मुझे ऐसा लगा, जैसे मैंने अपने बक्से से पैसे निकाले हों
स्वयं सहायता समूह की आंतरिक ऋण व्यवस्था से महिलाओं को जरूरत पर तुरंत मिलते हैं पैसे
राजेश पांडेय। न्यूज लाइव
“हमें श्रीकेदारनाथ धाम मार्ग पर दुकान खोलने के लिए पैसे चाहिए थे, जो तुरंत मिल गए। यह इस तरह था, जैसे मैंने अपने बक्से से पैसे निकाले हों। मैंने आसानी से पूरे तीस हजार रुपये ब्याज सहित लौटा भी दिए। जबकि बैंक में ऐसा नहीं होता, वहां आवेदन के बाद बहुत सारे कागज जमा करने होते हैं, यहां तो अपना पैसा है, जरूरत पड़ते ही मिल जाता है।”
रामी देवी स्वयं सहायता समूह से आंतरिक ऋण हासिल करने की प्रक्रिया और इसकी सरल व्यवस्था के बारे में बात कर रही थीं। रामी रुद्रप्रयाग जिला के त्यूड़ी ग्राम पंचायत के स्यूल गांव में रहती हैं। त्यूड़ी ग्राम पंचायत, श्रीकेदारनाथ मार्ग स्थित गुप्तकाशी से लगभग 12 किमी. की दूरी पर है। इस गांव की आजीविका के प्रमुख स्रोत कृषि और श्रीकेदारनाथ यात्रा हैं। यहां के लोग यात्रा के दौरान दुकानें चलाते हैं या उनमें काम करते हैं। बड़ी संख्या में लोग खच्चरों से यात्रियों को श्रीकेदारनाथ धाम तक पहुंचाते हैं। जब हम इस गांव में पहुंचे तो पुरुष आजीविका के लिए श्रीकेदारनाथ धाम गए थे।
मंगलवार की दोपहर, गांव में बारिश हो रही थी, महिलाएं पूनम देवी के घर के बरामदे में कीर्तन कर रही थीं। ढोलक की थाप और मंजीरों की छन-छन के बीच गढ़वाली में भक्ति गीत गाए जा रहे थे। बीच-बीच में महिलाएं गीतों पर नृत्य भी कर रही थीं। महिलाएं बताती हैं, सामाजिक भागीदारी, कीर्तन, संगीत और बैठकें उनको तनाव से दूर रखते हैं। जब भी समय मिलता है, वो सभी इसी तरह कीर्तन करती हैं, बातें करती हैं और इस बीच एक दूसरे से मन की बातें भी हो जाती है। सभी महिलाएं एक साथ घास-पत्ती लेने नजदीकी जंगलों और अपने खेतों में जाती हैं। खेतीबाड़ी और पशुपालन की जिम्मेदारी, महिलाओं के ही भरोसे है।
करीब 47 वर्ष की सरिता देवी, 13 महिलाओं के आरती स्वयं सहायता समूह की अध्यक्ष हैं। सरिता बताती हैं, उनकी बैठक हर माह की चार तारीख को होती है। जब भी समय मिलता है, महिलाएं कभी किसी के घर, कभी किसी के घर पर कीर्तन करती हैं। अब सावन में कीर्तन प्रतिदिन होगा। जब भी समय मिलता है, तब यूट्यूब पर गाने भी सुनती हैं।
समूह की गतिविधियों पर चर्चा में, सरिता देवी बताती हैं, महिलाएं सौ-सौ रुपये जमा करती हैं, वर्तमान में समूह के पास लगभग डेढ़ लाख रुपये जमा हैं। सभी सदस्य एक दूसरे की आवश्यकता का ध्यान रखते हैं, किसी को जरूरत पर पैसे चाहिए तो दूसरे दिन ही बैंक के माध्यम से उपलब्ध करा देते हैं। आंतरिक ऋण पर हीमा देवी बताती हैं उनको खच्चर खरीदने के लिए पैसों की जरूरत थी, जो तुरंत मिल गए। हमें कभी महसूस ही नहीं हुआ कि यह पैसा कर्ज के रूप में ले रहे हैं, क्योंकि यह न तो बैंकों की जटिल प्रक्रिया की तरह है और न ही किसी ने इसको चुकाने के लिए किसी तरह का दबाव बनाया।
“समूह की हर सदस्य ने जरूरत पड़ने पर ऋण लिया है और पूरा पैसा समय के भीतर चुकाया भी है। समूह की एक और बड़ी विशेषता यह है कि, यह महिलाओं की सामाजिक भागीदारी को बढ़ाता है। उनका व्यक्तित्व विकास होता है और आत्मनिर्भरता बढ़ती है। कोषाध्यक्ष होने के नाते बैंक जाती रही हूं, वहां अधिकारियों से बात करती हूं। बैंक के फार्म भरती हूं। अपनी पासबुक को चेक करते हैं। पहले कभी बाजार तक जाने में संकोच होता था। किसी से बात तक नहीं कर पाती थी। मैंने अपने व्यक्तित्व में सकारात्मक बदलाव महसूस किया है, जो समूह में जुड़ने की वजह से है। हमारे में से कोई स्वयं को अकेला नहीं, बल्कि एक समूह के रूप में जानते हैं, कोषाध्यक्ष कविता देवी बताती हैं। ”
अध्यक्ष सरिता देवी ने बताया, हम खेतीबाड़ी, पशुपालन के अलावा हम श्रीकेदारनाथ धाम का प्रसाद भी बनाते हैं। मई-जून के महीने में समूह की सदस्य चौलाई (मारसा) के लड्डू बनाते हैं। हमने यह कार्य करने के लिए चार ग्रुप बनाए हैं, कोई सुबह और कोई शाम को लड्डू बनाते हैं। उनको यह कार्य ग्राम प्रधान सुभाष रावत और गीता रावत के सहयोग से मिला है। प्रसाद बनाना हमारे लिए सौभाग्य की बात है, वहीं महिलाओं को इस कार्य से अच्छी आय भी हुई। उनको स्वयं को चार हजार रुपये से ज्यादा की आय हुई, किसी ने छह हजार तो किसी ने नौ हजार रुपये तक कमाए। सरिता हमें पहाड़ की नारी के हौसले पर एक गीत सुनाती हैं- ये पहाड़ की नारी, हिम्मत न हारी…।
समूह की कोषाध्यक्ष कविता बताती हैं, उन्होंने प्रसाद बनाकर 6,300 रुपये कमाए और दोपहर में अपने सेंटर पर जाकर हैंडलूम पर कपड़ा बनाती हूं, इससे भी मुझे आय होती है। सुबह नौ से एक बजे तक गांव में मनरेगा के कार्य होते हैं। इन दिनों मनरेगा के तहत जलाश्य बनाया जा रहा है। मुझे मनरेगा कार्यों का लीडर बनाया गया है। मनरेगा में प्रतिदिन चार घंटे काम करते हैं।
इस दौरान महिलाओं ने ढोलक और मंजीरे की थाप पर कीर्तन किया। इस दौरान वो आपस में हंसी मजाक भी करती हैं और खेती, पशुपालन पर भी अपनी राय रखती हैं। उनका कहना है, कीर्तन या कोई सामुदायिक या पारिवारिक समारोह ही नहीं, बल्कि खेतों में कार्य करने, घास लेने जाने के समय भी वो एक दूसरे के साथ होती हैं। वहां भी बातें करते हैं, मोबाइल फोन पर गाने सुनते हैं और घर से खाना ले जाकर खेतों पर खाते हैं। उनकी सामाजिक सहभागिता तो हमेशा रहती है।