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फोन का अविष्कार करने वाले ग्राहम बेल की प्रेमिका का नाम था हैलो

वाशिंगटन


क्या आप जानते हैं कि फोन का अविष्कार करने वाले ग्राहम बेल की प्रेमिका का नाम हेलो था। जब ग्राहम बेल ने फोन का अविष्कार किया, तो सबसे पहले गर्लफ्रेंड को फोन किया और बोला- हैलो। उसके बाद इस शब्द का इस्तेमाल लोग भी करने लगे। आज कई लोग भले ही ग्राहम बेल के बारे में नहीं जानते हों या उनका नाम नहीं सुना हो, लेकिन हैलो नाम आज पूरी दुनिया में फैल रहा है। शायद इसी को सच्चा प्यार कहते हैं। माना जाता है कि 1877 में थॉमस एडीसन ने पीट्सबर्ग की सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट एंड प्रिंटिंग टेलीग्राफ कंपनी के अध्यक्ष टीबीए स्मिथ को लिखा कि टेलीफोन पर स्वागत शब्द के रूप में हैलो का इस्तेमाल करना चाहिए। उनकी सलाह को सभी ने मान लिया। उन दिनों टेलीफोन एक्सचेंज में काम करने वाली ऑपरेटरों को हैलो गर्ल्स कहा जाता था। वैसे कुछ लोग ग्राहम बेल की कहानी को अफवाह मानते हैं। उनका कहना है कि हैलो शब्द फ्रेंच के होला शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है रुको और ध्यान दो। कहा तो यह भी जाता है कि ग्राहम बेल की प्रेमिका का नाम मैबेल हुबार्ड था, जिससे उन्होंने 1877 में शादी की थी और 1876 में टेलीफोन का पेटेंट कराया गया था। उन्होंने पहली कॉल बगल के कमरे में बैठे अपने असिस्टेंट को थी, जिससे उन्होंने कहा था यहां आओ, मैं तुम्हें देखना चाहता हूं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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