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अखरोट के बाग विकसित करने की आसान विधि

डॉ. राजेंद्र कुकसाल

  • लेखक कृषि एवं औद्योनिकी विशेषज्ञ हैं।
  • 9456590999

पर्वतीय क्षेत्रों में 1500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में खेतों के किनारे, गधेरों के आसपास, नम स्थानों पर अधिकतर गांवों में अखरोट के पौधे नज़र आते हैं। बगीचे के रूप में अखरोट के बाग राज्य में कम ही देखने को मिलते हैं। इसके कई कारण हैं-

  1. कलमी पौधों की उपलब्धता का न होना।

  2. Re-establishment problem यानी नर्सरी से पौधे उखाड़कर खेतों में लगाने पर अधिक मृत्युदर (50 से 60 फीसदी) का होना।

  3. Long gestation period यानी पौधरोपण के 12 से 15 वर्ष बाद पौधों में फल आना।

  4. उद्यान विभाग, विभिन्न परियोजनाओं तथा संस्थाओं द्वारा आपूर्ति किए गए अखरोट के बीजू पौधों की विश्वसनीयता न होना।

यदि आपको अखरोट के कलमी पौधे उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं, तो आप इस विधि से अखरोट के बाग विकसित कर सकते हैं।

लगभग डेढ़ हजार मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थान, जिनका ढलान उत्तर या पूर्व दिशा में हो तथा पाला अधिक न पड़ता हो, अखरोट उत्पादन के लिए उपयुक्त पाए जाते हैं। जिन क्षेत्रों/गांवों में पहले से ही अखरोट के फलदार पौधे हैं, इस आधार पर भी अखरोट लगाने के लिए स्थान का चयन किया जा सकता है।

पर्वतीय क्षेत्र के गांवों या आस-पास के क्षेत्रों में अखरोट के पौधों की प्रसिद्धि उनकी उपज एवं गुणवत्ता के कारण होती है, ऐसे में उन्नत किस्म के अखरोट के पौधों का चयन स्थानीय ग्रामीणों की जानकारी के आधार पर किया जाए।

सितंबर माह में अखरोट के फल तैयार होने शुरू हो जाते हैं। ऊंचाई ढलान एवं हिमालय से दूरी के आधार पर अखरोट के फल तैयार होने का समय कुछ दिन आगे पीछे हो सकता है।

जिस समय अखरोट के बाहर का हरा छिलका फटने लगे समझो फल तैयार हो गया। ऐसी अवस्था आने पर चयनित (उन्नत किस्म के अखरोट) पौधे से उत्पादित फलों को तोड़ लें तथा किसी नम स्थान पर रखकर फलों के बाहरी छिलके को हल्की डंडी से पीटकर अलग कर लें और गीले बोरे से ढंक लें। धूप लगने पर गर्मी व नमी के कारण 5-6 दिनों में अखरोट के दानों में जमाव होने लगता है ।

पहले से तैयार किए गए प्रत्येक गड्ढे में एक या दो अंकुरित बीज रोपें।

छेद की गईं पॉलीथीन की बड़ी थैलियों, सीमेंट के खाली कट्टों में गोबर की खाद मिली मिट्टी भरकर इनमें अंकुरित बीज की बुआई करें।  पहले पौध तैयार कर अगले वर्ष भी पौधों का रोपण किया जा सकता है।

खेतों में गड्ढे अगस्त के अन्तिम सप्ताह या सितम्बर के प्रथम सप्ताह में बरसात के बाद, 10×8 यानी लाइन से लाइन 10 मीटर तथा पौध से पौध की दूरी आठ मीटर पर करें। गड्ढों को गोबर की सड़ी खाद मिलाकर भर लें।

तैयार गड्ढों में अंकुरित बीज लगाने के बाद सिंचाई अवश्य करें। इनको सूखी पत्तियों के मल्च से ढक लें, जिससे नमी बनी रहे। माह नवम्बर तक अंकुरित पौधे एक फिट तक बढ़ जाते हैं ।

इस विधि से लगाए गए अखरोट के पौधों में सात-आठ वर्षों के बाद फल आने शुरू हो जाते हैं।

डॉ. कुकशाल ने सोशल मीडिया पर दीपक ढौंडियाल द्वारा उक्त विधि से विकसित अखरोट के पिछले वर्ष बोए 9 से 10 माह के पौधों की फोटो साझा की है। श्री ढौंडियाल का इस वर्ष अखरोट के 500 पौधे इस विधि से लगाने का विचार है। जानकारी के लिए ढौंडियाल जी से 9897305094 पर संपर्क किया जा सकता है।

यदि आपके पास अखरोट की अच्छी साइन (कलमें) उपलब्ध हों, जिन्हें आप अपने आसपास के अच्छे अखरोट के पेड़ों से प्राप्त कर सकते हैं, तो आप इन बीजू पौधों पर कलमें भी बांध सकते हैं।

कलम बांधने का प्रशिक्षण ,राजकीय प्रजनन उद्यान/ आलू फार्म काशीपुर में लिया जा सकता है।

  • उप निदेशक उद्यान डॉ. ब्रिजेश गुप्ता के साथ लेखक

    चौबटिया रानीखेत में माली प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे प्रशिक्षणार्थियों को काशीपुर उद्यान में फल पौध प्रसारण में प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण उप निदेशक उद्यान डॉ. ब्रिजेश गुप्ता स्वयं देते हैं।

यदि कोई उद्यानपति/ कृषक फल पौध प्रसारण (फल पौधों के कलमी पौधे बनाना)में प्रशिक्षण लेना चाहता है, तो राजकीय उद्यान काशीपुर केन्द्र में आकर निशुल्क प्रशिक्षण ले सकता है।

डॉ. गुप्ता के नेतृत्व में मिशन अखरोट योजना के अन्तर्गत राजकीय उद्यान, चौबटिया (अल्मोड़ा), राजकीय उद्यान, मगरा (टिहरी), राजकीय उद्यान, कर्मी (बागेश्वर), राजकीय उद्यान, भीमताल (नैनीताल), औद्यानिकी विश्वविद्यालय, भरसार (पौड़ी), राजकीय उद्यान, काशीपुर (ऊधमसिंह नगर) में हजारों अखरोट बीजू पौधों पर कागजी अखरोट की कलम लगाकर कलमी पौधे तैयार किए गए। जिनमें अधिकतर कलमें डॉ. गुप्ता ने स्वयं बांधीं, जिन्हें विभाग ने स्थानीय उद्यानपतियों को वितरित किया।

डॉ. गुप्ता को औद्यानिकी में वर्षों का व्यवहारिक व तकनीकी अनुभव है। उद्यान संबंधित किसी भी जानकारी के लिए डॉ. गुप्ता से संम्पर्क कर सकते हैं। डॉ. गुप्ता उप निदेशक उद्यान का संपर्क नम्बर- 94121 24358 है।

Key words: Walnut plants, Akhrot ki Kheti kaise krein, what is Long gestation period, fruit plants of walnuts, Horticulture department of Uttarakhand

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राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन कर रहे हैं। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते हैं। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन करते हैं।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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