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डोईवाला के जीशान घोड़ा बुग्गी पर बैठकर सिलाई सीखने जाते थे, आज कामयाब टेलर हैं

34 साल के जीशान सुसुवा नदी के पुल के पास कुड़कावाला नई बस्ती में रहते हैं

राजेश पांडेय। डोईवाला

34 साल के जीशान सुसुवा नदी के पुल के पास कुड़कावाला नई बस्ती में रहते हैं। यह जगह डोईवाला से बुल्लावाला जाते समय सुसुवा नदी के पुल से सटी है। पैरों में दिक्कत की वजह से जीशान बैसाखियों के सहारे चलते हैं। बैसाखियों के सहारे चलना सिखाने का श्रेय वो एक पूर्व फौजी को देते हैं। कहते हैं, वो मुझे नहीं सिखाते तो मैं कुछ भी नहीं कर पाता। उनके बारे में वो विस्तार से बताते हैं। पर, जीशान से मुलाकात की वजह उनका हुनर है। जीशान के बनाए कपड़े लोग पसंद करते हैं। उनकी खास बात यह है कि वो चैलेंज स्वीकार करके जमकर मेहनत करते हैं।

जीशान बताते हैं, सातवीं तक पढ़ाई की। पहले कुड़कावाला रहते थे, बाद में पिता ने नई बस्ती में घर बना लिया। जब मैं छोटा था, तब भाई पीठ पर बैठाकर स्कूल ले जाता था। थोड़ा बड़ा हुआ तो बैसाखियों पर चलना सीखा। एक पूर्व फौजी ने मुझे बैसाखियों पर चलने के लिए कहा। मुझे इन पर बहुत डर लगता था। मैं कई बार उनको बुरा भला कह देता था, बचपन की बात थी, मुझे इतना कोई पता था कि वो मेरे भले के लिए यह सबकुछ कर रहे हैं। उन्होंने मुझे आगे चलना, पीछे की ओर चलना सिखाया। खुदा उनको जन्नत नसीब फरमाएं।

नई बस्ती में घर बनाया। पिता ने मुझे खोखा खोलकर दिया, जिसमें छोटा मोटा खाने का सामान बेचता था। यह काम अच्छा चलने लगा। खोखा बड़ा करके उसमें सामान भर दिया। बाद में सुसुवा नदी का पुल बना। वहां काम करने के लिए श्रमिक आए। दुकान अच्छी चलने लगी। पर, बाद में दुकान का काम अचानक ठप होने लगा। हमने बस्ती के बीच दुकान खोली, पर वो ज्यादा समय नहीं चल सकी।

जीशान बताते हैं, मेरे पिता ने कह दिया, मैंने जितना करना था कर दिया। तुम अब खुद देखो। मैं अब और मदद नहीं कर सकता। पिता के कहने पर मैंने टेलरिंग शॉप पर जाकर काम सीखना शुरू कर दिया। पहले देहरादून, फिर मियावाला और बाद में डोईवाला में काम सीखा। घर से इतनी दूर जाने में दिक्कत होती। यहां से घोड़ाबुग्गी डोईवाला जाती थी, उसमें बैठकर जाने लगा। कभी किसी जानने वाले की मोटरसाइकिल पर जाता। वहां से शाम को घर आने में काफी तकलीफों को सहा, पर हार नहीं मानी। हर मौसम अपना सीखना जारी रखा। पहले दुकान पर कुछ आय हो जाती थी, पर कहीं भी सीखने के दौरान कोई पैसा नहीं मिला। मुझे अपना काम शुरू करना था, इसलिए मन लगाकर सीखा।

जीशान अपनी दुकान चलाते हैं। ईद और शादियों के दिनों में उनके पास इतना काम होता है कि कारीगर भी रखने पड़ते हैं। कहते हैं, उनके उस्ताद जी ने कहा था, तुम एक महीने में 25 हजार रुपये तक का काम कर सकते हो, पर मैंने सीजन में 34 हजार रुपये तक कमाए। आजकल काम मंदा है, इसलिए खाली बैठा हूं। अब कुछ दिन बाद काम फिर शुरू हो जाएगा, हम व्यस्त हो जाएंगे।

वो कहते हैं, सीखना हमेशा काम आता है। मेहनत करने से जिंदगी आसान हो जाती है।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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