Short story- Moral Values

चूहों का पीछा क्यों करती हैं बिल्लियां

क्या आप जानते हैं कि बिल्लियां चूहों का पीछा क्यों करती हैं। इसके पीछे एक चीन की कहानी है। हजारों साल पहले चीन के सम्राट ने 12 साल का राशि चक्र बनाने के लिए जानवरों की दौड़ कराई। दौड़ जीतने वाले 12 जानवरों के नाम से 12 साल का राशि चक्र बनाया जाना था। हर जानवर के नाम पर एक वर्ष का नाम रखा जाना था। दौड़ के लिए सभी जानवरों को आमंत्रित किया गया। 

बिल्ली और चूहे को भी इस रेस में भाग लेना था, लेकिन दोनों सुबह देरी से उठते थे। दौड़ में शामिल होने से छूट न जाएं, इसलिए उन्होंने अपने मित्र बैल से कहा था कि वो उनको सही समय पर नींद से जगा दे। निर्धारित समय से पहले बैल अपने दोस्तों चूहे और बिल्ली के घर पहुंचा और उनको उठाने का प्रयास किया। दौड़ का समय नजदीक आ रहा था, लेकिन चूहा और बिल्ली काफी जगाने के बाद भी नहीं उठ रहे थे। कभी आंखें खोल लेते और फिर करवट बदलकर सो जाते। 

बैल ने सोचा, इनके चक्कर में रहा तो मैं भी दौड़ में शामिल नहीं हो पाऊंगा। उसने दोनों को अपनी पीठ पर लादा और रेस में शामिल हो गया। रेस के अंतिम चरण में नदी को पार करना था। बैल जैसे ही नदी को पार करने लगा, वैसे ही चूहे ने होशियारी दिखाते हुए पीठ पर लदी बिल्ली को धक्का देकर नदी में गिरा दिया और खुद बैल से आगे कूदकर रेस के अंतिम निशान को पार कर लिया। चूहा जानता था कि वह बिल्ली को रेस में कभी नहीं हरा सकता, इसलिए उसने बिल्ली को धक्का देकर गिरा दिया। 

चूहा पहले, बैल दूसरे और बाघ तीसरे नंबर पर आया। बाघ ने भी अन्य जानवरों को धोखा दिया था। उसने निशान के रूप में तैर रहे जानवरों की पीठ पर पंजे रखकर छलांग लगाते हुए नदी को पार किया था। इस तरह 12 वर्ष का चीनी राशि चक्र चूहे से शुरू होता है। उसके बाद बैल, बाघ आते हैं। इनके बाद क्रम से खरगोश, अजगर, सांप, घोड़ा, बकरी, बंदर, मुर्गा, कुत्ता और सुअर का नंबर आता है। 

बिल्ली को राशि चक्र में कोई जगह नहीं मिलने का काफी अफसोस हुआ। तब से वह चूहे की दुश्मन बन गई।  बिल्ली थोड़ा सा सतर्क हो जाती तो वह राशि चक्र में पहले नंबर पर होती। कहा जाता है कि बिल्लियां अपने पूर्वज के अपमान का बदला लेने के लिए चूहों का पीछा करती हैं। 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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