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तक धिनाधिनः आइए मिलते हैं मोहब्बत खान से

मैं जब भी किसी स्कूल में जाता हूं तो बाहर और क्लासरूम की दीवारें मुझे काफी आकर्षित करती हैं। मेरा बस चले तो बस दिनभर इन दीवारों को ही देखता रहूं, एकटक। ये संवाद करती हैं और किताबें खोलने के लिए प्रेरित भी। मुझे तो ऐसा लगता है कि दीवारों को भी ज्ञान बांटने की प्रेरणा किताबों से ही मिली है।

शायद किताबों ने सोचा होगा कि बच्चे चित्रों और रंगों को इन्जवॉय करते हैं, इसलिए उनको जहां देखो, वहां चित्र और एक से बढ़कर एक रंग देखने का अवसर दिया जाए। बच्चे जहां देखें, वहां उन्हें कुछ न कुछ सिखाया जाए । इसलिए किताबें अपने भीतर छिपे ज्ञान को बड़े कैनवॉश पर पेश करना चाहती थीं। स्कूलों में दीवारों से बड़ा कैनवॉश क्या होगा।

हमेशा मौन और बेजान रहने वाली दीवारें अब हर बच्चे तक ज्ञान पहुंचाने के अभियान में शामिल हो गईं। इन बेजान दीवारों में जान कौन फूंकता है। हम उनके बारे में जानना चाहते थे। मानव भारती प्रस्तुति तकधिना धिन की टीम डोईवाला के राजकीय कन्या प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालय पहुंची। यहां दीवारों को रंगों से रोशन कर रहे 44 साल के मोहब्बत खान और उनके सहयोगी 18 वर्षीय मोहम्मद अकरम से मुलाकात हुई।

जब हम उनके पास पहुंचे तो मोहब्बत खान दीवार पर दिनों के नाम लिखने में व्यस्त थे। कुछ देर बाद उनका ध्यान हमारी ओर गया तो कहने लगे, बस यह पूरा कर लूं, फिर आपसे फुर्सत से बात करता हूं। बातचीत में पता चला कि इन बोलती दीवारों का राज, ब्रश और रंगों की विविधता से कहीं ज्यादा कुछ और भी है।

मोहब्बत बताते हैं कि वो नूंह, जिला मेवात (हरियाणा) के रहने वाले हैं। दसवीं पास करने के बाद भाई के साथ ट्रक पर ड्राइवरी सीखने लगे, लेकिन उसमें मन नहीं लगा। वह कुछ नया करना चाहते थे। कुछ ऐसा, जिसे देखकर लोग कहे, वाह.. तुमने तो कमाल दिया मोहब्बत। ऐसा सुनकर लगता है कि बस मेरी मेहनत वसूल हो गई।

स्कूलों में जब चित्र बनाता हूं, उनमें रंग भरता हूं तो बच्चे घेर लेते हैं। कुछ बच्चे तो यह तक कहते हैं कि अंकल जी, हमें सीखा दो। आप तो बहुत अच्छे चित्र बनाते हो, कैसे कर लेते हो यह सबकुछ। अपनी बात को ही बीच में रोकते हुए मोहब्बत कहते हैं, हां तो मैं आपको बता रहा था कि यह काम कब शुरू किया।बताते हैं कि शादी हो गई, पर मैं तो कोई ऐसा काम नहीं कर रहा था, जिससे जिंदगी की गाड़ी चल सके। मेरी ड्राइंग, पेंटिंग बहुत अच्छी थी।

मुझे घूमने का बहुत शौक था। अक्सर दिल्ली जाता था। वर्ष 2000 की बात है, दिल्ली में अजमेरी गेट के पास कमला मार्केट में फिल्मों के होर्डिंग बनाए जाते थे। पेंटर्स की टीम बहुत मेहनत से होर्डिंग बनाती थी। मैं उनको कैनव़ॉश पर ब्रश करते देखता। रंगों को तैयार करते देखता। बचपन से ही मुझे रंगों से प्यार है, इसलिए मुझे वहां बहुत अच्छा लगता। पूरा पूरा दिन उनको देखता रहता। एक दिन मैंने उनके उस्ताद से कह ही दिया, क्या आप मुझे सीखा सकते हो। उन्होंने कहा, ठीक है, सीख लो, पर मेहनत बहुत है। मैंने कहा, मैं मेहनत से नहीं घबराता। उन्होंने पहले किसी को मेरे घर भेजा, ताकि मेरे बारे में जान सकें कि कहीं घर से भागकर तो नहीं आया। जब संतुष्ट हो गए तो मुझे अपनी टीम में शामिल कर लिया।

मैंने मन लगाकर काम सीखा। उस्ताद दामोदर जी, मुझे जो भी काम देकर जाते, मैं मन लगाकर करता। कोशिश रहती कि उनको अच्छे से अच्छा करके दिखाऊं। एक दिन उन्होंने मुझे पास कर दिया। मेरा संघर्ष काम आया। लगभग 20 साल से पेंटिंग कर रहा हूं। ज्यादातर काम स्कूलों और अस्पतालों की दीवारों पर किया। अभी तक गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश में काम कर चुका है। मुझे याद भी नहीं है कि कितने स्कूलों में काम किया। मुझे इन सभी राज्य के सभी जिलों के नाम याद हो गए। यह काम है ही ऐसा, जो आपको कुछ न कुछ नया सिखाता है।

मोहब्बत कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती और किसी भी कला को कोई अंत नहीं होता। कला को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। हम हर दिन कुछ नया सीखते हैं और हर दिन कुछ नया करने की कोशिश। हमारी यह कोशिश जीवनभर जारी रहेगी। हर दिन की सुबह यह सोचकर होती है कि आज कुछ ऐसा करेंगे, जो अन्य दिनों से कहीं ज्यादा अच्छा होगा। पूछने पर बताते हैं कि दीवारों पर चित्र बनाते बनाते मैं भी गणित और विज्ञान की कुछ बातों को सीख गया। मुझे नक्शे याद हो गए। भारत के नक्शे में कौन सा राज्य कहां है। राज्यों के नक्शों में कौन सा जिला कहां है, मुझे याद हो गया। मैं भी काफी कुछ सीख गया। यह सब वर्षों से किए जा रहे अभ्यास का फल है।

कोई भी कलाकार हो, वह अपने हुनर में खो जाता है। जब चित्र बनाता हूं, उनमें रंग भरता हूं तो मैं यह भूल जाता हूं कि मेरे आसपास क्या हो रहा है। मुझे स्कूल में बच्चों का शोर भी सुनाई नहीं देता। मेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ कुछ नया और अच्छा करने पर होता है। किसी की तारीफ हमारे लिए पैसे से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

मोहब्बत ने सौर मंडल की ओर इशारा करते हुए हमसे पूछा, आपको कैसा लगा। मैंने कहा, बहुत अच्छा। सौर मंडल ने मुझे बचपन की याद दिला दी। मेरी आठवीं की किताब में था सौर मंडल। कॉपी पर कोने में कंपास की मदद से आधा गोल सूर्य बनाते थे। उसके पास बुध, शुक्र और पृथ्वी के लिए अलग-अलग आकार के गोले औऱ उनकी कक्षाएं। मेरी ड्राइंग पेंटिंग कोई खास नहीं थी, इसलिए यह काम हमेशा खराब ही होता था। वैसे तो मेरी राइटिंग भी बहुत खराब है, इसलिए हमेशा किसी को अपनी कॉपी दिखाने से बचता रहता था।

दीवार पर बनाए फलों को देखते ही एक बार फिर स्कूली दिनों में लौटते हुए मैंने पेंटर मोहब्बत खान को बताया कि आपने क्या शानदार अंगूर का गुच्छा बनाया है। मुझे कक्षा चार में आर्ट की टीचर ने अंगूर का गुच्छा बनाने के लिए कहा था। मैं पूरा दिन मोहल्ले में रहने वाली नीलम दीदी के घर बैठा रहा कि कब उनके पास समय होगा और वो मेरी फाइल में अंगूर का गुच्छा, वो भी पत्तों व शाखा के साथ बनाएंगी। नीलम दीदी इन दिनों देहरादून में ही राजकीय स्कूल में शिक्षिका है। किसी तरह उन्होंने पेंसिल से अंगूर का गुच्छा स्कैच कर दिया। मैं फिर भी उनके घर पर बैठा रहा।

 मुझे कुछ कुछ याद है कि उन्होंने कहा था कि घर जाओ और इस पर रंग भरो। पता है न, कौन से रंग भरने हैं। मैं उनकी तरफ देखता रहा और फिर बैग से रंग का डिब्बा बाहर निकाला। उनको समझते देर नहीं लगी कि यह रंग भी मुझसे ही भरवाएगा। उस समय बट्टी वाले रंग होते थे। दीदी ने कहा, अच्छा ठीक है, पानी लाकर रंग पर ब्रश फेरो। यह है हरा रंग। मैं खुशी खुशी अपना काम करने लगा। दीदी ने मुझे रंग भरना सिखाया। सच बताऊं, मैंने आज तक रंग भरने और चित्र बनाने का कोई काम करने की सोची तक नहीं। मैं तो चित्रकारी देखकर यही कहता हूं, कैसे कर लेते हैं यह सबकुछ।

मोहब्बत कहते हैं कि अब फ्लैक्स का जमाना है, जो डिजाइन चाहो, मिनट में हाजिर हो जाता है। पेंटिंग में टाइम तो लगता है पर यह फ्लैक्स से ज्यादा स्थाई और आकर्षक होता है। हालांकि पेंटिंग का काम पहले से कम हो गया है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि इसका आकर्षण हमेशा बना रहेगा। पेंटर मोहब्बत खान ने कई युवाओं को पेंटिंग के गुर सिखाए और आज वो आत्मनिर्भर होकर पेंटिंग कर रहे हैं।

वर्तमान में उनके साथ काम कर रहे मोहम्मद अकरम भी नूंह ( मेवात) के रहने वाले हैं, ने हाईस्कूल पास किया है। वह बताते हैं कि मेरी ड्राइंग पेंटिंग बचपन से ही अच्छी है और यह मेरा शौक भी। मैंने उस्ताद जी ( मोहब्बत खान) से बात की तो उन्होंने कहा,ठीक है सीखो पर, मन लगाकर। उस समय मैं नौवीं क्लास में था। कुछ महीने उस्ताद जी के पास जाकर पेंटिंग सीखने लगा। पर फिर मैंने सोचा कि पेंटिंग तो मैं फिर सीख लूंगा, पहले दसवीं पास कर लूं। मैंने उस्ताद से बात की तो उन्होंने खुशी खुशी कहा, यह अच्छी बात है, पहले पढ़ाई पूरी कर लो। फिर आ जाना।

मैंने दसवीं पास किया और लगभग एक साल से पेंटिंग सीख रहा हूं। अभी तो मैं कलर करता हूं, पेंसिंल और चॉक से स्कैचिंग तो उस्ताद जी ही करते हैं। कलर को मिलाकर दूसरा कलर बनाना। सामने वो गोला देख रहे हो न, मैंने कहा, हां देख रहा हूं, कुछ नीला सा है। मोहम्मद ने कहा, वो नीला नहीं है, नीला जैसा है। उसको बनाने में तीन रंग मिलाए गए हैं। मोहब्बत और अकरम के साथ सेल्फी तो बनती है… और तक धिनाधिन ने दोनों से विदा लेकर अगले पड़ाव की ओर कदम बढ़ा दिया। अगले पड़ाव पर पहुंचने तक आप सभी को शुभकामनाओं और बहुत सारी खुशियों का तक धिनाधिन।

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Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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