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उत्तराखंड के कोल गांव में सैकड़ों साल पहले की अविरल जलधारा

टिहरी गढ़वाल के कोल गांव में ऐसी अद्भुत जलधारा है, जिसके बारे में बुजुर्ग ग्रामीणों को भी नहीं पता, यह कब से है। वो बताते हैं, उनके बुजुर्ग भी नहीं जानते थे, ये कब से हैं। अनुमान लगाया जा रहा है, यह जलधारा कोल गांव बसने से पहले की है। हो सकता है, इस धारा की वजह से ही लोग यहां रहने लगे हों और गांव बस गया। वर्षों पुरानी जलधारा गांव की कृषि सिंचाई एवं पेयजल व्यवस्था के लिए वरदान है।

टिहरी गढ़वाल और देहरादून जिले की सीमा पर बसे कोडारना ग्राम पंचायत के कोल गांव बेहद सुंदर है। यहां की आबोहवा शानदार है। करीब 63 साल के किसान श्याम किशोर बिजल्वाण बताते हैं, इस जलधारा का पानी गर्मियों की सुबह ठंडा और सर्दियों की सुबह गरम रहता है। करीब दस साल पहले तक हम इसी धारा तक पानी लेने आते थे। पर, अब हमारे घरों तक नलों से पानी आता है।

इस जलधारा को थोड़ा ऊंचाई से टेप करके पहले टैंकों में भरा जाता है और फिर घरों तक पहुंचाया जाता है।

गर्मियों में इस धारे के पास बैठे रहो, आपको गर्मी का अहसास नहीं होगा। कुल मिलाकर यह हमारे गांव के लिए सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। हमें नहीं मालूम यह धारा कहां से आ रहा है, इसका स्रोत कहां है।

श्याम किशोर बिजल्वाण बताते हैं, पूरा गांव हर वर्ष धारा पर पूजन करता है। मांगलिक और शुभ कार्यों पर धारा की पूजा की जाती है।

विस्तृत जानकारी के लिए देखिएगा यह वीडियो-

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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