कृषि जानकारीः बरसात में फलों की पौध लगाने से पहले जान लीजिए ये जरूरी बातें
फलदार पौधे पथरीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में लगाए जा सकते हैं
डॉ. राजेंद्र कुकसाल
लेखक कृषि एवं औद्योनिकी विशेषज्ञ हैं
9456590999
बरसात में मुख्य रूप से आम, अमरूद, अनार, आंवला, लीची, कटहल,अंगूर तथा नीम्बू वर्गीय फल पौधों का रोपण किया जाता है। उद्यान लगाने से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखा जाना आवश्यक है।
पौधे लगाने के लिए स्थान का चयन
1. वर्षाकालीन फलदार पौधों के बगीचे समुद्रतल से 1500 मीटर ऊंचाई तक लगाए जा सकते हैं। ढाल का भी ध्यान रखें। पूर्व व उत्तरी ढाल वाले स्थान पश्चिमी व दक्षिणी ढाल वाले स्थानों से ज्यादा ठंडे होते हैं, जो क्षेत्र हिमालय के पास हैं, वहां पर आम, अमरूद, लीची के पौधों का रोपण व्यावसायिक दृष्टि से लाभकर नहीं रहता है। ऐसे स्थानों पर नींबू वर्गीय फलदार पौधों से उद्यान लगाने चाहिए।
2- उद्यान लगाने से पूर्व यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस फल की ज्यादा मांग बाजार में हो, उन्हीं फलों के उद्यान लगाए जाएं।
3- उद्यान सड़क के पास होना चाहिए, यदि यह संभव न हो, तो यह आवश्यक है कि उद्यान में पहुंचने के लिए रास्ता सुगम हो, ताकि फलों का ढुलान सुगमता से किया जा सके। 4- सिंचाई की उपयुक्त व्यवस्था हो।
5- उद्यान कार्य के लिए मजदूर आसानी से उपलब्ध होते हों।
6-उद्यान की सुरक्षा के लिए घेरबाड़ की उचित व्यवस्था हो।
भूमि का चयन तथा मृदा परीक्षण
फलदार पौधे पथरीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में लगाए जा सकते हैं। लेकिन जीवांशयुक्त बलुई दोमट भूमि, जिसमें जल निकास की उचित व्यवस्था हो सर्वोत्तम रहती है। जिस भूमि में उद्यान लगाना है, उस भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं। इससे मृदा में कार्बन की मात्रा , पीएच मान (पावर ऑफ हाइड्रोजन या पोटेंशियल हाइड्रोजन ) तथा चयनित भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल जाएगी।
अच्छी उपज के लिए मिट्टी में जैविक/जीवांश कार्बन 0.8 तक होना चाहिए, लेकिन अधिकतर स्थानों में यह 0.25 – 0.35 प्रतिशत ही पाया जाता है।
जैविक कार्बन कृषि के लिए बहुत लाभकारी है, क्योंकि यह भूमि को सामान्य बनाए रखता है। यह मिट्टी को ऊसर, बंजर, अम्लीय या क्षारीय होने से बचाता है। जमीन में इसकी मात्रा अधिक होने से मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक ताकत बढ़ जाती है तथा इसकी संरचना भी बेहतर हो जाती है
जैविक कार्बन का मृदा में स्तर बढ़ाने के लिए जंगल में पेड़ों के नीचे की ऊपरी सतह की मिट्टी /गोबर और कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करें। पौधारोपण के बाद थावलो में जीवामृत तथा घास की मल्चिंग से भी भूमि का कार्बन लेवल बढ़ाया जा सकता है।
पीएच मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है। यह पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है। यदि मिट्टी का पीएच मान कम (अम्लीय) है तो मिट्टी में चूना या लकड़ी की राख मिलाएं। यदि मिट्टी का पीएच मान अधिक (क्षारीय) है तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट (जिप्सम) है।
भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाए जाने वाले लाभदायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है। साथ ही, हानिकारक जीवाणुओं /फंगस में बढ़ोतरी होती है। मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
अधिकतर फल पौधों के लिए 5.5 से 7.5 के पीएच मान की भूमि उपयुक्त रहती है।
क्षारीय व कम उपजाऊ वाली भूमि में अमरूद तथा आंवले के पौधे लगाए जा सकते हैं।
फलों की प्रजातियों का चुनाव
मुख्य फलों की उन्नतिशील किस्में इस प्रकार हैं।
आम- बाम्बे ग्रीन, बाम्बे यलो, दशहरी, लंगडा, चौसा। बौनी-आम्रपाली ,मल्लिका।
आम के कलमी पौधों की अधिकतर पिंडियां परिवहन के दौरान टूट जाती हैं। इसकी मुख्य जड़ लम्बी होने के कारण नर्सरी से उखाड़ते समय कट जाती है। इन पौधों में रोपण के बाद मृत्यु दर अधिक होती है, इसलिए सलाह है कि खेत में पौधारोपण के साथ साथ पके आम की एक या दो गुठलियां भी थावले में अवश्य बोई जाएं, जिससे कलमी पौधे के मरने की दशा में इन बीजू पौधों पर इनको सीटू ( यथास्थान ) ग्राफ्ट किया जा सके।
अमरूद – लखनऊ 49, इलाहाबादी सफेदा।
लीची – कलकतिया, रोजसेन्टेड, वेदाना।
अनार- गणेश, ढोलका ,वेदाना।
आंवला- हाथी झूल, चकय्या, एन-7, एन-6, कृष्णा, कंचन।
अंगूर – परलैट, हिमराड, पूसा सीडलेस।
कटहल – कटहल के बीजू पौधों का ही रोपण सामान्यत: किया जाता है।
बड़े आकार के अच्छे पके कटहल से बीज निकालकर भी आप सीधे खेत में या पहले पॉलीथिन थैलियों में नर्सरी तैयार कर कटहल के बाग विकसित कर सकते हैं।
नींबू वर्गीय फल पौध इस प्रकार हैं-
माल्टा- माल्टा कॉमन, जाफा ,ब्लड रेड।
संतरा- मेन्डरिन संतरा, श्रीनगर संतरा, हिल ऑरेन्ज, किन्नो।
नींबू – कागजी, कागजी कलां, पंत लेमन, पहाड़ी नींबू।
माल्टा की अपेक्षा संतरा/ नारंगी के पौधों को वरीयता दी जाए। संतरे का बाजार भाव अच्छा मिल जाता है।
रेखांकन तथा गड्ढों की खुदाई –
पौधों के सही विकास और अधिक व अच्छे गुणों वाले फल प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि पौधों को निश्चित दूरी पर लगाया जाए। विभिन्न फलदार पौधों के लिए लाइन से लाइन तथा पौधों से पौध की दूरी इस प्रकार है।
आम, कटहल, आंवला- 10 x 10 स्कवायर मीटर
लीची, बेर 8 x 8 स्कवायर मीटर
अमरूद, नींबू वर्गीय फल 6 x 6 स्कवायर मीटर
अंगूर – 3 x 3 स्कवायर मीटर
पौध लगाने से पूर्व रेखांकन कर , उचित दूरी पर 1x1x1 घन मी आकार के गड्ढे गर्मियों ( मई – जून ) में खोदकर 15 से 20 दिन के लिए खुला छोड़ देना चाहिए, ताकि सूर्य की तेज गर्मी से कीडे़ मकोड़े मर जाएं। गड्ढे खोदते समय पहले ऊपर की 6 इंच तक की मिट्टी खोदकर अलग रख लेते हैं। इस मिट्टी में जीवांश अधिक मात्रा में होता है। गड्ढे भरते समय इस मिट्टी को पूरे गड्ढे की मिट्टी के साथ मिला देते हैं। इसके बाद एक भाग सड़े गोबर की खाद या कम्पोस्ट, जिसमें ट्रायकोडर्मा मिला हुआ हो, को भी मिट्टी में मिलाकर गड्ढों को जमीन की सतह से लगभग 20 से 25 सेमी. ऊंचाई तक भर देना चाहिए, ताकि पौध लगाने से पूर्व गड्ढों की मिट्टी ठीक से बैठ कर जमीन की सतह तक आ जाए।
पौधों का चुनाव-
पौधे खरीदते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
1- सही प्रजाति के पौधे हों।
2- पौधे स्वस्थ एवं मजबूत हों।
3- कलम का जुड़ाव ठीक हो।
4- पौधों की वृद्धि एवं फैलाव मध्यम श्रेणी का हो।
5- चश्मा (कलम) मूलवृत पर 15 से 20 सेमी ऊंचाई पर लगा हो।
6- पौधों की उम्र एक वर्ष से कम तथा 2 वर्ष से अधिक ना हो।
7- पौधों की पिंडी सुडोल हो तथा मुख्य जड़ कटी न हो।
8- पौधों की खरीदारी विश्वसनीय स्थानों, जैसे- राजकीय संस्था, कृषि विश्वविद्यालय अथवा पंजीकृत पौधालयों से ही की जाए।
पौध लगाने का समय तथा विधि-
वर्षाकालीन फल पौधों के लगाने का उपयुक्त समय मानसून की वर्षा शुरू होने पर सही है। माह जुलाई तथा अगस्त में पौधों का रोपण करना चाहिए। पौधे लगाते समय निम्न बातों पर ध्यान देना चाहिए। परागणकर्ता किस्मों के भी कुछ पौधे लगाएं, जैसे आम में दशहरी के साथ बोम्बेग्रीन, आंवले में एन -7 तथा एन -6 के साथ हाथी झूल, चक्य्या आदि।
1- पौधों को गड्ढे के मध्य में लगाना चाहिए।
2- पौधों को एकदम सीधा लगाना चाहिए।
3- पौधों को मिट्टी में इतना दबाया जाए, जितना पौधालय में दबा है।
4- यह भी ध्यान रखा जाए कि किसी भी दशा में पौधों की कलम के जोड़ वाला भाग मिट्टी से ना ढकने पाए।
5- पौध लगाने के बाद मिट्टी की पिंडी के चारों ओर से अच्छी तरह से हल्के से दबाना चाहिए। ध्यान रहे, पौधे की पिंडी न टूटने पाए। इसके बाद किसी सीधी लकड़ी से पौधों को सहारा देना चाहिए।
6- लीची का नया बाग लगाने के लिए गड्ढों को भरते समय, जो मिट्टी व खाद आदि का मिश्रण बनाया जाता है, उसमे लीची के पुराने बाग कि मिट्टी अवश्य मिला देनी चाहिए। क्योंकि, लीची कि जड़ों में एक प्रकार की सहजीवी कवक, जिसे माइकोराइजा कहते हैं, पाई जाती है। यह कवक पौधों की जड़ों में रहता है तथा पौधों को फोस्फोरस बोरोन और जिंक पोषक तत्व भूमि से उपलब्ध कराता है। इससे पौधे अच्छी प्रकार – फलते फूलते हैं। नये पौधे में भी कवक अथवा लीची के बाग की मिट्टी मिलाने से मृत्युदर कम हो जाती है।
पौधे लगाने के बाद की देखभाल-
1- पौधे लगाने के तुरन्त बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। यदि वर्षा न हो तो आवश्यकतानुसार पौधे की सिंचाई करते रहना चाहिए।
2- पौधे के मूलवृतों से निकले कल्लों को समय-समय पर तोड़ते रहना चाहिए।
नींबू वर्गीय पौधों में अनियमित तथा दोषपूर्ण कांट छांट के कारण एकाएक पौधों के मध्य से कोमल , हरे चपटे , चौड़ी पत्ती के तथा अति शीघ्र बढ़ने वाली शाखाएं निकलती हैं, जिन्हें जल प्रारोह (water shoots) कहते हैं। इन शाखाओं को शीघ्र निकाल देना चाहिए।
3- जहां पर पानी की कमी हो तो नमी सुरक्षित रखने के लिए सूखी घास या पत्तियों से थावलों में अवरोध परत लगा देनी चाहिए।
4- शुरू के वर्षों में पौधों को ठंड/पाला से बचाव के उपाय करने चाहिए।
फल पौध पंजीकृत पौधशालाओं से ही खरीदें। साथ ही, भुगतान की रसीद अवश्य प्राप्त करें। यदि उद्यान विभाग द्वारा योजनाओं में फल पौध लगाए जा रहे हैं तो उसके भी प्रमाण सुरक्षित रखें। इससे पौधों की गुणवत्ता कम पाए जाने पर आप नर्सरी एक्ट के तहत अपना दावा कर सकते हैं।