ऋषिकेश। विश्व गठिया दिवस पर एम्स ऋषिकेश के आंतरिक चिकित्सा विभाग ने जन जागरूकता सेमिनार का आयोजन किया। मरीजों और उनके तिमारदारों को गठिया से सम्बन्धित विभिन्न बीमारियों, उनके उपचार और इसकी रोकथाम के बारे में जानकारियां दी गईं।
सेमिनार का शुभारंभ करते हुए एम्स ऋषिकेश की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर मीनू सिंह ने कहा, जानकारी के अभाव में आम लोगों को गठिया रोगों के बारे में पता नहीं होता है। इसलिए बीमारी के बचाव के लिए जागरूकता का होना बहुत जरूरी है। उन्होंने गठिया के लिए अत्यधिक तनाव और खराब खान-पान की आदतों को प्रमुख कारण बताया। साथ ही उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में ऑटोइम्यून बीमारियों की बढ़ती घटनाओं के बारे में भी जानकारी दी।
डीन एकेडमिक्स प्रोफेसर जया चतुर्वेदी ने विभाग के रूमेटोलॉजी प्रभाग के प्रयासों की सराहना की और कहा कि इस प्रकार के जन जागरूकता कार्यक्रमों से गठिया पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
चिकित्सा अधीक्षक प्रोफेसर संजीव मित्तल ने कहा कि रूमेटोलॉजिकल रोग केवल जोड़ों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यह रोग हमारे सभी अंग प्रणालियों को भी प्रभावित करते हैं।
जनरल मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर रविकांत ने बताया कि गठिया एक दीर्घकालिक बीमारी है। इसमें जोड़ों में दर्द, सूजन और कठोरता होती है। इस बीमारी के कारण जोड़ों की सूजन पूरे शरीर में होती है। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। डाॅ. रविकान्त ने कहा कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में गठिया होने की संभावना तीन गुना अधिक होती है।
आर्थोपेडिक विभाग के डॉ. आर.बी. कालिया ने जोड़ों की क्षति के अंतिम चरण वाले रोगियों में गतिशीलता और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने में संयुक्त प्रतिस्थापन की भूमिका के बारे में बताया।
पी.एम.आर. विभाग के डॉ. राजकुमार यादव ने पुनर्वास की आवश्यक भूमिका के बारे में बताया। उन्होंने उन रोगियों के वास्तविक दुनिया के कई उदाहरण साझा किए, जिन्हें दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों में गंभीर रूप से प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन पुनर्वास के बाद उन्होंने सार्थक कार्य करना शुरू कर दिया।
विभाग के डॉ. सुकदेव मन्ना ने गठिया के उपचार, निदान और इसके दीर्घकालिक परिणामों के सामान्य पहलुओं के बारे में व्याख्यान दिया। उन्होंने गठिया का मुख्य लक्षण जोड़ों में सूजन, अकड़न और दर्द बताया।
उन्होंने बताया,मुट्ठी बनाने में कठिनाई, थकान, कमजोरी और वजन कम होना इस बीमारी के अन्य लक्षण हैं। जोड़ों के अलावा गठिया रोग, आंखों, हृदय, फेफड़ों, त्वचा और अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है।
हिमालयन हाॅस्पिटल देहरादून के वरिष्ठ रूमेटोलाॅजिस्ट डॉ. योगेश प्रीत सिंह ने गठिया केे मिथकों के बारे में बारीकी से जानकारी साझा कर लोगों के संदेह को दूर किया।
रूमेटोलॉजी के एस.आर. डॉ. अवनीत कुमार गुप्ता, डॉ. आशीष बावेजा, डॉ. आदित्य सूदन, डॉ. रजत रांका और डॉ. प्रतिभा सेठी ने गठिया से जुड़ी हुई बीमारियों जैसे रूमेटॉइड आर्थराइटिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस, एंकिलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस, ल्यूपस (एसएलई) और यूरिक एसिड से संबंधित संयुक्त समस्याओं पर चर्चा की।
उन्होंने इन बीमारियों के जोखिम कारकों, लक्षणों, नैदानिक परीक्षणों, उपचार और रोकथाम के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी। लोगों द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों के जवाब दिए।
रूमेटोलॉजी प्रभाग के संकाय प्रभारी डॉ. वेंकटेश पाई ने बताया कि एम्स ऋषिकेश में रूमेटोलॉजी क्लीनिक प्रत्येक मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को संचालित किया जाता है।
सभी लोगों को इस सुविधा का लाभ उठाना चाहिए।
सेमिनार में योग प्रशिक्षक डॉ. दीप चंद्र जोशी और डॉ. रमेशजी ने गठिया रोगों में लाभ देने वाले सूर्य नमस्कार सहित विभिन्न आसान योगासनों का प्रदर्शन कर दैनिक जीवन में योग अपनाने की प्रेरणा दी।