Short story- Moral Values

धूर्त सेठ और ईमानदार कर्मचारी

किसी शहर में एक लालची और धूर्त सेठ रहता था। वह अपने कर्मचारियों से डटकर काम लेता और उनको पैसे भी पूरे नहीं देता था। ठीक उन कंपनियों की तरह, जो खुद को घाटा दिखाकर या तमाम बहाने बनाकर तनख्वाह बढ़ाने से परहेज करती हैं। सेठ का व्यवहार भी बहुत खराब था। थोड़ी सी गलती होने पर कर्मचारियों से बड़ा हर्जाना वसूलता था। दिन रात काम कराता और बुरा भला कहता था।

एक दिन धूर्त सेठ का बैग गायब हो गया। बैग में सोने के सिक्के थे। सेठ के मानो प्राण ही निकल गए थे। उसने पूरा दफ्तर और हर कर्मचारी की जेब और थैले खंगाल डाले थे, लेकिन उसको अपना बैग नहीं मिल सका। उसने पुलिस में भी शिकायत दर्ज करा दी थी।

एक दिन एक कर्मचारी की बेटी को रास्ते में पड़ा बैग दिखाई दिया। बच्ची इस बैग को उठाकर घर ले आई। उसने पिता को बताया कि रास्ते में मिला बैग सोने के सिक्कों से भरा है। उसके पिता ने गिनती की तो 50 सिक्के मिले। कर्मचारी को तो पता ही था कि सेठ का बैग कहीं गायब हो गया है। ईमानदार कर्मचारी ने बेटी से कहा, यह मेरे सेठ का बैग है। सेठ इस बैग के लिए काफी परेशान है। यह बैग सेठ को लौटा देना चाहिेए। वह बहुत खुश होगा।

कर्मचारी और उसकी बेटी बैग को लेकर सेठ के पास पहुंचे। सेठ ने बैग लेकर उनका धन्यवाद तक अदा नहीं किया। सेठ ने गिनती कराई तो उसमें 50 सिक्के मिले। इस पर लालची सेठ ने कर्मचारी से कहा, बाकि के 25 सिक्के कहां गए। कर्मचारी ने कहा, मालिक बैग में 50 सिक्के ही थे। सेठ ने उसको फटकराते हुए कहा कि मेरा बैग चोरी करके तुमने 25 सिक्के निकाल लिए और अब ईमानदारी दिखा रहे हो। तुम ऐसे नहीं मानोगे, तुम्हें सबक सिखाना पड़ेगा।

कर्मचारी ने सोचा, कहां फंस गए। सेठ ने पुलिस बुलाकर पिता और बेटी पर चोरी का आरोप लगाया। पुलिस ने दोनों को कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने पिता और पुत्री से अलग-अलग बात की। दोनों ने एक ही जैसी बात बताई, कि बैग में 50 सिक्के ही थे। सेठ झूठ बोल रहा है। बैग गायब होने के समय भी वह 50 सिक्कों की बात कह रहा था। अगर हमें बेईमानी ही करनी होती तो हम सेठ का पूरा बैग ही गायब कर देते। हम पूरी तरह ईमानदार हैं।

कोर्ट को यह समझते देर नहीं लगी कि सेठ झूठ बोल रहा है। इस पर कोर्ट ने फैसला सुनाया कि यह बैग सेठ का नहीं है, क्योंकि इसमें 50 सिक्के हैं। सेठ के बैग में 75 सिक्के थे, इसलिए वह बैग दूसरा होगा। कोर्ट ने कहा, 50 सिक्कों वाला बैग कर्मचारी और उसकी बेटी को दे दिया जाए। जब 75 सिक्कों से भरा बैग मिलेगा, सेठ को सौंप दिया जाएगा। कोर्ट के इस फैसले पर सेठ ने माथा पकड़ लिया। इससे उसको सबक मिल गया कि कभी भी लालच नहीं करना चाहिए।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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