
शराब को यह कैसी लत, जो सड़क पर ही बिकना चाहती है
उत्तराखंड सरकार सड़क पर ही शराब क्यों बिकवाना चाहती है। जबकि पूरे राज्य में महिलाएं शराब की दुकानों के खिलाफ आंदोलन कर रही है। यह पूरी तरह जनता का आंदोलन है, लेकिन सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं है। जनता ने भाजपा को पूर्णबहुंमत देकर सरकार चलाने का मौका दिया, लेकिन सरकार ने उससे ज्यादा उन शराब व्यापारियों की चिंता की है, जिनको सुप्रीमकोर्ट के आदेश के अनुपालन में हाईवे से हटाया जाना है। सरकार तो सड़क पर ही शराब बिकवाना चाहती है, इसलिए उसने स्टेट हाईवे के उन हिस्सों को जिला रोड घोषित कर दिया, जिन पर शराब के ठेके चल रहे थे।
सरकार के इस निर्णय से हाईवे पर शराब की दुकानें चलाने वालों को कोई नुकसान नहीं होगा और उसको वहीं दुकान जमाने का मौका मिल जाएगा, जहां पहले से ही शराब का ठेका चल रहा था। उत्तराखंड सरकार ने 92 निकायों की सीमाओं में आने वाले स्टेट हाईवे को जिला मार्ग घोषित कर दिया। सरकार का मानना है कि हाईवे को जिला मार्ग घोषित करने से शराब की दुकानों को सड़क किनारे धंधा करने से नहीं रोका जा सकता। एेसा करके सरकार ने सुप्रीमकोर्ट के उस आदेश का काट निकाल लिया है, जिसमें हाईवे किनारे शराब के ठेकों को हटाने के लिए कहा गया था। उत्तराखंड सरकार का मानना है कि हाईवे को जिला मार्ग घोषित करके शराब की दुकानों को सड़क से हटाकर कहीं भीतर तक ले जाने से रोका जा सकता है।
सवाल उठता है कि किसी भी हाईवे को जिला मार्ग घोषित करने से क्या उस पर होने वाली गतिविधियां पहले की तरह कम हो जाती हैं। क्या हाईवे के जिस हिस्से को जिला मार्ग घोषित किया गया है, उस पर पहले की तरह हाईवे वाला ट्रैफिक नहीं चलेगा। क्या उस खास हिस्से पर सड़क दुर्घटनाएं कम हो जाएंगी, जैसे कि किसी हाईवे पर गाड़ियों की गति और शराब पीकर गाड़ियां चलाने से होती हैं। क्या हाईवे के किसी हिस्से को जिला रोड में तब्दील करने से उस पर शराब खरीदने वालों की भीड़ नहीं लगेगी। क्या शराब के ठेके की खातिर किसी सड़क का स्वरूप बदलना सही है।
उत्तराखंड सरकार के फैसले से साबित होता है कि सरकार की नजर में नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे और जिला रोड में कोई विशेष अंतर नहीं होता। इसका मतलब है कि सभी तरह की सड़कों के लिए निर्माण से लेकर बरतने तक के नियम समान हैं। अगर किसी रोड पर एक जैसा ही ट्रैफिक चलता है और उस पर वाहनों की गति भी एक समान ही होती है, उसकी खासियत में विविधता नहीं होती तो फिर नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, जिला रोड, लिंक रोड, स्थानीय निकाय की रोड में क्या अंतर है। सभी को एक समान सड़क का दर्जा क्यों नहीं दिया जाता है। सभी सड़कों के लिए एक जैसे नियम क्यों नहीं बनाए जाते।
उत्तराखंड में खनन और शराब के खिलाफ बने माहौल ने पिछली कांग्रेस सरकार की जो हालत बना दी थी, वो 11 मार्च को खुलकर सामने आ गई। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत दो जगहों पर चुनाव लड़ने के बाद भी विधानसभा तक नहीं पहुंच सके, जबकि पिछले चुनाव में हरीश रावत आगे और संगठन पीछे चल रहा था। कांग्रेस का चुनाव पूरी तरह उन पर फोकस हो गया था। रावत पूरे पांच साल के स्लोगन के सहारे चुनाव लड़ने वाले हरीश रावत और उनकी कांग्रेस का हश्र सबके सामने है। उस समय भाजपा ने शराब और खनन को लेकर कांग्रेस खासकर हरीश रावत को हर मोर्चे पर घेरा था। कांग्रेस का विरोध वोटों में बदल गया। हरीश रावत और उनकी कैबिनेट विधानसभा चुनाव में हार गई। दो पूर्व मंत्रियों के अलावा उनकी कैबिनेट में शामिल रहे अन्य मंत्री इस बार विधानसभा नहीं पहुंच पाए।
इस बार भाजपा सरकार भी शराब के ठेकेदारों के हित में फैसले कर रही है। इसके लिए भले ही सड़काें का स्वरूप ही क्यों न बदलना पड़े। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि शराब से बड़ा राजस्व मिलता है। शराब की बिक्री के पक्ष में इस तर्क को मान भी लिया जाए तो भी यह सवाल उठाना तो लाजिमी है कि सरकार सड़क पर ही क्यों शराब बिकवाना चाहती है। यह सभी जानते हैं कि शराब को हाईवे से पांच सौै मीटर दूर बेचा जाए या एक किमी. दूर, उसकी कमाई पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। राज्य में हाईवे हटने वाली शराब की दुकानों का भीतरी इलाकों या आबादी में जबरदस्त विरोध हो रहा है। एेसे में राजस्व काे बहाना बनाकर शराब के ठेकेदारों के लिए हाईवे को जिला मार्ग बनाने का फैसला ले लिया।