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थानो गांव के इन युवाओं से जरूर मिलिएगा…

हम जानना चाहते हैं कि हमारे आसपास क्या हो रहा है। जानकारी मिली कि थानो गांव में ग्रोथ सेंटर खुला है, जहां स्थानीय उत्पादों की बिक्री होती है। थानो देहरादून जिला के रायपुर ब्लाक में आता है। ग्रोथ सेंटर स्थानीय संसाधनों पर आधारित आजीविका को बढ़ावा देता है।

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ये ग्रामीण क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता की ओर प्रेरित ही नहीं करते, बल्कि पूर्ण सहयोग के साथ काम कर रहे हैं,ऐसी जानकारी हमें मिली। कुल मिलाकर यह पूरी व्यवस्था ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक प्रगति के दृष्टिकोण से स्थापित की गई है।

हम ग्रोथ सेंटर्स के कार्य करने तथा ग्रामीणों के उत्पादों को इन तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया को भी जानना चाहते हैं। ग्रोथ सेंटर्स के महत्व तथा इनके योगदान को समझने के लिए थानो पहुंचे, लेकिन हमें वहां जाकर मालूम हुआ कि संडे की वजह से ग्रोथ सेंटर नहीं खुला है।

यह जानकारी हमें उन लोगों से ही मिल गई थी, जिनसे थानो पहुंचकर हमने पूछा था कि ग्रोथ सेंटर कहां है। खैर, इतनी दूर आ ही गए हैं तो ग्रोथ सेंटर को बाहर से तो देख ही सकते हैं। कुछ ही देर में हमारे सामने थी, एक सुन्दर इमारत, जिसके गेट पर बड़े से बोर्ड पर लिखा था, कृषि व्यवसाय ग्रोथ सेंटर, न्याय पंचायत थानो।

मनोविज्ञान काउंसलर औऱ शिक्षक मित्र हेमचंद्र रयाल जी से जानकारी मिली कि थानो में युवाओं की टीम पर्यावरण सुरक्षा और जागरूकता के लिए अभियान चला रही है। इस टीम में सभी युवा स्वेच्छा से जुड़े हैं। उनसे ही मालूम हुआ कि हमारे वर्षों पुराने पत्रकार मित्र जगदीश ग्रामीण भी थानो के पास रामनगर डांडा में रहते हैं।

जगदीश ग्रामीण वैसे तो सिंधवाल गांव के निवासी हैं, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र बहुत विस्तार लिए है। करीब 25 साल पहले जगदीश ग्रामीण जी देहरादून के रायपुर ब्लाक के गांंवों , टिहरी गढ़वाल जिले में दोगी पट्टी क्षेत्र, चमोली के सिलोड़ी गांव की समस्याओं को उठाते रहे हैं।

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ऐसा नहीं है कि वो समस्याएं ही गिनाते रहे, उन्होंने इनके सकारात्मक समाधान की बात भी की। उस समय मैं उनसे जब भी मिलता तो गांवों के विकास की ही बात करते थे। वो ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन के पदाधिकारी भी रहे। नाम से ही आपको पता चल सकता है कि जगदीश जी का ग्रामीण अंचलों के प्रति कितना स्नेह और समर्पण है।

वर्तमान में जगदीश ग्रामीण जी टिहरी गढ़वाल जिला के राजकीय इंटर कालेज नागणी, चंबा में हिन्दी के अध्यापक हैं। बताते हैं कि हाल ही में उन्होंने देहदान औऱ नेत्रदान का संकल्प लिया। दर्द ए दिल नाम से कॉलम भी लिखते हैं, जिसमें सामाजिक गतिविधियों का जिक्र करते हैं।

हम रामनगर डांडा में अशोक तिवारी जी के आवास पर उनसे मिले। वहां रामनगर डांडा और थानो के कई युवा भी थे, जिनसे जगदीश ग्रामीण जी ने परिचय कराया। ये सभी युवा मातृभूमि सेवा संगठन से जुड़े हैं।

हमने संगठन के अध्यक्ष अमित कुकरेती तथा जगबीर नेगी, सुमन तिवारी, अनुज तिवारी, प्रमोद कोठारी, मनीष तिवारी, अंशुल कठैत, राहुल तिवारी से मुलाकात की। ये युवा व्यवसाय, कृषि और विभिन्न संस्थानों में सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इनमें पैरामेडिकल और ग्रेजुएशन के छात्र भी हैं। सभी रचनात्मक औऱ सकारात्मक सोच के साथ अपने गांव के लिए कुछ नया करना चाहते हैं।

कुकरेती जी ने बताया कि करीब तीन माह पहले सभी युवाओं ने हर सप्ताह गांव और आसपास के वन क्षेत्र में प्लास्टिक औऱ पॉलीथिन कचरा इकट्ठा करते हैं। थानो से होकर रायपुर, देहरादून व मसूरी होकर जा रही सड़क पर बड़ी संख्या में लोगों का आवागमन लगा रहता है।

यह सड़क वन क्षेत्र के बीच में औऱ पास से होकर गुजरती है। रास्तों में अक्सर पॉलीथिन पैकेट, प्लास्टिक की बोतलें, गिलास आदि फेंक कर लोग आगे बढ़ जाते हैं। स्थानीय युवा इस कचरे को इकट्ठा करके एक स्थान पर डंप करते हैं। उनके सामने एक बड़ी समस्या यह है कि इस कचरे का, खासकर पॉलीथिन का निस्तारण कैसे करें। उनको इसके लिए संबंधित सरकारी व्यवस्था से मदद की आवश्यकता है।

युवा अंशुल कठैत जी बताते हैं कि संगठन का उद्देश्य अपने गांव को 2022 तक पूरी तरह प्लास्टिक व पॉलीथिन कचरा मुक्त करने का है। इस दिशा में बिना रुके प्रयास कर रहे हैं। अपने गांव को स्वच्छ रखने की जिम्मेदारी हमारी ही है। आज रविवार को गांव के रास्तों के किनारे उग आई झाड़ियों का कटान किया।

ये युवा लोगों को स्वच्छ पर्यावरण के लिए जागरूक कर रहे हैं। हमने उनसे पूछा कि अधिकतर लोगों का मानना है कि युवा मोबाइल फोन पर ज्यादा समय बिताते हैं। वो दुनिया से जुड़ने की कोशिश में अपने आसपास के लोगों को भूल जाते हैं। वो अपने आसपास क्या हो रहा है, की ओर ध्यान नहीं देते, क्या यह बात सही है।

कुकरेती जी ने बताया कि मोबाइल फोन पर शेयर मार्केट का हाल जानते हैं। समाचार जानते हैं औऱ कुछ समय सोशल मीडिया पर भी बिताते हैं।

युवा प्रमोद कोठारी जी का कहना था कि ऐसा नहीं है, भले ही युवाओं का अधिकतर समय मोबाइल फोन पर बीतता है,पर वो अपने समाज व अपने बारे में भी सोचते हैं। उन्होंने कहा कि कोई भी चीज गलत नहीं होती। इसी तरह मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना बुरी बात नहीं है, पर हमें देखना होगा कि इसका इस्तेमाल किस कार्य के लिए कर रहे हैं।

एक उदाहरण देते हुए कहा कि चाकू का इस्तेमाल सब्जी और फल काटने में होता है, पर कई लोग इसका गलत इस्तेमाल करते हुए गला भी काट देते हैं।

हमने मोबाइल पर गेम और अपने बचपन के पिट्ठूचाल का जिक्र किया तो कोठारी जी ने बताया कि हमारे गांव में बच्चे आज भी पिट्ठू चाल खेलते हैं। आधा घंटे पहले तक बहुत सारे बच्चे यहीं पर खेल रहे थे। हम सभी ने गांव के मैदान में क्रिकेट खेलना शुरू किया है।

मैदान के खेलों से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। आप ऊर्जावान रहते हैं। बचपन की याद ताजा करते हुए हमने बताया कि घर के पास एक स्कूल के मैदान में चकोतरे को फुटबाल बनाकर खेलते थे। उस समय हमारे पास फुटबाल नहीं होती थी, केवल मैदान होते थे। अब फुटबाल है, पर मैदान नहीं है।

युवा अशोक तिवारी, जो सांस्कृतिक गतिविधियों एवं रंगमंच से जुड़े हैं, ने एक वाकया साझा करते हुए बताया कि हमारे स्कूल की बॉलीवाल टीम लगातार दस साल से हार रही थी। हमने हार के कारणों के बारे में सोचा औऱ फिर ठान लिया कि इस बात तो हम टूर्नामेंट जीतकर रहेंगे।

हमने सभी ने एकजुटता के साथ जमकर मेहनत की। हमारे शिक्षकों ने भी हमारे साथ मेहनत की। इसका परिणाम यह हुआ कि हमारे स्कूल की टीम मंडल स्तर पर चैंपियन घोषित हुई। यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती है कि निश्चय करके मेहनत करो, जीत होकर रहेगी।

बातचीत को आगे बढ़ाते हुए हमने जागरूक युवाओं को साहसी नन्हा पौधा कहानी सुनाई, जिसमें एकता में ही शक्ति है, का संदेश है। यह कहानी एक पौधे की है, जो जंगल में आई बाढ़ में अपने अस्तित्व पर संकट को लेकर चिंतित है। मिट्टी की सलाह औऱ मदद से वह खुद के साथ अपने साथी पौधों की मदद करता है।

इसके साथ ही हमने युवाओं से फिर जल्द ही मिलने का वादा करते हुए विदा ली। मैं रयाल जी और ग्रामीण जी का शुक्रिया अदा करते हैं, क्योंकि उनके माध्यम से हमें थानो, रामनगर डांडा में कुछ जागरूक दोस्त मिले।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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