Short story- Moral Values

किसान और बूढ़ा खच्चर

किसी गांव में एक किसान रहता था। उसके पास एक बूढ़ा खच्चर था। एक दिन गलती से खच्चर किसान के कुएं में गिर गया। किसान ने उसको कराहता हुआ देखा तो उसको दया आ गई, लेकिन उसने सोचा कि यदि उसने खच्चर को बचा भी लिया तो इसके बाकी के दिन कष्ट में ही बीतेंगे। यदि इसको कुएं से बाहर नहीं निकाला तो बदबू आएगी। कुआं तो वैसे भी काफी पुराना है, इसमें पानी भी नहीं है। 

उसने तय कर लिया कि बूढ़े खच्चर और बिना पानी वाले पुराने कुएं को बचाने में कोई फायदा नहीं है। उसने अपने साथियों को बुलाया और कुएं को मिट्टी से भरने के लिए मदद मांगी। किसान और उसके साथियों को कुएं में मिट्टी फेंकता देख खच्चर ने मान लिया कि अब मृत्यु नजदीक है। क्योंकि कुएं से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा है। इस पर उसने फैसला किया कि क्यों न अपने प्रयास तेज कर दिए जाएं।

वह कुएं में डाली जा रही मिट्टी से बचकर उसकी सतह को ऊंचा करने में जुटा रहा। जैसे-जैसे कुएं में मिट्टी की सतह ऊंची होती गई, वैसे-वैसे खच्चर उसके साथ ऊपर आता गया। एक समय ऐसा भी आय़ा कि कुआं मिट्टी से भर गया और खच्चर बाहर निकल आया। अंततः खच्चर कुएं से ठीक उसी तरह बाहर निकला, जैसे कोई योद्धा किसी जंग को जीतकर आता है। 

यहां कहने का मतलब है कि जिंदगी में निर्णायक संघर्ष में भी हौसला नहीं खोना चाहिए। भले ही सभी परिस्थितियां विपरीत ही क्यों न हों। क्योंकि विपरीत परिस्थितियां भी अवसर लेकर आती हैं। जरूरत है तो उनको पहचानने की। यह तभी हो सकेगा, जब हमारा नजरिया सकारात्मक होगा।  (अनुवादित)

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button