जब 35 साल पहले डोईवाला आए थे ज्वालापुरी शू मेकर
डोईवाला। राजेश पांडेय
करीब 56 साल के शिव कुमार, जो हरिद्वार के ज्वालापुर के रहने वाले हैं, डोईवाला में ज्वालापुरी के नाम से पहचान रखते हैं। बिना कारीगर के, अकेले दम पर 35 साल से दुकान चला रहे शिव कुमार के बनाए शूज को खूब तारीफ मिलती है। डोईवाला में ज्वालापुरी ब्रांड बनकर सामने आए हैं, कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। कहते हैं क्वालिटी से कोई समझौता नहीं।
21 साल की उम्र में डोईवाला में दुकान खोलने वाले शिव कुमार बताते हैं, आज के समय में काम बहुत है, खाली वो ही लोग हैं, जो कुछ करना नहीं चाह रहे। मैं टेलरिंग भी जानता हूं।
डोईवाला के मिल रोड पर बनी दुकानों की दूसरी मंजिल पर ज्वालापुरी शू मेकर को उतने साल से ही जानता हूं, जब से इस शॉप की शुरुआत हुई थी। 1991 में 12वीं क्लास में पढ़ाई के दौरान इनसे शूज खरीदे थे। लंबे समय तक ये शूज पहने। अनुभव बेहद शानदार रहा।
हंसमुख स्वभाव वाले शिवकुमार कहते हैं, जब डोईवाला में दुकान शुरू करने आया तो लगा, शायद मैंने गलत फैसला ले लिया। मैं ज्वालापुर हरिद्वार जैसे शहर से यहां आया था, डोईवाला ज्यादा विकसित शहर नहीं था। अब तो डोईवाला बड़े शहर के रूप में आगे बढ़ रहा है। यहां के लोगों का बहुत साथ मिला।
बताते हैं, मैंने अपनी दुकान का कोई प्रचार नहीं किया। हमारा प्रचार ग्राहक खुद करते हैं, क्योंकि उनको हमारे शूज पसंद आते हैं। शुरुआत में हमने चप्पलें और सैंडिल बनाए, पर अब शूज ज्यादा खरीदे जा रहे हैं।
शिव कुमार का कहना है, ब्रांडेड शूज खरीदने वो ही जाते हैं, जिनके पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा है। हालांकि हमारे पास पहले से ज्यादा आर्डर आ रहे हैं।
अगर मैं दुकान पर ग्राहकों से भी बात करता रहूं, तो भी रोजाना दो जोड़ी शूज बना लेता हूं। शू मेकिंग का ए टू जेड काम इसी दुकान में करता हूं।
कैनवास शूज, स्पोर्ट्स शूज के दौर में लेदर के शूज की मांग क्या कम हो गई है, पर शिव कुमार बताते हैं, ऐसा नहीं है। आफिस और पार्टी वियर शूज तो लेदर के ही हैं।
उनका कहना है, हर व्यक्ति को कोई न कोई काम सीखना चाहिए। कौशल विकास से ही आजीविका की राह खुलती है।
शिवकुमार कई वर्ष तक हरिद्वार से डोईवाला ट्रेन से आते जाते रहे। अब यहीं अपना मकान बनाया है।
बताते हैं, वो घर परिवार की जिम्मेदारियों को खुशी खुशी संभालने लायक कमा लेते हैं।