छत पर मछलियां पालकर भी मुनाफा कमा सकते हैं आप
डोईवाला के झड़ौंद गांव में ललित सिंह बिष्ट कर बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
मछली पालन सुनते ही सबसे पहले ध्यान एक बड़े तालाब की ओर जाता है, पर तकनीकी में बदलाव के साथ ही, मछली पालन के तौर तरीके भी बदल रहे हैं। आप कम जमीन पर तालाब खोदे बिना भी मछलियां पालकर मुनाफा कमा सकते हैं। यहां तक कि छत पर मछली पालने के लिए टैंक बना सकते हैं। यहां भी आपको लागत से कहीं ज्यादा आय हो सकती है। इस तकनीकी को बायोफ्लॉक तकनीकी कहते हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों, जहां बड़े तालाब के लिए जमीन न भी मिले, तो आप इस तकनीक को इस्तेमाल कर सकते हैं।
देहरादून जिले के डोईवाला ब्लॉक के झड़ौंद गांव में 36 साल के युवा ललित सिंह बिष्ट ने करीब सात साल पहले 2016 में इंटीग्रेटेड फार्मिंग की शुरुआत की। होटल मैनेजमेंट पासआउट ललित सिंह ने लगभग दो बीघा में मछली पालन शुरू किया। उन्होंने मत्स्यपालन विभाग से प्रशिक्षण लिया और मछली पालन की बारीकियों को समझा। पहले ही वर्ष में मुनाफे की स्थिति ने उनको इस दिशा में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया।
2019 में मत्स्यपालन विभाग ने बायोफ्लॉक तकनीक से परिचय कराया, जिसके लिए उन्होंने लगभग चार बीसा भूमि पर सात टैंक बनाए, जिनमें से प्रत्येक का वॉल्युम लगभग 15 हजार लीटर है। एक टैंक में लगभग 400 से 600 मछलियां पाली जा सकती हैं। पर, यह हार्वेस्टिंग साइज (मछली के वजन) पर निर्भर करता है।
यदि आप मानते हैं कि मछलियों का वजन 750 ग्राम से एक किलो तक हो, तो एक टैंक में 300 से 400 मछलियां आप रख पाएंगे। यदि 200 ग्राम से 400 ग्राम तक की मछलियां रखना चाहते हैं तो इनकी संख्या बढ़कर 400 से 600 हो सकती है। एक टैंक में लगभग आधा-आधा किलो वजन की 400 मछलियों की उपज हासिल की जा सकती है। मछलियों की संख्या, उपज पाने के समय उनके वजन पर निर्भर करती है। यदि आप मछली का वजन अधिक चाहते हैं, तो उनकी संख्या कम करनी पड़ेगी। कुल मिलाकर आपको वजन तो हर स्थिति में समान मिलेगा, पर मछलियों की संख्या घट या बढ़ सकती है।
एक टैंक के इन्फ्रा पर खर्चा लगभग 35 से 40 हजार रुपये तक आता है, जो पहली उपज में ही हासिल हो सकता है। यदि आप रिटेल में बिक्री करते हैं तो यह लाभ का सौदा हो सकता है। यदि आप इसका पूरा कांट्रेक्ट देते हैं यानी होल सेल में बेचते हैं, तो कभी कभी इसमें अधिक फायदा नहीं भी होता, क्योंकि होल सेल का प्राइस मंडी में उस समय चल रहे रेट पर निर्भर करता है, जो कभी बढ़ा हुआ हो सकता है और कभी रेट कम सकते हैं।
बायो फ्लॉक तकनीक पर्वतीय इलाकों के मुफीद है, क्योंकि इसके लिए अधिक जगह की आवश्यकता नहीं है। इसको जरूरत पड़ने पर एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट भी किया जा सकता है।
अधिक जानकारी के लिए देखिए यह वीडियो-
आइए जानते हैं बायोफ्लॉक तकनीक क्या है (What is Biofloc technology)
बायोफ्लॉक तकनीक (Biofloc technology) एक ऐसी विधि है जो एक्वाकल्चर में पानी की गुणवत्ता को बेहतर बनाने और मछली पालन प्रणाली की कुल उत्पादकता में सुधार करने के लिए इस्तेमाल होती है। “बायोफ्लॉक” शब्द का उपयोग “जैविक” और “फ्लॉक” का संयोजन है, जहां फ्लॉक से तात्पर्य जल में बनने वाले जीवाणु, विशेषकर बैक्टीरिया और शैवाल, से है।
जल संयंत्रों में जल गुणवत्ता को बनाए रखना मछली की सेहत और विकास के लिए महत्वपूर्ण है। अधिशेष पोषण, जैसे कि अनखाए चारा और कच्चे भोजन के उत्पन्न होने की कमी, पानी प्रदूषण का कारण बन सकती है और सामान्यत: उपज पर प्रभाव डाल सकती है। बायोफ्लॉक तकनीक इन समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करती है और पानी के भीतर जैविक समुदाय के विकास को प्रोत्साहित करने का उद्देश्य है।
बायोफ्लॉक तकनीक की प्रमुख विशेषताएं शामिल हैं:
- माइक्रोबायोलॉजिकल फ्लॉक्स: इस प्रणाली में माइक्रोबायोलॉजिकल फ्लॉक्स के विकास को प्रोत्साहित किया जाता है, जो बैक्टीरिया, शैवाल, और अन्य सूक्ष्मजीवों से मिलकर बनते हैं। ये फ्लॉक्स ऑर्गेनिक मात्रा, जैसे कि अनखाए चारा और कच्चे भोजन, को बायोमास में बदलने करने में मदद करते हैं।
- पानी की गुणवत्ता प्रबंधन: माइक्रोबायोलॉजिकल कम्युनिटी यानी सूक्ष्म जीवों के समूहों को प्रक्रिया और पुनर्चक्रण के लिए प्रोत्साहित करके बायोफ्लॉक प्रणाली पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने में मदद कर सकती है। यह पानी अदला बदला की आवश्यकता को कम कर सकती है, जैसा कि पारंपरिक एक्वाकल्चर प्रणालियों में सामान्य है।
यह जल प्रदूषण को कम करता है और पैथोजेन के प्रवेश और प्रसार के जोखिम को समाप्त करने में मदद करता है।”पैथोजेन” किसी जीवाणु, जैविक या अजैविक तत्व को दर्शाता है जो रोग उत्पन्न कर सकता है या रोग का कारण बन सकता है। ये जीवाणु या तत्व व्यक्ति, पौध, या जीवाणुओं के समूहों को आक्रमण करके उन्हें संक्रमित कर सकते हैं और उनमें रोगप्रद बदलाव पैदा कर सकते हैं।पैथोजेन रोग के प्रसार का कारण बन सकते हैं और इसे बचाव और उपचार के लिए महत्वपूर्ण बनाते हैं। ये विभिन्न प्रकार के जीवाणु, विषाणु, फंगस, और प्रोटोजोआ जैसे जीवाणु रूपों में हो सकते हैं।पैथोजेन्सिस (pathogenesis) का अध्ययन रोग बनने और विकसित होने के प्रक्रिया को समझने में मदद करता है। वैज्ञानिक और चिकित्सकों के लिए पैथोजेनेसिस का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है ताकि वे रोगों के खिलाफ सुरक्षा और उपचार की तकनीकों को बेहतर समझ सकें
- पोषण चक्रण: माइक्रोबायोलॉजिकल फ्लॉक्स पोषण चक्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अमोनिया, एक सामान्य मछली के अपशिष्ट पदार्थ, को नाइट्रेट में बदलते हैं, जो जलीय जीवों के लिए कम विषाक्त है।
- स्टॉकिंग डेंसिटी में वृद्धि: बायोफ्लॉक प्रणालियों में पारंपरिक प्रणालियों की तुलना में उच्च स्टॉकिंग डेंसिटी की अनुमति हो सकती है। यह दिए गए स्थान पर अधिक उत्पादन की ओर संकेत कर सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव की कमी: बायोफ्लॉक तकनीक पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने का प्रयास करती है।
यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि बायोफ्लॉक तकनीक को सफल बनाने के लिए की-पैरामीटर्स, जैसे कि विघटित ऑक्सीजन, pH, और कार्बन-टू-नाइट्रोजन अनुपात, की सावधानी से प्रबंधन और मॉनिटरिंग की जाए। इसके अलावा, प्रणाली डिज़ाइन, प्रबंधन अभ्यास, और पाले जाने वाले जीवों की आवश्यक पोषण की सही व्यवस्था भी एक बायोफ्लॉक प्रणाली की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
बायोफ्लॉक तकनीक को एक सतत और पर्यावरण-मित्र आक्वाकल्चर दृष्टिकोण से लोकप्रियता मिल रही है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता सिस्टम डिजाइन, , प्रबंधन विधियों, और पाली जाने वाली प्रजातियों की विशेष आवश्यकताओं के आधार पर भिन्न हो सकती है।