जब कौओं ने एक दूसरे को चुनौती दी
एक बार की बात है दो कौए साथ-साथ रहते थे। एक दिन उनमें बहस हो गई। एक कौआ कह रहा था कि मैं तुमसे ज्यादा ऊंचाई पर उड़ सकता हूं। दूसरे ने कहा, मैं तुमसे ज्यादा ऊंचाई पर उड़ सकता हूं। दोनों ने एक दूसरे को थैले लेकर ऊंचाई तक उड़ने की चुनौती दे दी। एक दिन तय किया गया। बरसात का मौसम था और कौए एक दूसरे से ज्यादा ऊंचाई पर उड़ने के लिए एक मैदान में पहुंच गए, जहां उड़ने में कोई बाधा नहीं थी।
दोनों ने बराबर आकार के थैले लिए और उनमें अपनी पसंद का सामान भरा। एक कौए ने थैले में रुई भर दी। दूसरे ने अपने थैले में नमक भरा। पहला कौआ उसे देखकर कह रहा था, कितना मूर्ख है। भारी सामान लेकर मुझसे ज्यादा ऊंचाई पर उड़ने की चुनौती दे रहा है। दूसरे कौए ने उसकी बात सुन ली थी, लेकिन बोला कुछ नहीं।
अब दोनों ने उड़ान भरी। थोड़ी ही देर में रुई वाला कौआ ऊंचाई पर था। नमक वाला कौआ ज्यादा ऊंचाई पर नहीं जा सका। कुछ ही देर में बारिश होने लगी और पानी भरने से रुई वाला थैला भारी हो गया। इस वजह से पहला कौआ ज्यादा देर तक ऊंचाई पर नहीं रह सका। वहीं बारिश में नमक बहने से दूसरे कौए के थैले का वजन कम हो गया और वह नीचे से ऊंचाई पर उड़ने लगा। चुनौती का समय खत्म होने तक नमक के थैले वाला कौआ ज्यादा ऊंचाई पर था। इस तरह वह जीत गया और रुई को हल्का समझकर उड़ान भरने वाले कौए ने अपनी हार स्वीकार कर ली।
संदेश- किसी की परिस्थिति और कार्य को देखकर हंसी नहीं उड़ानी चाहिए। वक्त और परिस्थितियां किसी के भी हालात बदल देते हैं।