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हाथियों के बंटवारे की कहानी

प्राचीन समय की बात है, एक सेठ के पास 17 हाथी थे। मृत्यु से पहले सेठ अपने तीन बेटों को ये हाथी सौंपना चाहता था। सेठ ने तीनों बेटों को पास बुलाया और कहा, इन 17 हाथियों का बंटवारा करना है। सबसे छोटे को कहा, तुम एक तिहाई हाथी ले लेना। दूसरे बेटे से कहा, तुम इनमें से आधे हाथी ले लेना। सबसे बड़े बेटे से कहा, तुमको कुल हाथियों का नौवां हिस्सा मिलना चाहिए। कुछ दिन बाद सेठ की मृत्यु हो गई। 

पिता की मृत्यु के बाद तीनों बेटे यह सोचकर परेशान हो गए कि पिता के आदेश के अनुसार इन हाथियों का बंटवारा कैसे होगा। न तो 17 हाथियों का एक तिहाई किया जा सकता है और न ही आधा हिस्सा। कैसे बांटे जाएंगे ये हाथी। एक दिन तीनों बेटे इसी गणित में फंसे थे, कि अचानक एक साधु उनके आवास पर पहुंचे। साधु ने उनकी परेशानी की वजह पूछी तो उन्होंने हाथियों का बंटवारा कैसे होगा, का सवाल सुलझाने को कहा। 

साधु ने कहा, इतनी सी बात के लिए तीनों परेशान हो। साधु ने कहा, मैं आपको अपनी ओर से एक काल्पनिक हाथी भेंट करता हूं, जब आपका बंटवारा हो जाए तो मेरा हाथी वापस कर देना। साधु के कहने के अनुसार, उनके पास हाथियों की संख्या 18 हो गई। अब 18 हाथियों में से बंटवारा करने बैठे तो सबसे छोटे को एक तिहाई यानी छह हाथी मिल गए। दूसरे बेटे को आधे यानि नौ हाथी दे दिए गए। सबसे बड़े बेटे को नौवां हिस्सा यानि दो हाथी मिल गए।  कुल मिलाकर तीनों बेटों को 17 हाथी हासिल हो गए। 18 वां काल्पनिक हाथी, साधु को वापस मिल गया। 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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