DHARMA

हरि व्यापक सर्वत्र समाना

डॉ.गौरवमणी खनाल- श्रवण अर्थात सुनने की कला आध्यात्म के अनुसार सबसे जरूरी है, सांसारिक जीवन में दर्शन (देखना) जरूरी है। कहते हैं आँखों से देखो तब विश्वास करो।  लेकिन आँखों से जो दिखता है वो पूर्ण सत्य नहीं है जो नहीं दिखता वही पूर्ण सत्य है। आँखों से हमें अपना परिवार दिखता है, दोस्त यार दिखते हैं, फल- फूल भवन आदि दिखते हैं , लेकिन ये सब सत्य है क्या ?

जब तक उनका शरीर है तब तक ऐसा लगता है कि ये सब है ,वो दिख रहे हैं, जिस दिन शरीर गया वो भी गए। जो दिख रहा है वो शरीर है और शरीर तो मिट्टी में मिल जाना है , परंतु जो नही दिख रहा, वो है चेतना यही शरीर के अंदर छुपी ऊर्जा जो शरीर को सत्य बना रही है और यही  चेतना है जो नित्य है ,अखंड है , शाश्वत है, सब में है, वो ही अखंड आत्मा (चेतना) है।

वो परात्मा जो कण-कण में है, वही सत्य है पर दिखता नहीं। इस चेतना को जानने का, उसको देखने का एक ही उपाय है की उससे प्रेम हो जाए। ” हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम से प्रगट होई में जाना “, लेकिन जो दिख नहीं रहा उससे प्रेम कैसे हो? हो सकता है अगर हम उसके बारे में सुने, उसके स्वभाव के बारे में सुने, उसके गुणों के बारे में सुने, उसकी लीलाओं के बारे में सुने तो धीरे-धीरे उससे मिलने को मन करने लगेगा।

लेखक डॉ. गौरवमणि खनाल वर्तमान में मानवभारती स्कूल में टिंकरिंग लैब के प्रभारी हैं। डॉ. खनाल ने माइक्रो इलैक्ट्रोनिक्स में इंग्लैंड की लिवरपूल जोन मोर्स यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री और यूनिवर्सिटी ऑफ रोम तोरवर्गाता से इलैक्ट्रानिक्स में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर डॉ. खनाल के कई रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए हैं।

उसके बारे में ही सोचेंगे कैसे मिला जाए और यही तो प्रेम है कि कैसे प्रियतम से मिला जाए। ये वैसे ही है जैसे कोई कहे कि ” यार फलां फिल्म देखी क्या बढ़िया है , फिर दूसरा कहे कि तुमने नहीं देखी, अरे देखो , तो हमारा मन भागता है कुछ तो बात है देखनी चाहिए।  फिर प्लान करते हैं कैसे जाया जाए , रहा नहीं जाता और हम जाते हैं ” बस ऐसे ही परात्मा का गुणगान , कथा सुनते रहने से मन में भाव आता है कि एक बार हम भी मिलें, फिर यही भाव प्रेम बन जाता है और फिर ” सब जगह वही दिखता है।

इसलिए नवादा भक्ति में भी पहली भक्ति श्रवण बताया है। श्री राम ने.. विभीषण जी से भी जब पूछा कि विभीषण तुम्हे कैसे यहाँ तक आए, तब विभीषण जी ने भी कहा “श्रवन सुजसु सुनि आयउँ, प्रभु भंजन भव भीर”। मैं कानों से आपका सुयश सुनकर आया हूँ कि प्रभु भव (जन्म-मरण) के भय का नाश करने वाले हैं। इसलिए आध्यात्म में सुनने की कला और महिमा अधिक है।

” एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी की पुनि आध , तुलसी संगत साधु की ,काटे कोटि अपराध”। संत यही तो करते हैं ईश्वर कैसा है, वो बताते हैं और हमारा अनुराग ईश्वर से करा देते हैं , ईश्वर की कथा और गगुणगान सुनते रहे और सुनाते रहे। -हरे कृष्णा श्रीदास

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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