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Web Story: हजारों साल की यात्रा करके आपके पास पहुंचा यह पेन

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कलम का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। पूरे इतिहास में, विभिन्न संस्कृतियों और सभ्यताओं ने अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न प्रकार के लेखन उपकरण विकसित किए हैं।

जानकारी के अनुसार, सबसे पहले नरकट (बेंत) और बांस के तनों की कलमें बनाई जाती थीं। प्राचीन मिस्रवासी पपीरस पर लिखने के लिए रीड ब्रश का उपयोग करते थे, जो पपीरस पौधे से बना कागज का एक रूप है। प्राचीन यूनानियों और रोमन ने भी पक्षियों के पंखों से बने कलमों का उपयोग किया था।

प्राचीन और मध्यकाल में रीड पेन का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता था। इनको सूखे ईख या बांस को काटकर बनाया जाता था। रीड पेन मध्य पूर्व और एशिया सहित विभिन्न संस्कृतियों में लोकप्रिय थे। वे पपीरस या ताड़ के पत्तों जैसी सामग्रियों पर लिखने के लिए विशेष रूप से उपयुक्त थे।

पक्षियों के पंख लिखने के लिए पेन के रूप में सदियों तक लोकप्रिय रहे, मध्ययुगीन और पुनर्जागरण काल के दौरान यूरोपीय शास्त्रियों और विद्वानों ने उनका उपयोग किया। ये गीज़ या हंस जैसे बड़े पक्षियों के पंख थे।

फाउंटेन पेन के आविष्कार ने पेन प्रौद्योगिकी में एक महत्वपूर्ण प्रगति को चिह्नित किया। सबसे पहला फाउंटेन पेन 17वीं सदी का है, लेकिन आधुनिक फाउंटेन पेन 19वीं सदी की शुरुआत में विकसित किया गया था।

फाउंटेन पेन में स्याही भरी जाती इससे पेन को स्याही के लिए बार-बार दवात में डुबाने की जरूरत नहीं होती।

हंगेरियन-अर्जेंटीना के पत्रकार लास्ज़लो बिरो ने 1930 के दशक के अंत में बॉलपॉइंट पेन का आविष्कार किया था। उनके डिज़ाइन में एक छोटी सी बॉल बेयरिंग का उपयोग किया गया था, जो कागज पर लुढ़कती थी और स्याही फेंकती थी। बॉलपॉइंट पेन ने अपनी विश्वसनीयता, ज्यादा चलने और विभिन्न सतहों पर लिखने की क्षमता के कारण लोकप्रियता हासिल की। रोजमर्रा के उपयोग के लिए ये विशेष रूप से उपयुक्त हैं।

20वीं शताब्दी में रोलरबॉल और जेल पेन ने विभिन्न प्रकार की स्याही और तंत्र का उपयोग करके लेखन की स्थिरता में सुधार किया। रोलरबॉल पेन पानी आधारित या जेल स्याही का उपयोग करते हैं, जबकि पारंपरिक बॉलपॉइंट पेन तेल आधारित स्याही का उपयोग करते हैं।

डिजिटल तकनीक के आगमन के साथ, इलेक्ट्रॉनिक नोट लेने और ड्राइंग के लिए डिजिटल पेन लोकप्रिय हो गए हैं। ये पेन हस्तलिखित या खींची गई सामग्री को कैप्चर और डिजिटल उपकरणों में स्थानांतरित कर सकते हैं।

विभिन्न आवश्यकताओं और रचनात्मक अभिव्यक्तियों को पूरा करने के लिए 3डी प्रिंटिंग पेन, स्मार्ट पेन और अन्य जैसे नवाचारों के साथ, पेन तकनीक लगातार विकसित हो रही है। कलम का इतिहास मानव सभ्यता के विकास और संचार उपकरणों के विकास को दर्शाता है। साधारण रीड और क्विल्स से लेकर आज के डिजिटल पेन तक, पेन ने ज्ञान और विचारों को संरक्षित और प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

भारत में कलम सहित लेखन उपकरणों का इतिहास देश की समृद्ध और विविध सांस्कृतिक विरासत के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। यहां भारत में कलम के इतिहास का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

भारत में पेन का इतिहास

प्राचीन भारत में, लिखने के उपकरण क्षेत्र और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न थे। प्रारंभिक भारतीय लिपियाँ, जैसे ब्राह्मी, अक्सर लेखनी का उपयोग करके ताड़ के पत्तों जैसी सामग्रियों पर अंकित की जाती थीं। ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियाँ प्राचीन काल के महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं।

भारत में भी कलम नरकट या बांस के तने से बनाए जाते थे। इनका उपयोग विभिन्न प्रकार के सुलेख, धार्मिक ग्रंथों और अन्य महत्वपूर्ण लेखन के लिए किया जाता था।

पक्षियों के पंखों, विशेष रूप से हंस के पंखों से बने पेन को भारत में पेश किया गया था। इनका उपयोग पांडुलिपियों में बेहतर लेखन और जटिल विवरण के लिए किया जाता था।

भारत में धातुकर्म (Metal working) का एक लंबा इतिहास है, और पीतल और तांबे जैसी सामग्रियों से बने धातु निब पेन का उपयोग लेखन और सुलेख के लिए किया जाता रहा है। धातु के निब पेन अक्सर सूक्ष्मता से तैयार किए जाते थे और कलात्मक लेखन और शिलालेखों के लिए उपयोग किए जाते थे।

भारत में मुगल काल (16वीं से 18वीं शताब्दी) के दौरान फ़ारसी संस्कृति और सुलेख का महत्वपूर्ण प्रभाव था। इस अवधि में विभिन्न सुलेख शैलियों का विकास हुआ और फ़ारसी लिपि लेखन के लिए रीड पेन सहित विशेष उपकरणों का उपयोग किया गया।

आधुनिक फाउंटेन पेन के उपयोग ने औपनिवेशिक काल के दौरान और 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में लोकप्रियता हासिल की। भारतीय कंपनियों ने 20वीं सदी की शुरुआत में फाउंटेन पेन का निर्माण शुरू किया।

भारत वैश्विक पेन उद्योग में एक महत्वपूर्ण भूमिका में रहा है, जो बॉलपॉइंट, रोलरबॉल और जेल पेन सहित विभिन्न प्रकार के पेन का उत्पादन करता है। आज, भारत में एक संपन्न कलम उद्योग है, और देश अपने लोगों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न प्रकार के लेखन उपकरणों का उत्पादन करता है।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए सौ से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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