Uncategorized

पीने के पानी में भी प्लास्टिक की घुसपैठ

दुनिया में हर साल लगभग 300 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन किया जाता है और प्लास्टिक से फैलने वाला प्रदूषण अब भारत ही नहीं तमाम देशों की चिंता में शामिल है। हर जगह बिखरी प्लास्टिक हमारे शरीर में प्रवेश करने लगी, वो भी उस पानी के जरिये, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। अमेरिका के शोधकर्ताओं ने खुलासा किया कि दुनिया में नलों से आने वाले 83 फीसदी पानी में प्लास्टिक फाइबर की मौजूदगी मिली है। ये सीधे तौर पर आंखों से न दिखते हों, लेकिन इनको माइक्रोस्कोप की मदद से ही देखा जा सकता है।

नई स्टडी में दावा किया गया है कि न्यूयार्क से लेकर दिल्ली तक टेप वाटर (नलों से आने वाला पानी) में प्लास्टिक के नहीं दिखने वाले फाइबर की मौजूदगी है। ओर्ब और यूनिर्वसिटी ऑफ मिनेसोटा स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एक्सक्लूसिव रिसर्च में यह खुलासा हुआ है। ओर्ब में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि यूएस की राजधानी से लेकर यूगांडा के विक्टोरिया झील तक के महिलाएं, पुरुष, बच्चे सभी पानी के हर गिलास के साथ प्लास्टिक का उपभोग कर रहे हैं।

रिपोर्ट के अनुसार पांच महाद्वीपों के देशों से लिए गए 80 फीसदी से अधिक नमूनों में प्लास्टिक फाइबर की मौजूदगी मिली। माइक्रोप्लास्टिक यानि सूक्ष्म से सूक्ष्म प्लास्टिक फाइबर, न केवल समुद्र में भर रहे हैं, बल्कि दुनियाभर में पीने के पानी को भी सेहत के लिए खतरनाक बना रहे हैं। माइक्रो प्लास्टिक  कैंसर और अन्य बीमारियों के लिए जिम्मेदार विषैले कैमिकल्स को अवशोषित कर लेते हैं। ये मछलियों और अन्य जीवों के जरिये मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

रिपोर्ट में वैज्ञानिकों के हवाले से कहा गया है कि ये सूक्ष्म फाइबर कपड़ों, कारपेट और अन्य वस्तुओं के धुलने से भी पैदा हो सकते हैं। पानी के स्थानीय स्रोतों में मिलकर ये सीधे घरों तक नलों के जरिये पहुंच सकते हैं। लेकिन कोई इनको माइक्रोस्कोप की मदद के बिना नहीं देख सकता और अभी तक इनको फिल्टर करने का कोई तरीका सामने नहीं आया है। यदि प्लास्टिक फाइबर पानी में मौजूद है तो यह निश्चित रूप से आपने खाने में भी पहुंच जाएगा।

नये अध्ययन में कहा गया है कि प्लास्टिक फाइबर पानी में ही नहीं बल्कि जमीन पर भी जड़े जमा रहे हैं। हमें अब जल्द से जल्द यह पता लगाने की जरूरत है कि ये हमारे भोजन, वायु और नलों के पानी में कैसे पहुंच रहे हैं और इनका हम सब पर क्या प्रभाव होगा। अमेरिका के 94 टैप वाटर में प्लास्टिक फाइबर की मौजूदगी मिली। शोधकर्ताओं ने यूएसए में जांच के लिए पानी के नमूने कांग्रेस बिल्डिंग, यूएस एनवायरन्मेंट एजेंसी के हेडक्वार्टर औऱ न्यूयार्क में ट्रंप टावर से लिए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि यूएस के बाद लेबनान और भारत से लिए गए टैप वाटर के नमूनों में प्लास्टिक फाइबर की सबसे ज्यादा मौजूदगी दर्ज की गई।

प्लास्टिक प्रदूषण जीवन के लिए बड़ा खतरा है। प्लास्टिक को खत्म नहीं किया जा सकता। प्लास्टिक कचरा बायोडेग्रेड नहीं होता, बल्कि छोटे-छोटे महीन टुकड़ों में टूट जाता है। यहां तक कि ये नैनोमीटर स्केल से भी नीचे एक मिलीमीटर के हजारवें भाग तक टूट जाता है। स्टडी में खुलासा हुआ कि प्लास्टिक फाइबर भोजन के साथ आंतों से होते हुए शरीर के अन्य अंगों तक पहुंच सकते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक की ड्रिंकिंग वाटर में उपस्थिति को कैसे खत्म किया जा सकता है, यह यक्ष प्रश्न है, लेकिन हम जानते हैं कि वातावरण में प्लास्टिक फाइबर रोजाना और हर समय पैदा हो रहा है। कपड़ों को धोने औऱ सुखाने वाले उपकरण इसके बड़े स्रोतों में से एक हैं। स्टडी के अनुसार वाशिंग मशीन के एक बार इस्तेमाल से औसतन सात लाख से भी ज्यादा फाइबर वातावरण में रीलिज हो जाते हैं। वहीं बारिश भी पानी में माइक्रोस्कोपिप प्लास्टिक को बढ़ावा देती है।

.

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button