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हिमालय क्षेत्र में बरसात में वृद्धि, हिमपात में गिरावट

वसंत के दौरान हिमपात के स्थान पर वर्षा में वृद्धि के परिणामस्वरूप हिमनद जल्दी पिघलते हैं

पिछले कुछ वर्षों में हिमालय में होने वाले हिमपात में कमी आई है, जबकि वर्षा की मात्रा बढ़ी है। केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पृथ्वी विज्ञान डॉ. जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में यह जानकारी दी है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीपीओआर) के अध्ययन का हवाला देते हुए केंद्रीय मंत्री ने बताया कि पश्चिमी हिमालय के चार ग्लेशियर बेसिन (चंद्रा, भागा, मियार और पार्वती) क्षेत्र में वर्ष 1979 से 2018 के दौरान वर्षा में समग्र रूप से गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई है। हालांकि, वर्षा में गिरावट की प्रवृत्ति एकपक्षीय नहीं है, और अपक्षरण (ग्रीष्म) ऋतु (15.4 प्रतिशत) की तुलना में संचयन (शीत) ऋतु के दौरान वर्षण में 23.9 प्रतिशत कमी देखी गई है।

वसंत के दौरान हिमपात के स्थान पर वर्षा में वृद्धि के परिणामस्वरूप हिमनद जल्दी पिघलते हैं। हिमनदों के पिघलने की दर बढ़ने के परिणामस्वरूप हिमस्खलन एवं आकस्मिक बाढ़ की आवृत्ति एवं परिमाण में तेजी आ सकती है। इन आपदाओं से निपटने के लिए सरकार द्वारा अपनाए जाने वाले उपायों से संबंधित प्रश्न के उत्तर में केंद्रीय मंत्री ने संसद को जानकारी देते हुए कहा कि हिमस्खलन, भूस्खलन प्राकृतिक घटनाएं हैं, जिन्हें रोका नहीं जा सकता है। तथापि, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय एवं रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत विभिन्न संस्थानों द्वारा वर्षा एवं हिमपात संबंधी पूर्व चेतावनी एवं पूर्वानुमान जारी किए जा रहे हैं।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय इन क्षेत्रों के लिए मौसम पूर्वानुमान चेतावनियां जारी करता है, तथा पारिस्थितिकीय क्षति एवं संवहनीय पर्यटन गतिविधियों से संबंधित अन्य उपायों का प्रबंधन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा पर्यटन मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।- इंडिया साइंस वायर

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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