Creativity

प्रदूषकों की सभा

  • राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल
राजेंद्र प्रसाद अग्रवाल प्रधानाचार्य

एक दिन सभा हुई प्रदूषकों की विशिष्ट निराली।

रात के ग्यारह बजे थे और सब नुक्कड़ पर जमे थे।

पवन, जल, मिट्टी,  दास बने , सिर झुकाए खड़े थे।  

बीमारियों से जर्जर मानव, बंधक बने हुए थे।

विनाश लीला की लगी हुई थी, हौड़ सभी में।    

इस प्रतियोगिता में सभी, बढ़ चढ़ कर बोल रहे थे।

उजला, सुथरा सोप डिटरजेंट इतराया, मैं हूं बिषैला।

पानी सड़ाता,कीटाणु बढ़ाता,जन्मदाता भयंकर रोगों का।

बेखौफ फिनॉल गुर्राया, लोगों ने मुझसे पौछा बहुत लगाया।

अब क्लोरीन से मिलकर डाइअॉक्सीन बना रहा।

आदमी की जिंदगी में कैंसर फैला रहा।

एक ओऱ से आवाज आई, अरे मैं हूं इन्सेक्टिसाइड।

कीड़े- मकौड़े मारती ऊबी आदमी पर कर रही हूं पीएचडी।

अनाज को कीड़ों से बचाता है, लेकिन मेरे आगे घुटने टिकाता है।

बड़े रौब से ग्रीन हाउस गैसों ने भी फरमाया।

हमने पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ाया।

सूखा, बाढ़, भूकंप, सुनामी का संकट बरपाया।

गरीब, किसान, मजदूर पर आत्महत्या का साया गहराया।

आई रंग बिरंगी तितलियों सी इतराती डाइज की बारी।

बोली मैंने रंगीन कर दिया संसार जिनका।

क्या जाने कितना बेरंग है मजार उनका।

तभी आवाज आई भिन्न- भिन्न, ये थी एक्सपायर्ड मेडिसिन।

जीवन देने की उम्र तो कब की गुजर गई।

जीवन छीनने का तजुर्बा कमाने निकल गई।

अस्तित्व मेरा मिटाना संभव ही नहीं।

बचोगे कैसे, जरा जोर लगाकर दिखाओ सही।

तभी एक विस्फोट किया रेडियोएक्टिव पदार्थों ने।

कांप उठा सीना धरती का, थर्राया दामन रजनी का।

मैं हूं वही जिसने एक आदमी को दूसरे से लड़ाया।

और एक देश का विश्वास दूसरे पर से उठाया।

जमीं पर इतने हिरोशिमा नागासाकी बना जाऊंगा।

कि सदियों का इतिहास एक पल में लिख जाऊंगा।

हे नियति ! ये मानव आज कहां आ खड़ा हुआ है ?

ज्ञाता बनने की धुन में बंधक बना पड़ा हुआ है।

 

  • लेखक राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मदरसू , देहरादून के प्रधानाचार्य हैं।

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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