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डोईवाला में 80 साल के बुजुर्ग की बिना छत वाली 40 साल पुरानी दुकान

बचपन में एक हादसे में हाथ खो दिया था खैरी के गुरुप्रसाद ने, पर नहीं हारी हिम्मत

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग

80 साल के बुजुर्ग व्यापारी ने हमसे कहा, “आपके लिए चाय बनाता हूं। मैं अच्छी चाय बनाता हूं, आप पियोगे तो तारीफ करोगे।”

किचन से दो कप में चाय और साथ में बिस्किट लेकर आए। वास्तव में चाय जायकेदार थी। मैंने चाय की प्रशंसा की, तो बोले, “इसमें खास चाय मसाला मिलाया है।”

बचपन में हुए हादसे में एक हाथ गंवाने वाले गुरुप्रसाद डोईवाला चौक पर शूज और चप्पलों की दुकान लगाते हैं। एक दिन पहले उनसे समय लिया और दूसरे दिन सुबह दस बजे उनके आवास पर पहुंचा। उनका घर प्रेमनगर बाजार में गुरुद्वारा के पीछे कॉलोनी में है। गुरु प्रसाद दुकान जाने की तैयारी कर रहे थे और उनको हमारा इंतजार भी था।

बातचीत में उन्होंने बताया, “मूल रूप से डोईवाला से लगभग 7-8 किमी. दूर खैरी गांव के रहने वाले हैं। 1945 में जन्म हुआ था। बचपन में हुए हादसे का जिक्र करते हैं, मैं कक्षा चार में पढ़ता था, यही कोई दस साल का था। घर में आम के पेड़ पर आम तोड़ने के लिए चढ़ा और गिर गया। इस हादसे में हाथ गंवाना पड़ गया।”

“1963 में पब्लिक इंटर कॉलेज से हाईस्कूल किया। तब यहां इंटरमीडियेट की कक्षाएं नहीं थीं। देहरादून नहीं जा सकते थे, इसलिए पढ़ाई छूट गई।”

बताते हैं, “परिवार के आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे। मैंने कई साल कुछ दुकानों पर काम किया। कुछ पैसे इकट्ठे किए। तब तक शादी भी हो गई थी।”

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“मैंने हजार-बारह सौ रुपये से छोटे बच्चों के कपड़े, शूज, चप्पलें बेचने का फैसला किया। एक ठेली पर यह सामान रखकर बेचा। दुकान शुरू करने में ज्यादा समस्याएं नहीं आईं, क्योंकि मेरे पास दुकान में काम करने का अनुभव था। हमारे रेट भी कम है, इसलिए अधिकतर ग्राहक हमारे से सामान खरीदने में सक्षम हो पाते हैं।”

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उस समय गुरुप्रसाद खैरी से डोईवाला तक लगभग 7 से 8 किमी. पैदल आते थे, रोजाना 14-15 किमी. पैदल चलते थे। बताते हैं, ” अधिकतर लोग साइकिलें चलाते थे। बैलगाड़ियां चलती थीं, आज की तरह गांव तक की कोई परिवहन सेवा नहीं थी। हर मौसम पैदल चला और दुकान चलाई।”

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बताते हैं, “उनके अधिकतर ग्राहक ग्रामीण इलाकों से हैं, कुड़कावाला, बुल्लावाला, झबरावाला,. दूधली… यहां तक कि छिद्दरवाला और हर्रावाला तक के लोग सामान खरीदते हैं। किसी भी ग्रामीण इलाके में, चार-पांच लोग तो उनकी दुकान के बारे में जानते हैं।”

डोईवाला चौक पर मिल रोड की तरफ देखने पर सबसे पहले उनकी दुकान दिखती है, जिस पर कोई छत नहीं है। सुबह सामान लगाते हैं और शाम को समेट लेते हैं। यह सिलसिला 40 साल से अधिक से चल रहा है। स्वरोजगार के इसी साधन से उन्होंने मकान बनाया है।

कहते हैं, “व्यवसाय को बढ़ाने के लिए कभी सरकारी सहयोग नहीं मिला। अपने दम पर थोड़ा थोड़ा सामान लाकर कम मार्जिन पर बेचा।हम खुद आर्थिक रूप से कमजोर रहे, इसलिए उन ग्राहकों की स्थिति को समझते हैं, जिनके पास जरूरत का सामान खरीदने के लिए पैसों की दिक्कत रहती है। इसलिए उनको बहुत कम लाभ पर सामान बेचा। ”

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वर्ष 2007 में गुरु प्रसाद जी के साथ एक हादसा हो गया। पत्नी का कैंसर से देहांत हो गया।

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गुरु प्रसाद हमारे साथ वर्षों पुराने डोईवाला को साझा करते हैं, “चौक पर गूलर का पेड़ था। शाम पांच बजे तक बाजार में ग्राहक बहुत कम दिखते थे, क्योंकि अधिकतर लोग ग्रामीण इलाकों से आते थे, जिनके पास घर लौटने के लिए परिवहन के साधन नहीं थे। साइकिलें ही परिवहन का साधन थीं। अब तो गांव आने-जाने के बहुत साधन हो गए। ”

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“पहले पुलिस चौकी मिल रोड पर थी, जहां अब बैंक ऑफ बड़ोदा है, उसके ठीक पीछे। डोईवाला का अस्पताल रेलवे लाइन पार था, जहां अब सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों के आवास हैं। इसके पास जूनियर हाईस्कूल किराये के भवन में संचालित होता था, जिसमें हमने भी पढ़ाई की। अब तो वर्षों पहले जूनियर हाईस्कूल अपनी बिल्डिंग में चला गया।”

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” सौंग नदी का पुल 1950 के दशक में बना। बरसात में जब नदी में पानी बढ़ जाता था, तब सरकारी ठेके पर ट्राली लगाई जाती थी, जिसमें लोगों को आरपार कराया जाता था। उस समय हरिद्वार रोड नहीं थी, कच्चा रास्ता था, जिसमें अक्सर कीचड़ रहता था। कुछ प्राइवेट बस भी देहरादून चलती थीं, पर अधिकतर लोग साइकिलों से ही देहरादून जाते थे।”

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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