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प्लास्टिक प्रदूषण से कमज़ोर तबके अधिक जोखिम में
संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि प्लास्टिक प्रदूषण से हो रहे पर्यावरणीय प्रभाव का सबसे अधिक ख़मियाज़ा कमज़ोर समुदायों को भुगतना पड़ रहा है। रिपोर्ट में ज़ोर देकर यह भी कहा गया है कि इस मुद्दे के समाधान और मानवाधिकारों, स्वास्थ्य और कल्याण तक, सभी की पहुँच फिर से आसान बनाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
संयुक्त राष्ट्र समाचार के अनुसार, मंगलवार को प्रकाशित रिपोर्ट का शीर्षक है – Neglected: Environmental Justice Impacts of Plastic Pollution, और यह रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने ज़मीनी स्तर पर काम करने वाले पर्यावरण समूह, अज़ुल के साथ मिलकर तैयार की है।
इसमें दिए गए निष्कर्षों का उद्देश्य है – प्लास्टिक कचरे से प्रभावित समुदायों को सशक्त बनाना और निर्णायक भूमिकाओं में उनके शामिल होने की वकालत करना।
संयुक्त राष्ट्र समाचार में यूनेप की कार्यकारी निदेशक, इन्गेर एण्डरसन के हवाले से कहा गया है कि, “पर्यावरणीय न्याय का अर्थ है कि प्लास्टिक प्रदूषण के जोखिम के दायरे में आने वाले लोगों को शिक्षित करना, उन्हें इसके उत्पादन, उपयोग और निपटान के निर्णयों में शामिल करना और एक विश्वसनीय न्यायिक प्रणाली तक उनकी पहुँच सुनिश्चित करना।”
रिपोर्ट में बताया गया कि प्लास्टिक उत्पादन से पर्यावरणीय अन्याय कैसे जुड़े हैं, जैसे कि सड़क निर्माण के लिये वनों की कटाई, तेल की खुदाई के लिये स्थानीय लोगों का विस्थापन, या अमेरिका और सूडान जैसे देशों में प्राकृतिक गैस निकालने के लिए, फ्रैकिंग ऑपरेशन से पेयजल का दूषित होना।
इसके अलावा, रिपोर्ट में मैक्सिको की खाड़ी में तेल रिफ़ाइनरियों के पास रहने वाले अफ्रीकी-अमेरिकी समुदायों के बीच स्वास्थ्य समस्याओं और भारत में कचरा बीनने वाले लगभग बीस लाख लोगों के सामने आने वाले व्यवसायिक जोखिमों की चेतावनी भी दी गई है।
रिपोर्ट के अनुसार, कच्चे माल और विनिर्माण को निकालने से लेकर उपभोग और निपटान तक उत्पादन चक्र के सभी चरणों में, कमज़ोर समुदाय पर प्लास्टिक का प्रतिकूल व बहुत गम्भीर असर हो रहा है।
प्लास्टिक कचरा न केवल समुद्री संसाधनों पर निर्भर रहने वाले लोगों की आजीविका को ख़तरे में डालता है, बल्कि यह उन लोगों के लिए स्वास्थ्य समस्याओं का कारण भी बनता है, जो विषाक्त सूक्ष्म और नैनो प्लास्टिक से प्रभावित समुद्री भोजन का सेवन करते हैं।
विशेष रूप से महिलाएँ, प्लास्टिक से सम्बन्धित विषाक्तता के जोखिमों से पीड़ित हैं, क्योंकि घर एवं उत्पादों के ज़्यादा इस्तेमाल के कारण, उन्हें प्लास्टिक का अधिक जोखिम रहता है।
यूनेप का मानना है कि कोविड-19 महामारी के प्रसार से, जैव विविधता की हानि और जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ, प्लास्टिक कचरा भी वैश्विक प्रदूषण संकट का एक बड़ा हिस्सा बन गया है, जिसके लिए एक मज़बूत कार्रवाई की ज़रूरत है।
रिपोर्ट में सरकारों से आह्वान किया गया है कि वे प्लास्टिक प्रदूषण से प्रभावित लोगों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता दें, जिसके लिये कई स्तरों पर कार्रवाई करनी होगी।
रिपोर्ट में, प्लास्टिक अपशिष्ट निगरानी के विस्तार, स्वास्थ्य पर प्रभावों को लेकर बेहतर अध्ययन और अपशिष्ट प्रबन्धन में अधिक निवेश का आह्वान किया गया है।
सरकारों को एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए और उनको कम इस्तेमाल करने, री-साइकलिंग करने व पुन: उपयोग को प्रोत्साहन देना चाहिए।
इसके अलावा, व्यवसायियों और उद्योगपतियों, ग़ैर-सरकारी हस्तियों और उपभोक्ताओं को भी उन लोगों के हालात बदलने के लिए काम करना चाहिए, जो सामाजिक, आर्थिक, व राजनीतिक तौर पर हाशिये पर धकेल दिए गए हैं।
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