. हिमांशु शेखर ने कहा कि सभी भाषाओं और बोलियों का सम्मान करना चाहिए।अपनी मातृभाषा व बोली के विकास औऱ संरक्षण के लिए भी गंभीरता से काम किया जाना चाहिए। मानवभारती स्कूल के हिन्दी विभाग कक्षा एक से पांच तक छात्र-छात्राओं के बीच कविता पाठ प्रतियोगिता कराई। इसमें क्लास 5 की समीक्षा प्रथम, क्लास 4 के ऋषभ द्वितीय व क्लास 2 के शौर्य तृतीय रहे।

स्वरचित कविता पाठ में क्लास 9 की अदिति प्रथम, मल्लिका द्वितीय व क्लास 10 की ईशा व शालू तृतीय रहे।  क्लास 6 से  8 तक स्वच्छता अभियान या हिन्दी का महत्व पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। क्लास 8 ए में मनीषा, लहर व हर्षित, क्लास 8 बी में आशीष, स्नेहा व अंजली क्रमशः प्रथम, द्वितीय व तृतीय घोषित किए गए।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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