Blog LiveElectionFeaturedUttarakhand

पोल्ट्री फार्म पर यह चुटकुला सुनिए, सियासत के बहुत नजदीक है

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग
एक चुटकुला याद आ गया, सोचा आपसे साझा कर लूं।
एक अधिकारी पोल्ट्री फार्म के निरीक्षण के लिए पहुंचते हैं। अधिकारी वहां की दशा देखकर नाराज हो जाते हैं। अव्यवस्थाओं पर पोल्ट्री फार्म के मालिक को डांट फटकार लगाते हैं। अंत में अधिकारी पोल्ट्री फार्म के मालिक से पूछते हैं, इनको क्या खिलाते हो।
पोल्ट्री फार्म के मालिक ने सोचा कि अगर मैं, बता दूं कि इनको क्या खिलाता पिलाता हूं। तो फिर डांट लगेगी। वो दिमाग लगाता है और जवाब देता है साहब, मैं इनको वैसे तो कुछ ज्यादा खिलाता पिलाता नहीं। इनको रोजाना पांच-पांच रुपये दे देता हूं, बाजार जाकर जो मर्जी खाएं, पीएं। मैं तो पूरा खर्चा कर रहा हूं। इनकी सेहत सुधरेगी या फिर खराब हो, इसके लिए ये ही दोषी हैं।
आइए अब इस चुटकुले को आगे बढ़ाते हैं और उन तमाम व्यवस्थाओं से जोड़ते हैं, जो हम प्रतिदिन विभिन्न संचार माध्यमों से सुनते, देखते और पढ़ते आए हैं।
आपको पता है, निरीक्षण अधिकारी के पास पोल्ट्री फार्म मालिक की इस नई व्यवस्था का जवाब नहीं था। वो निरुत्तर हो गए और हंसकर रह गए। उन्होंने मन ही मन कहा, मैं भी क्या कर सकता हूं। यह तो पोल्ट्री फार्म और कुक्कुट के बीच का मामला है।
हो सकता है, यह व्यवस्था भविष्य में नजीर बनकर आगे बढ़े। पर, निरीक्षण अधिकारी ने उस पोल्ट्री फार्म के कुक्कुट का बयान इसलिए भी नहीं लिया, क्योंकि कुक्कुटों को तो यह भी नहीं पता था कि यहां कोई निरीक्षण के लिए आया है और उनके हितों की बात कर रहा है।
इस पोल्ट्री फार्म में कुक्कुटों को रोजाना का खर्चा देने की बात सब जगह फैल गई। अब तो सभी पोल्ट्री फार्म में आहार, पोषण और स्वास्थ्य की बात नहीं हो रही है। वहां न तो यह चर्चा हो रही है कि कुक्कुटों की सेहत सुधारने, उनको रहने योग्य अच्छा वातावरण कैसे प्रदान किया जाए, अब तो सीधा और सबसे बेहतर प्लान यही समझ में आने लगा कि सभी को प्रतिदिन पैसे दे दिए जाएं या घोषणा पत्र में लिख दिया जाए।
अब तो कुक्कुटों की सेहत मापने का मानक धन वितरण बन गया या फिर धन बांटने की घोषणा बन गया। जो जितना अधिक धन बांटने की घोषणा करता, उसके लिए माना जाता कि उसका पोल्ट्री फार्म उतना व्यवस्थित है- खानपान, पोषण और स्वास्थ्य के मामले में।
हालात यह हो गए कि निरीक्षण अधिकारियों ने पोल्ट्री फार्म में जाना ही बंद कर दिया, वो तो सीधा पोल्ट्री फार्म के दफ्तर में जाते और घोषणाओं व धन वितरण के आंकड़ों को देखकर वहां की व्यवस्थाओं का अनुमान लगा देते। इन्हीं आंकड़ों को आधार बनाकर श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ होने का इनाम बांटा जाने लगा।
उधर, अभी तक चुप बैठे कुक्कुट सोच रहे हैं कि उनको न तो ढंग से खाने को मिल रहा है और न ही उनके रहने की व्यवस्था बहुत अच्छी है। उनके स्वास्थ्य की ओर भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लगता है, कुछ गड़बड़ है। यह गड़बड़ क्या है, इसका पता लगाना होगा। व्यवस्थाएं नहीं सुधरी तो हम सभी को बहुत दिक्कतें झेलनी होंगी।
एक दिन गलती से एक अधिकारी निरीक्षण के लिए पोल्ट्री फार्म पहुंच गए। उनको जमीनी स्तर पर कार्य करना पसंद था। अधिकारी को सीधे दफ्तर में ले जाने की बहुत कोशिश की गई, पर वो नहीं माने। वो पहले पोल्ट्री फार्म देखना चाहते थे। अधिकारी को रोकने की हिम्मत किसी की नहीं हुई।
अधिकारी ने पोल्ट्री फार्म में देखा कि कुक्कुट सुस्त और बीमार पड़े हैं। वहां गंदगी पसरी है। अव्यवस्थाएं हावी हैं। उनको आहार तक नहीं मिल रहा है। अधिकारी ने पोल्ट्री फार्म के एक कर्मचारी को अलग से बुलाकर पूरी व्यवस्थाओं पर बात की। कर्मचारी मन ही मन जीवों के अधिकारों की पैरवी करता था, पर चुप्पी साधकर सेवाएं दे रहा था। अब उसका सब्र भी टूट गया और उसने सभी अव्यवस्थाएं गिना दीं।
अधिकारी ने पोल्ट्री फार्म के मालिक का रजिस्टर खंगाला। रजिस्टर में पोल्ट्री फार्म की हैसियत और उस पर बैंक के भारी भरकम लोन का जिक्र था। घोषणा पत्र में प्रतिदिन प्रत्येक कुक्कुट को दस रुपये देने की बात लिखी थी। इस हिसाब से पोल्ट्री फार्म और भारी कर्जे में दब रहा था। फार्म की हालत इसलिए भी नहीं सुधर रही थी, क्योंकि कुक्कुटों में अच्छा प्रदर्शन करने की न तो हिम्मत थी और न ही शक्ति।
अधिकारी पोल्ट्री फार्म के दफ्तर में बोर्ड देखकर हैरान थे, उस पर लिखा था सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार विजेता।
अधिकारी की समझ में आ गया कि यह खेल क्या है। उन्होंने उसी दिन आसपास की सभी पोल्ट्री फार्म का निरीक्षण किया। रास्ते में उनको पता चला कि एक पोल्ट्री फार्म के मालिक अभी जमीन तलाश रहे हैं। पर एक जगह उनके नाम का बड़ा सा बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था, हम प्रत्येक कुक्कुट को 20 रुपये प्रतिदिन देंगे, आहार वितरण अलग से होगा।
आगे की लाइन तो हैरान करने वाली थी… उस पर लिखा था- कुक्कुट चाहेंगे तो प्रत्येक के रहने के लिए अलग हॉल भी बनवा देंगे। हर कुक्कुट के लिए एक डॉक्टर को तैनात करेंगे। भोजन-पानी के स्टाल पोल्ट्री फार्म में लगा देंगे, उनको बाजार जाकर खरीदारी की भी जरूरत नहीं होगी।
अधिकारी ने इस पोल्ट्री फार्म के मालिक से पूछा, इन सबके लिए पैसा कहां से लाओगे। वो बोले, हमारे पास अनुभव है इन सब बातों का। हम बहुत पहले से ऐसा करते आ रहे हैं।
अधिकारी भी इस पोल्ट्री फार्म मालिक पर क्या कार्रवाई करते,  क्योंकि अभी तो यह फार्म बना ही नहीं था।
एक और फार्म का बोर्ड लगा था- हमारे पास पोल्ट्री फार्म चलाने का वर्षों पुराना अनुभव है। हम 15 रुपये प्रतिदिन देंगे। खाना-पीना भी अलग से होगा। बाजार जाने के लिए मेट्रो की व्यवस्था होगी। कुक्कुट चाहेंगे तो उनके रहने के लिए बड़े आवास बना देंगे। बजट बहुत है, सब कुछ हो जाएगा, पर हमें एक बार जमीन और परमिशन मिल जाए। हम पहले यहां पोल्ट्री फार्म चलाते थे, पर हमसे परमिशन छीन ली गई।
अधिकारी ने इस पोल्ट्री फार्म के मालिक से पूछा, परमिशन किससे लेनी होती है। वो बोले, परमिशन तो यहां की जनता देती है। जो पोल्ट्री फार्म कुक्कुटों को अच्छे से रखते हैं, जनता उसी के साथ होती है।
अधिकारी को उस कर्मचारी ने बताया, ये जो सर्वश्रेष्ठ का बोर्ड लगाते हैं न, वो जनता को दिखाने के लिए होता है। जनता को क्या पता पोल्ट्री फार्म के कुक्कुट किस हाल में रह रहे हैं। जनता श्रेष्ठ और सर्वश्रेष्ठ का बोर्ड, घोषणाओं की लिस्ट देखती है और परमिशन पर अपना निर्णय सुनाती है।
अधिकारी मन ही मन दुखी हुए और उनको गुस्सा भी बहुत आया। वो खुद से कहने लगे, यह खेल कब तक चलेगा।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button