देहरादून। जेपी मैठाणी
रिस्पना एक नदी ही नहीं बल्कि वर्षों पुरानी सभ्य़ता है। रिस्पना ने अपने इर्द गिर्द इतिहास को बुना है और वर्षों पहले की परंपराओं को संजीवनी देने वाली इस नदी आज खुद अपने इलाज के लिए संजीवनी की जरूरत है। अंग्रेजी शासन से पहले रानी कर्णावती ने रिस्पना नदी पर सबसे पहला बैराज केलाघाट में बनवाया था। यह बैराज लगभग 350 साल पुराना है। वर्तमान में इस बैराज पर लोहे की मोटी सांकलें पूली से जुड़ी हैं, जो बैराज के दरवाजों को खोलने और बंद करने के लिए प्रयोग की जाती हैं .
रिस्पना के बैराज के ऊपर की ओर शिव मंदिर के पास आज भी है बावड़ी । newslive24x7.com/JP Maithani
इतिहास में बताया गया है कि राजपूत राजकुमारी रानी कर्णावती और उनके पति कुंवर अजब सिंह जिन्हें अजबू कुंवर या अजबू कौर भी कहते थे, उन्होंने 17वीं शताब्दी में सबसे पहले बैराज का निर्माण कराया था। इतिहासकार लाल के अनुसार रानी कर्णावती आदेशों का पालन नहीं करने वालों की नाक कटवा देती थीं। इसलिए रानी कर्णावती को नाक कटनी भी कहा जाता था। रानी कर्णावती ने ही वर्तमान करनपुर की स्थापना भी की। केलाघाट में बैराज के बाद बनी राजपुर नहर की देखरेख का काम 1820 की शुरुआत में श्री गुरुराम राय गुरुद्वारा के महंत द्वारा कराया जाने लगा। बाद में राजपुर नहर की देखरेख 1841 से 1844 के बीच अंग्रेजों ने की।
प्रेम हरिहर लाल की पुस्तक द दून वैली डाउन द एजेज में नहर से संबंधित रोचक विषयों को संकलित किया गया है। अब यह नहर उत्तराखंड के सिंचाई विभाग के अधिकार क्षेत्र में है। मुख्य रूप से राजपुर नहर का निर्माण कार्य एवं विस्तार 1841 से 1844 के बीच में हुआ बताया गया है। इतिहासकार विलियम्स ने 1874 में राजपुर नहर के बारे में लिखा है कि रिस्पना नदी पर हाथ की क्रेन पूली का बैराज बना हुआ था। इस पर लकड़ी के मोटे तख्ते लगे हुए हैं। यह कार्य अंग्रेजों ने 1840 में किया था।
रिस्पना नदी पर बने प्राचीन घराटन के अवशेष । newslive24x7.com/JP Maithani
वर्तमान में भी यह बैराज स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। बैराज के ऊपर की तरफ रिस्पना के दायें तट पर औऱ राजपुर चौक बाजार के पीछे की तरफ पहाड़ी ढाल पर प्राचीन मंदिरों के अवशेष दिखाई देते हैं, जिनका शिल्प श्री गुरुराम दरबार से मिलता है। इन मंदिरों के पास ही आम, बरगद, पीपल के सैकड़ों वर्ष पुराने पेड़ हैं। मंदिरों के भीतर जल संग्रहण की बावड़ियां हैं। साथ ही मंदिर के पास पूर्व दिशा में टूटी हुई बड़ी बावड़ी आज भी दिखाई देती है, जिसमें पानी मौजूद है। यानि रिस्पना के संपूर्ण जलागम क्षेत्र में छोटी-छोटी जलधाराओं के आसपास सामाजिक, सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक मंदिर के साथ छोटे कुएं और बावड़ियां आज भी दिखते हैं।परन्तु इन पर अवैध कब्जों का संकट मंडरा रहा है।
बैराज से नीचे आम और लीची के घने बागीचे के बीच केलाघाट मंदिर स्थित है। मंदिर की दीवारों पर लगभग दो सौ वर्ष पुराने भित्तिचित्र बने हुए थे, जिन पर अवैध कब्जा करके एक भूमाफिया ने चूना पोत दिया है, जिससे इस मंदिर की दीवारों पर लगे भित्तिचित्र नष्ट हो गए हैं। केलाघाट मंदिर के पास एक अन्य छोटे मंदिर पर भूमाफिया ने ताला लगा दिया है। साथ ही प्राकृतिक छोटी जलधारा पर गेट लगाकर उस पर भी ताला लगा दिया गया है। इस कारण कोई भी जलधारा के स्रोत तक नहीं पहुंच पा रहा है। यह जलधारा बरसात में रिस्पना में मिलती है। केलाघाट मंदिर से थोड़ा नीचे शहर की ओर तुतुल्य मंदिर है, जिसमें जल संग्रहण की सुंदर बावड़ियां भी बनी हैं।
रिस्पना में नदी में उग आए कंक्रीट के जंगल। newslive24x7.com/JP Maithani
रिस्पना अपने उद्गम से लगातार अवैध कब्जे की जद में है। मसूरी की जड़ से निकलने वाली रिस्पना नदी का शिखर फ़ॉल के बाद जलस्तर कम हो जाता है। रिस्पना नदी की पूर्व दिशा में सहस्रधारा रोड है। रिस्पना के समानांतर बहने वाली राजपुर नहर पर कई घराट या वाटर मिल हैं। वर्तमान में सुमन नगर वैष्णोदेवी मंदिर के सामने दो घराट से थोड़ा ऊपर नये बन रहे धार्मिक स्थल के सामने और पीछे भी घराटों के अवशेष बाकी हैं।
राजपुर नहर के प्राचीन घराट पर बिजली के खम्बों के लिए खोदे गए गड्ढे। newslive24x7.com/JP Maithani
यह बेहद दुखद है कि इस घराट की पिछली दीवार को खोदकर यहां पर ऊर्जा निगम बिजली के खंभे लगा रहा था, लेकिन राजपुर कम्युनिटी फेस्टिवल की आयोजक रीनू पॉल, जो कि वर्तमान राजपुर कम्युनिटी इनीशियेटिव की प्रमुख सदस्य तथा मानवाधिकार विशेषज्ञ एवं वकील हैं, ने त्वरित कार्रवाई कराते हुए सिंचाई विभाग के सचिव के सहयोग से घराट के ऊपर से ले जाई जा रही हाइटेंशन लाइन को हटवाया। यह समस्त प्राचीन घराट ब्रिटिश स्थापत्यकला के शानदार नमूने हैं, इनका जिक्र विलियम स्टिक्टर ने अपने शानदार एेतिहासिक लेख में किया है। इन घराटों या वाटर मिलों को पुनः संरक्षित कर संपूर्ण रिस्पना नदी को शिखर फॉल से काठबंगला तक सभी प्रकार के अतिक्रमण, अवैध निर्माण, खनन से मुक्त कराना चाहिए। इस क्षेत्र में बड़़े निर्माण कार्य और नदी की छोटी जलधाराओं से छेड़छाड़ बंद की जानी चाहिए। साथ ही काठबंगला से शिखर पॉल तक इको टूरिस्म या सांस्कृतिक विरासत ट्रेक बनाना चाहिए औऱ सांस्कृतिक विरासतों का संरक्षण किया जाए। तभी रिस्पना को पुनर्जीवित किया जा सकेगा।