डोईवाला के इंजीनियर और उनके भाई ने इस हुनर से जीता लोगों का दिल
डोईवाला के देहरादून रोड पर बुलेट बाइक का सर्विस सेंटर चला रहे हैं दोनों भाई
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग
पॉलिटेक्निक से सिविल में डिप्लोमा धारक 29 साल के मोहम्मद आकिब और उनके छोटे भाई 25 साल के मोहम्मद अली, जिन्होंने ग्रेजुएशन किया है, डोईवाला के देहरादून रोड पर बुलेट बाइक का सर्विस सेंटर चला रहे हैं। आकिब कहते हैं, कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता, जब भी मौका मिलता है भाई के साथ मिलकर बाइक की सर्विस में हाथ बंटाता हूं। मेहनत करने की सीख हमें पिता से मिली है।
डुग डुगी से एक वार्ता में, मोहम्मद अली बताते हैं, “मैं कंपीटिशन की तैयारी कर रहा था। भाई आकिब पॉलिटेक्निक के बाद दिल्ली में जॉब कर रहे थे। भाई वहां से जॉब छोड़कर आ गए, क्योंकि उनको दिल्ली की भागदौड़ वाली लाइफ पसंद नहीं आई। उनके आने पर हमने अपने पिता, जिनका हमारे साथ दोस्ताना व्यवहार रहता है, के साथ बैठकर कुछ अपना काम ही करने का निर्णय लिया। आकिब ने डोईवाला में ही कंस्ट्रक्शन संबंधी, नक्शों आदि का कार्य शुरू करने के लिए आफिस खोला और मैंने अपने जीजा, जो देहरादून में रहते हैं, की वर्कशॉप पर बुलेट बाइक की सर्विस का काम सीखा।”
अली बताते हैं, इसके बाद, “हम दोनों भाइयों ने डोईवाला कोतवाली के पास देहरादून रोड पर सर्विस सेंटर खोला। लगभग छह साल हो चुके हैं, हम दोनों भाई खुद काम करते हैं।”
अली हंसते हुए कहते हैं. “शुरुआत में हमने सोचा था कि एक मैकेनिक को नियुक्त करके सर्विस सेंटर और पार्ट्स की शॉप चला लेंगे। हम एक ऊंची कुर्सी पर बैठकर कामकाज करेंगे। पर, कुछ दिन में ही समझ में आ गया कि यह काम उतना आसान नहीं है, जितना हम समझ रहे हैं। मैकेनिक के साथ खुद भी काम करना होगा। अच्छा हुआ, मैंने काम सीखा हुआ था, नहीं तो मैकेनिक के जाने के बाद हमें काफी दिक्कतें झेलनी पड़ती।”
“हमारे मैकेनिक बहुत समझदार अनुभवी व्यक्ति थे। स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने काम छोड़ दिया। इसके बाद, हम दोनों भाइयों ने सर्विस सेंटर संभाल लिया। सबकुछ अच्छा चल रहा है। औसतन लगभग 30 से 40 हजार रुपये आय हो जाती है,” अली कहते हैं।
एक सवाल पर इंजीनियर मोहम्मद आकिब कहते हैं, “कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता। यहां कुछ ऐसे लोग भी आते हैं, जिनका व्यवहार, भाषा अच्छे नहीं होते। तब हम सोचते हैं, हम यह क्या काम कर रहे हैं। मन टूट सा जाता है। पर, फिर हम सोचते हैं, शायद इन लोगों ने ऐसा ही सीखा होगा, इसलिए इस खराब व्यवहार से अपना परिचय दे रहे हैं।”
ग्रेजुएट मोहम्मद अली प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, का कहना है, “मेरे कई दोस्त सरकारी सेवाओं में हैं और कुछ यहां तहसील और कोर्ट में वकालत कर रहे हैं। शुरुआत में, मैं उनको देखते ही सोचने लगता कि ये मुझे देखकर क्या कहेंगे, ये तो मोटर साइकिल की सर्विस करता है। मैं निराश होने लगा। पर, मेरे पापा ने मुझे समझाया, जो भी तुम कर रहे हो, वो बड़े हुनर का काम है। हुनर को हमेशा सलाम किया जाता है। ईमानदारी से काम करो, अपनी मेहनत का जायज पैसा लो, जिससे बरकत मिलेगी। धीरे-धीरे मैं अपने काम में मन लगाने लगा। करीब छह साल हो गए हैं, हम अपने काम में लगे हैं।”