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ऊंचे पहाड़ से छलांग लगाकर खेतों में मां और बंधुओं के साथ विराजमान हैं दाना देवता

फसलों के देवता हैं दानेश्वर, नए अनाज का सर्वप्रथम भोग अर्पित करते हैं ग्रामीण

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव

ऊखीमठ से लगभग पांच किमी. दूरी पर संसारी गांव के खेतों में दानेश्वर देवता अपनी माता और भाई बंधुओं के साथ विराजमान हैं। ग्रामीणों की सुनाई, लोककथा के अनुसार, दानेश्वर देवता एक युद्ध के दौरान मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित ऊँचे पहाड़ से छलांग लगाकर खेतों में स्थापित हुए।

रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी. दूर ऊखीमठ ब्लाक स्थित संसारी वन पंचायत के सरपंच गजपाल सिंह रावत, स्थानीय ग्रामीण धुमा देवी और विजय सिंह के साथ एक के बाद एक खेत को पार करते हुए दाना देवता के दर्शनों के लिए पहुंचे। इस खेत के पास स्थित तेज ढाल से होते हुए सीधे मंदाकिनी नदी के पास पहुंचा जा सकता है। तेज वेग वाली मंदाकिनी नदी के शोर के बीच दाना देवता के दर्शन आत्मिक शांति वाले पल होते हैं।

लोक कथा के अनुसार, गुप्तकाशी मार्ग स्थित इस पहाड़ से दानेश्वर देवता ने छलांग लगाई थी। फोटो- राजेश पांडेय

धूमा देवी और सरपंच गजपाल सिंह रावत दाना देवता के बारे में एक लोककथा सुनाते हैं। धुमा देवी बताती हैं, पुराने लोग कहते हैं कि बाणासुर के साथ युद्ध के दौरान दाना देवता ऊंचे पहाड़ से छलांग लगाकर यहां पहुंचे थे। धुमा देवी इन खेतों में अक्सर घास पत्ती लेने आती हैं और प्राचीन मूर्ति के समक्ष फूल अर्पित करके नमन करती हैं। वो बताती हैं, कि जब भी गांव में कोई शादी होती है तो वर वधु दाना देवता की पूजा अर्चना के लिए यहां आते हैं।

रुद्रप्रयाग जिला के संसारी गांव में खेतों में विराजमान दानेश्वर देवता की प्राचीन मूर्ति के समक्ष ग्रामीणों के साथ । फोटो- हिकमत सिंह रावत

सरपंच रावत धुमा देवी की सुनाई लोककथा को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं, यह मूर्ति कितने वर्ष पहले की है, इस बारे में हम साफ तौर पर कुछ नहीं कह सकते। यह तो वैज्ञानिक जांच से पता चल सकता है। प्राचीन मूर्ति में आप दानेश्वर देवता के हाथ में शस्त्र देख सकते हैं और उनका एक हाथ और एक पैर भी क्षतिग्रस्त है। माना जाता है कि युद्ध के दौरान उनको नुकसान पहुंचा था।

रुद्रप्रयाग जिला के संसारी गांव में खेतों में विराजमान दानेश्वर देवता की प्राचीन मूर्ति के समक्ष ग्रामीणों के साथ सामाजिक कार्यकर्ता हिकमत सिंह रावत । फोटो- राजेश पांडेय

रावत के अनुसार, दाना देवता खेतों में रहते हैं, इस कारण हमारे बुजुर्गों ने इनकी दाना पानी यानी फसलों का देवता मानकर पूजा की।दाना यानी अनाज शब्द से वो दानेश्वर देवता के नाम से प्रसिद्ध हुए। नई फसल का सर्वप्रथम भोग दाना देवता के समक्ष अर्पित किया जाता है। वर्ष में दो बार दाना देवता का पूजन होता है।

वो बताते हैं, गांव में किसी भी सार्वजनिक आयोजन के लिए दाना देवता से अनुमति लेना अत्यंत अनिवार्य है। अनुमति के लिए देवता को अवतरित किया जाता है और वो ही कार्यक्रम की तिथि की घोषणा करते हैं। दाना देवता, हमारे गांव को समृद्धि, खुशहाली और हरियाली प्रदान करते हैं। उनके समक्ष सच्चे हृदय से की गई मनोकामना पूर्ण होती है।

रुद्रप्रयाग जिला के खेतों में विराजमान दाना देवता की माता और उनके भाई बंधुओं की प्राचीन मूर्तियां। फोटो- राजेश पांडेय

दाना देवता के समक्ष दीपक प्रज्ज्वलित करके मत्था टेकने के बाद ग्रामीण हमें पास में ही खेतों में उस स्थान पर ले गए, जहां दाना देवता की माता और उनके भाई बंधु विराजमान हैं। ग्रामीण विजय सिंह बताते हैं, दाना देवता के साथ उनकी माता और भाई बंधुओं की भी पूजा की जाती है। बुजुर्गों ने बताया कि मां अपने पुत्र की रक्षा के लिए यहां आई हैं। हम इनको माताजी के नाम से पुकारते हैं।

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राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन कर रहे हैं। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते हैं। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन करते हैं।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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