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घमंडी लाल गुलाब और कैक्टस

बसंत के दिन हैं और जंगल में लाल गुलाब खिला है। वैरी ब्यूटीफुल फ्लावर, जो भी देखता बस यही कहता। अपनी तारीफ सुनकर गुलाब मुस्कराता और घमंड से भर जाता। वह किसी की प्रशंसा को सहन नहीं कर पा रहा है। उसने खुद ही मान लिया कि पूरे जंगल में उससे सुंदर कोई नहीं है।

चीड़ के पेड़ ने गुलाब की ओर देखा और बोला- क्या खूबसूरत फूल है। मुझे लगता था कि मैं सबसे प्यारा हूं। इस पर दूसरे पेड़ ने चीड़ को सांत्वना दिलाई, दोस्त दुखी नहीं होते। सभी को कुदरत ने बनाया है और रूप, रंग और आकार दिया है। इसमें हम कुछ नहीं कर सकते। हमें प्रकृति का थैंक्स करना चाहिए, क्योंकि उसने हमें अपना हिस्सा बनाया है।

उनकी ओर देखकर गुलाब ने कहा, शायद आप नहीं जानते, इस जंगल में अगर कोई सबसे ब्यूटीफुल है तो वह मैं हूं। मेरे सुंदरता, रूप और रंग के सामने कोई नहीं टिकता। इस पर पीले सूरजमुखी ने उसको समझाते हुए कहा, दोस्त आप ऐसा क्यों कहते हो। इस जंगल में तो एक से बढ़कर एक सुंदर फूल खिले हैं। आप तो उन सबमें से एक हो।

सूरजमुखी को घूरते हुए लाल गुलाब बोला, जब तुम्हें कुछ नहीं मालूम तो क्यों बोलते हो। मैं देख रहा हूं कि हर कोई मुझको निहारता है। मैं खूबसूरत हूं, इसलिए तो सभी मेरी ओर देखते हैं।  फिर गुलाब ने अपने पास खड़े कैक्टस को देखते हुए कहा, उस कांटे वाले बदसूरत पौधे को देखो। वह किसी काम का नहीं है। जो उसको पास जाएगा, कांटे चुभा देगा। यह कहते हुए गुलाब तेजी से ठहाके लगाने लगा।

इस पर चीड़ के पेड़ ने कहा, “लाल गुलाब, यह किस प्रकार की बात करते हो। सौंदर्य क्या है, यह कौन बता सकता है। आपके पास भी तो कांटे हैं। चीड़ की बात बीच में काटते हुए लाल गुलाब बोला, चीड़ तुमको कुछ पता है सौंदर्य के बारे में। मैं तो समझा था कि तुम सुंदरता के बारे में कुछ जानते होगे, लेकिन तुम्हें कुछ नहीं मालूम। मेरे कांटों और कैक्टस के शरीर की तुलना करते हो। चीड़ तुम, चुप रहो तो अच्छा है।

गुलाब ने अपने पास ही खड़े कैक्टस से खुद को अलग करने की कोशिश की, लेकिन यह संभव नहीं था। अब तो लाल गुलाब रोजाना कैक्टस को कुछ न कुछ अपमानजनक बातें कहने लगा। गुलाब ने यह तक कह दिया, मुझे दुख हो रहा है कि मैं तुम्हारा पड़ोसी हूं। कैक्टस कभी भी नाराज नहीं हुआ। वह तो गुलाब को हमेशा यही कहता रहा कि प्रकृति ने हम सभी को किसी न किसी उद्देश्य के लिए बनाया है।

बसंत जा चुका था और मौसम गर्म होने लगा। जंगल में जीना कठिन हो रहा था। बारिश नहीं हो रही थी और लाल गुलाब को पानी चाहिए था। एक दिन गुलाब ने देखा कि गौरैया अपनी चोंच को कैक्टस में घुसा रही है। थोड़ी देर में वह उड़ गई। फिर दूसरी गौरैया आई और कैक्टस में अपनी चोंच घुसा कर चली गई। लाल गुलाब ने चीड़ के पेड़ से पूछा कि ये चिड़िया क्या कर रही हैं। चीड़ ने उसको बताया कि पक्षियों को कैक्टस से पानी मिल रहा है। कैक्टस पक्षियों को पानी पिला रहा है।

गुलाब ने पूछा, चिड़िया कैक्टस को चोट पहुंचा रही हैं। वह उसमे ंछेद कर रही हैं। चीड़़ ने कहा- हां, लेकिन पक्षियों को खुश देखने के लिए कैक्टस दुख सहन कर लेता है। आश्चर्य में गुलाब बोला, क्या कैक्टस के पास पानी है।

चीड़ ने कहा, हां उसके पानी को आप भी पी सकते हैं। गौरैया उससे पानी लाकर आपको पिला सकती हैं। पर आप उस बदसूरत पौधे से पानी क्यों लेंगे, आपकी खूबसूरती कम हो गई तो। लाल गुलाब शर्मिंदा हो गया। लेकिन उसे तो प्यास लगी थी और उसने पानी मांग लिया।

कैक्टस तो परोपकार कर रहा था, उसने गुलाब को भी मना नहीं किया। कैक्टस ने गौरैया को कहा कि वह गुलाब को पानी पिला दें। पक्षियों ने अपनी चोंच में पानी भरकर गुलाब की जड़ों तक पहुंचाया। गुलाब ने कैक्टस को सॉरी बोला और स्वीकार किया कि हर किसी का अपना महत्व है। गुलाब ने फिर कभी किसी को बुरा भला नहीं कहा।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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