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अभिमानी शासक को वृद्ध ने लाठी से सिखाया यह पाठ

प्राचीन समय में किसी अफ्रीकी देश का शासक बड़ा अभिमानी और कठोर व्यक्तित्व का था। वह हमेशा ढींगे हांकता और चापलूसों से घिरा रहता था। एक दिन वह अपने दरबार में बैठा था और दरबारियों से अपनी प्रशंसा सुन रहा था। इस बीच वह जोर से बोलने लगा कि वह पूरी दुनिया का स्वामी है और सभी लोग उसके सेवक हैं। उससे बढ़कर दुनिया में कोई नहीं है।

उसके इतना कहते ही दरबार में एक व्यक्ति ने बड़ी धीमी आवाज में कहा, आप पूरी तरह से गलत हैं। सभी अच्छे लोग एक दूसरे के सेवक हैं। अपनी बात के खिलाफ किसी को बोलते देख अभिमानी शासक ने कहा, कौन है जिसने मेरे खिलाफ बोलने की हिम्मत की। उसके यह कहते ही पूरे दरबार में सन्नाटा छा गया। सभी लोगों को पता था कि इसके खिलाफ बोलने वाले की जिंदगी की खैर नहीं है।

दरबार में छाई चुप्पी के बीच एक आवाज आई, मैंने कहा- आप गलत हैं। दुनिया में सभी एक दूसरे के सेवक हैं।  शासक ने कहा, आगे आओ, मैं भी तो देखूं, किसने मेरे खिलाफ बोलने की गुस्ताखी की। तभी एक बूढ़ा व्यक्ति उसके सामने पहुंच गया। उसने गर्दन झुकाकर प्रणाम करते हुए शासक से कहा, मेरे गांव में पानी का संकट है। मैं आपसे एक कुआं बनवाने की मांग करने आया हूं। इस पर शासक ने कहा, अच्छा तो तुम मुझसे कुछ मांगने आए हो। तुम्हारा इतना साहस कि, मुझसे मेरे ही दरबार में बहस कर रहे हो। तुम्हें बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा है। वृद्ध व्यक्ति ने कहा, हम सब एक दूसरे की सेवा करते हैं, इसलिए मुझे आपसे डरने की जरूरत नहीं है। यह बात मैं आपके सामने साबित करके दिखा दूंगा कि हम सभी एक दूसरे की सेवा करते हैं या नहीं।

इस पर अभिमानी शासक ने कहा, तुम अगर साबित कर दो कि मैं तुम्हारा सेवक हूं तो तुम्हारे गांव में एक नहीं तीन कुएं बनवा दूंगा। अगर तुम यह साबित करने में सफल नहीं हुए तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग करा दूंगा। वृद्ध ने जवाब दिया, मुझे आपका यह चैलेंज स्वीकार है। क्या आप मुझे अपने चरणों का स्पर्श करने की अवसर दे सकते हैं। शासक ने कहा, तुम मेरे पैरों को छू सकते हो, सभी तो यह करते हैं। वृद्ध व्यक्ति ने पैर छूने से पहले शासक से कहा, मेरी लाठी पकड़ो। शासक ने उसकी लाठी पकड़ ली और वृद्ध ने उसके चरणों को स्पर्श किया। चरण छूने के बाद वृद्ध ने शासक से कहा, अब आप लाठी मुझे वापस कर दो। शासक ने उसको लाठी वापस कर दी। वृद्ध ने कहा, क्या आपको सबूत मिल गया।

शासक ने कहा, कैसा सबूत, कौन सा सबूत। वृद्ध ने कहा, अब इस बात का और कौन सा सबूत चाहिए आपको कि हम सब एक दूसरे के सेवक हैं। शासक बोला, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, पूरी बात समझाओ। वृद्ध ने कहा, जब मैंने आपसे कहा, मेरी लाठी पकड़ो, आपने लाठी को पकड़ लिया। जब मैंने आपसे कहा, लाठी वापस कर दो, आपने लाठी वापस कर दी। आपने मेरी बात को सुना और उसका पालन किया। जैसा कि मैंने कहा था कि सभी अच्छे लोग एक दूसरे के सेवक होते हैं। अब शासक को वृद्ध की पूरी बात समझ में आ गई। उसने खुश होकर वृद्ध के गांव में तीन कुएं बनवाए। यही नहीं, उसने वृद्ध को अपना सलाहकार नियुक्त कर दिया।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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