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इस तरह किया जाए अदरक के बीज का भंडारण

  • डॉ. राजेंद्र कुकसाल
  • लेखक कृषि एवं औद्योनिकी विशेषज्ञ हैं
  • 9456590999
समय पर प्रमाणित/ ट्रूथफुल (Truthful) अदरक का बीज न मिलने के कारण कृषक लाभकारी खेती नहीं कर पा रहे हैं। उद्यान विभाग वर्षों से टेंडर द्वारा निजी फर्मों के माध्यम से पूर्वोत्तर राज्यों असम, मणिपुर, मेघालय व अन्य राज्यों से अदरक क्रय करता है। इस बीज को प्रमाणित / Truthful  रियोडी जिनेरियो किस्म बताकर राज्य के कृषकों को योजनाओं के तहत बांटा जाता है।
अदरक उत्पादकों का कहना है कि उद्यान विभाग से प्राप्त अदरक बीज समय पर नहीं मिल पाता, साथ ही इस बीज से खेतों में कई तरह की बीमारियों का डर रहता है।
प्रगतिशील अदरक उत्पादक स्वयं अपनी उपज से बीज भंडारित करते हैं। इसलिए आवश्यक है कि अदरक की भरपूर उपज के लिए कृषक अपनी स्वस्थ उपज से ही अदरक बीज का भंडारण करें।

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अदरक का बीज भंडारण के लिए निम्न सलाह दी जाती है-
बीज के लिए अदरक उपज को लम्बे समय यानी तीन माह से अधिक ( दिसंबर- मार्च ) तक भंडारण करना होता है। इसलिए आवश्यक है भंडारण सही विधि से करें, जिससे अदरक सड़े नहीं।
जिस खेत में अदरक की फसल पर बीमारियां लगी हों। उस खेत के अदरक को बीज के लिए भंडारण न करें।

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अच्छे सुडौल, पूर्ण रूप से विकसित प्रकंदों का चयन करके उन्हें अलग से रखें तथा अच्छी तरह से छाया में सुखा लें।
प्रकन्दों का भंडारण ठंडे, सूखे ऊंचे एवं छायादार स्थान पर एक उचित वायु संचार युक्त गड्ढों में करना चाहिए।
भंडारण करने से पूर्व गड्ढे को एक भाग फौरमिलीन तथा आठ भाग पानी का घोल बनाकर उपचारित कर दें । गड्ढे के अन्दर घास फूस जलाकर भी गड्ढे को उपचारित किया जा सकता है।
उपचारित गड्ढे की भलीभांति सफाई कर लें तथा उसके अंदर गाय के गोबर और गोमूत्र से भलीभांति पुताई कर एक सप्ताह तक धूप में खुला छोड़ दें, जिससे गड्ढे में नमी न रहे।

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भंडारण करने से कार्बेन्डाजिम (100 ग्राम) और मैन्कोजैव ( 250 ग्राम ) को 100 लीटर पानी में घोल तैयार कर लें। इस घोल में 70 – 80 किलोग्राम अदरक को एक घंटे तक उपचारित करें। घोल का प्रयोग दो बार किया जा सकता है।
ट्राइकोडर्मा कल्चर से भी अदरक बीज का उपचार कर सकते हैं। उपचार छाया में करें। तेज धूप में ट्राइकोडर्मा जीवाणु मर सकते हैं।
अदरक पर हल्का सा पानी छिड़क कर, दस ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलो अदरक बीज की दर से (यानी एक कुन्तल बीज के लिए एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा ) उपचारित करें, जिससे ट्राइकोड्रमा की परत अदरक कंदों पर बन जाए। उपचारित अदरक को छाया में भली भांति सुखाएं।

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बीज भंडारण से पूर्व गड्ढे में सबसे नीचे एक परत रेत या बुरादा या धान की पुलाव बिछा दें। फिर उपचारित बीज को भरें। हवा के संचार के लिए छिद्र युक्त प्लास्टिक के पाइप को गड्ढे के बीच में डालें।
गड्ढे में प्रकन्दों को पूरी तरह से न भरें। एक चौथाई भाग खाली रखें। ऊपर के खाली भाग में सूखी घास रखें तथा गड्ढे को ऊपर से लकड़ी के तख्ते से ढक दें। तख्तों के किनारों को मिट्टी से पोत दें।
हवा के आवागमन के लिए यदि छिद्र युक्त पॉलीथीन पाइप की व्यवस्था नहीं हो पा रही है तो ऊपर से बिछे तख्तों के बीच में हवा के आवागमन के लिए जगह छोड़ दें।

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सही भंडारण के लिए खत्तियों को अच्छी तरह ढंकना जरूरी है। इसके लिए पत्तियों व घास का रिंगाल / बांस के साथ कच्चा ढांचा बनाया जा सकता है, जिससे वर्षा का पानी खत्तियों में जाने से रोका जा सके।
समय समय पर भंडारित अदरक को पलट कर देखते रहें, यदि सड़ा अदरक दिखाई दे तो उसे हटा दें।
टिहरी जनपद के आगरा खाल में अदरक उत्पादक खत्तियों में बीज के लिए अदरक भरने के बाद ऊपर से मालू के पत्तों से बने विशेष आवरण, जिसे स्थानीय भाषा में पितलोट कहते हैं , से ढंक देते हैं। इससे वर्षा का पानी अन्दर नहीं जा पाता। साथ ही, हवा का आवागमन भी बना रहता है, जिससे अदरक बीज सुरक्षित रहता है।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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