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किस्से मीडिया केः कुछ लोग अपने हित के लिए रिपोर्टर्स को बना देते हैं प्रतिद्वंद्वी

अखबारों के दफ्तरों में बहुत सारी सूचनाओं को गोपनीय रखना होता है। मैं कुछ एक्सक्लूसिव खबरों की बात कर रहा हूं। जिस दिन रिपोर्टर के पास कोई एक्सक्लूसिव खबर होती है, वो पूरे उत्साह में रहते हैं।

बायलाइन और एक्सक्लूसिव के टैग के साथ खबर प्रकाशित होने पर उनको बहुत खुशी मिलती है। यह खबर संपादक की जानकारी में भी प्रमुखता से लाई जाती है। खबर को और पुष्ट बनाने के लिए रिपोर्टर से कुछ अतिरिक्त फैक्ट मांगे जा सकते हैं।

पर,एक्सक्लूसिव खबर उनको ही माना जाना चाहिए, जो ज्यादा से ज्यादा लोगों के लिए महत्वपूर्ण सूचना हो या उनके हितों को प्रभावित करती हो। अगले दिन कोई असर दिखाने वाली हो। कोई बड़ा खुलासा करने वाली हो। रूटीन की ऐसी खबर, जो दूसरे अखबारों के पास न हो। यह दावा तो रिपोर्टर ही कर सकते हैं।

हालांकि, सोशल मीडिया पर खबरों के लगातार फ्लो तथा सूचनाएं प्रसारित करने वाले बहुत से स्रोतों को ध्यान में रखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि कोई भी खबर मुश्किल से ही एक्सक्लूसिव होगी।

डेस्क भी एक्सक्लूसिव बताए जाने वाली खबरों को बेहतर स्थान देने का प्रयास करती है। इनको अक्सर प्राइम पेजों पर लीड, बॉटम या फ्लायर लगाया जाता है। नहीं तो सेकेंड लीड तय है। कभी कभार जिस खबर को एक्सक्लूसिव कहकर मेहनत और प्लानिंग की जाती है, उसको दूसरे दिन किसी और अखबार में भी छपा हुआ पाओगे तो क्या कहोगे, भले ही दूसरे अखबार में ज्यादा फैक्ट न हों। ऐसी स्थिति में रिपोर्टर को डिफेंसिव होना पड़ेगा और डेस्क व वरिष्ठ अधिकारी उनसे इस संबंध में पूछ सकते हैं।

ऐसा क्यों होता है कि आपकी एक्सक्लूसिव खबर दूसरे अखबार में भी दिखती है। इसकी दो वजह हो सकती हैं, पहली यह कि हर अखबार के रिपोर्टर पूरी सजगता से खबरों के लिए ही दौड़ भाग करते हैं। वो अपनी बीट के स्रोतों के संपर्क में रहते हैं। इसलिए उनको भी यह खबर मिल जाती है।

यह सत्य बात है कि किसी भी विभाग, संस्थान या व्यक्तियों के समूह या व्यक्ति, जिनका नियमित रूप से खबरों से वास्ता रहता है, मीडिया से अच्छे संबंध बनाने की पहल करते हैं। वो सूचनाएं देने में फर्क नहीं करते। पर, कभीकभार किसी एक ही अखबार में ही एक्सक्लूसिव खबर होती है यानि किसी एक रिपोर्टर को ही खास खबर देते हैं, इसकी वजह पर चर्चा करते हैं।

यहां, अगर किसी मीडिया कर्मी से किसी कर्मचारी या अधिकारी का कोई मतभेद होता भी है, तो वो अधिकतर बार केवल वैचारिक हो सकता है। व्यक्तिगत मतभेद बहुत कम होता है।

हां, यह हो सकता है कि कोई अधिकारी या कर्मचारी किसी मीडिया कर्मी को ज्यादा अच्छा मानते हों या किसी से ज्यादा वास्ता नहीं रखते हों। यह राय संबंधित अखबार या रिपोर्टर की खबरों को लेकर भी बनती है। लेकिन, सामान्य सूचनाओं को मीडिया से जरूर साझा किया जाता है।

कई बार मीडिया कर्मियों के अपनी बीट से संबंधित अधिकारियों, कर्मचारियों और राजनेताओं से एक दूसरे के प्रति सम्मान और अच्छे व्यवहार की वजह से व्यक्तिगत संबंध भी बन जाते हैं।

इस पर उनको अपनी बीट की खास खबरें मिलती रहती हैं। अधिकारी या कर्मचारी या राजनेता या कोई व्यक्ति या संगठन या संस्था के पदाधिकारी या कोई और आपको खबरों देते हैं।

ये सूचनाएं तब तक तो ठीक हैं, जब तक ये सकारात्मक रूप से व्यापक जनहित पर फोकस करती हैं, लेकिन कई बार खबरें देने या बताने वाले कुछ लोग, रिपोर्टर को अपने प्रतिद्वंद्वियों के लिए इस्तेमाल करते हैं।

राजनीति की खबरों में ऐसा अक्सर होता है। माफ करना ! राजनीति में भितरघात की जो बात कही जाती है, वहां अधिकतर बार रिपोर्टर को ही इस्तेमाल किया जाता है।

ऐसा भी हो जाता है कि अपनी बीट में रिपोर्टर किसी एक पक्ष के पाले में दिखाई देता है। यह जानकारी भी दे दूं कि कुछ रिपोर्टर को खबरों में बैलेंस होने के बाद भी एक पक्षीय करार दिया जाता है। ऐसा कहने वाले लोग मीडिया से भी जुड़े होते हैं।

इनमें प्रतिद्वंद्वी अखबार से जुड़े लोग हो सकते हैं या फिर आपके दफ्तर में बैठने वाले भी। हो सकता है कि कुछ दफ्तरों में ऐसा नहीं होता हो, पर कई जगह ऐसा ही होता है।

मैं यह बात दावे के साथ, इसलिए भी कह सकता हूं, क्योंकि मैं भी इस दौर से गुजरा हूं, पर राजनीति की खबरों में नहीं। मुझ पर तो कुछ लोगों ने आरोप भी लगाए, पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि मैं सही था और आज भी हूं, क्योंकि मैं ईश्वर में आस्था रखता हूं और मैंने वहीं किया जो ईश्वर की नजर में सही है।

ऐसा भी होता है कि प्रतिद्वंद्वी अखबारों का रिपोर्टर किसी अधिकारी या कर्मचारी या राजनेता या किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह या संगठन य़ा संस्था की पसंद या नापसंद हो सकते है। यह पसंद या नापसंद अखबार पर दिखती है।

एक अखबार किसी मामले में जहां किसी पक्ष पर ऑफेंसिव दिखता है, वहीं उसी मामले में उसका प्रतिद्वंद्वी उसी पक्ष के लिए डिफेंसिव जैसा व्यवहार करता है। यह सब रिपोर्टर्स के अपने अपने संबंधों पर निर्भर करता है।

मैं ऐसा कतई नहीं कह रहा कि अखबारों में खबरें बैलेंस नहीं होतीं। अखबारों की डेस्क संपादन में अधिकतर खबरों को बैलेंस करती हैं। ऐसा करना भी चाहिए, क्योंकि किसी भी प्रतिष्ठित अखबार से उसके पाठक यही अपेक्षा करते हैं।

हालांकि डेस्क पर समीक्षा के दौरान खबर के बैलेंस होने या नहीं होने का पता चल जाता है। राजनीति की खबरों में तो कई बार बड़े अधिकारियों के मौखिक निर्देशों का असर दिखता है।

कुछेक मौकों पर खबर पर उसको लिखने वाले की राजनीतिक विचारधारा भी प्रभावी रूप से काम करती है। मैं यह बात पहली बार नहीं कह रहा हूं, आप सूचना माध्यमों के बारे में अक्सर ऐसा सुनते रहे हैं।

कुल मिलाकर, एक्सक्लूसिव खबर मिलने की पहली वजह किसी रिपोर्टर का अपने बीट में उन लोगों से अच्छा व्यवहार होना भी है, जिनके पास ही खास सूचनाएं होती हैं या उनके माध्यम से ही खबरें बाहर निकल सकती हैं। या यूं कहें कि वो इस तरह की खबरें देने के लिए अधिकृत हैं। इनके पास खबरों को सार्वजनिक करने का अधिकार है।

वहीं प्रतिद्वंद्वी अखबार के रिपोर्टर को इस तरह की खबरें समय पर नहीं मिल पातीं या फिर उनको इन खबरों के लिए काफी प्रयास करने पड़ते हैं।

कई बार छोटे शहरों या कस्बों में खबरों को लेकर रिपोर्टर्स की व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता व्यक्तिगत में भी बदल जाती है, जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। इसको बढ़ाने में उन लोगों की भूमिका होती है, जो रिपोर्टर्स को केवल अपने हित की खबरों के लिए ही इस्तेमाल करते हैं।

ये लोग एक ही अखबार में काम करने वाले लोगों को भी एक दूसरे का विरोधी बना देते हैं। हालांकि इन लोगों की संख्या बहुत कम होती है, पर इनको सब जानते हैं।

वैसे, यह बात बिल्कुल सही है कि अपने हित के लिए कुछ रिपोर्टर्स को इस्तेमाल करने वाले किसी के नहीं होते। ये सार्वजनिक रूप से सभी से इस तरह व्यवहार करते हैं, मानो इनसे बड़ा शुभचिंतक कोई नहीं है।

ये प्रतिद्वंद्वी अखबारों के कुछ रिपोर्टर्स के बीच मनभेद पैदा करने के बाद भी उनके हितैषी होने का नाटक इसलिए करते हैं, क्योंकि इनको तो सभी अखबारों में अपने लिए जगह बनानी है। इसलिए रिपोर्टर के लिए यह बहुत जरूरी है कि वो उन्हीं तथ्यों पर विश्वास करें, जो उनके पास हैं। कही-सुनाई बातों पर तो कतई विश्वास न किया जाए।

मैं यह भी बताना चाहूंगा कि अखबारों की व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता के बाद भी उनके अधिकतर रिपोर्टर अपनी बीट में मुलाकात के समय एक दूसरे से दोस्तों सा व्यवहार करते हैं।

दोस्ती होने के बाद भी वो अपने दफ्तर की किसी सूचना या अपनी खास खबरों को साझा नहीं करते। वैसे खास खबरों को छोड़कर रूटीन की कुछ खबरें अखबारों के रिपोर्टर आपसी तालमेल और सौहार्द्र पर डिस्कस कर लेते हैं। प्रतिद्वंद्विता उन्हीं के बीच होती है, जिनको इस्तेमाल किया जा रहा होता है।

किसी एक्सक्लूसिव खबर के दूसरे अखबार में होने की दूसरी वजह पर भी बात करते हैं। यहां मैं उस एक्सक्लूसिव खबर की बात कर रहा हूं, जिसमें फैक्ट बहुत ज्यादा नहीं होते। इसका कारण कभी कभी किसी रिपोर्टर के संबंधित खबर को गंभीरता से नहीं लेना भी हो सकता है। इसलिए वो केवल खबर के सतही फैक्ट पर ही काम करते हैं।

इसलिए वो अपने लेवल पर खबर को एक्सक्लूसिव होते हुए भी वैसा प्रदर्शित नहीं कर पाते। ऐसा वर्क प्रेशर की वजह से भी हो सकता है।

वहीं कुछेक बार अखबारों के दफ्तरों से भी खास खबर की सूचना लीक हो सकती है। लीकेज से मिली सूचना पर प्रतिद्वंद्वी काम करते हैं, पर समय की कमी या संबंधित की पुष्टि नहीं होने की वजह से उनकी खबरें ज्यादा प्रभावी नहीं बन पातीं।

सूचनाएं कौन लीक करते हैं और किनकी खबरों को लीक करते हैं, यह भी सवाल है। एक ही अखबार में साथ काम करने वाले भी एक दूसरे के विरोधी हो सकते हैं। कुछेक मौकों पर दफ्तरों में इसके प्रमाण मिलते रहे हैं। इस वजह से सूचनाएं लीक की जाती हैं।

मेरे कुछ साथियों ने खबरों की लीकेज को झेला था। उनके साथ तो ऐसा हुआ कि वो खबर लिखने बैठे और कुछ ही देर में संबंधित अधिकारी का फोन आ गया। आपके रिपोर्टर क्या यह खबर लेकर आए हैं। अभी भी ऐसे हालात हो सकते हैं….। यह मेरा अनुभव है… जो महसूस किया, वो बता दिया।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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