Uttarakhand

हिमालय दिवस मनेगा 400 से ज्यादा स्थानों पर

जेपी मैठाणी- हिमालय सदियों से वसुधैवकुटुम्बम की भावना से मानव-जाति के लिए सेवारत रहा है। देवतुल्य हिमालय देश व समाज की सभी प्राकृतिक उत्पादों से सेवा करता रहा है। हिमालय के परोक्ष व अपरोक्ष दोनों ही लाभ हमने भोगे हैं। पानी, हवा, मिटटी, जंगल जैसे हिमालय के उत्पादों ने ही देश की सभ्यता को जन्म दिया है। देवी देवताओं का वास होने के कारण साधु संतों ने इसे तपस्वी स्थल माना और आज भी हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में हर वर्ष देश विदेश से करोड़ों लोग अपनी आस्था के फूल चढाने आते हैं।

प्राकृतिक संसाधनों के इस भण्डार से ही देश के वन और खेत फलते फूलते हैं और साथ ही देश के 65 फीसदी लोगों के हिस्से का पानी भी इसी की देन है। दूसरी और बड़ी बात यह है कि हर पल ली जाने वाली प्राणवायु भी हिमालय की ही बदौलत है। परन्तु हम हिमालय को समझने में चूक कर रहे हैं, इसे मात्र हवा, मिटटी, पानी व बर्फ के ढेर से ज्यादा कुछ समझा नहीं गया। हिमालय के प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन ने त्रासदियों को ही न्यौता दिया है।

हिमालय के बिगड़ते तेवर के संकेत पिछले कुछ वर्षों में हिमालयी राज्यों में आई त्रासदी ने दिए हैं। मतलब साफ़ है कि हिमालय की रक्षा का संकल्प अगर हम भावनाओं में बहकर ना भी करें लेकिन आने वाले महाविनाश की चिंता में तो कर ही सकते हैं। गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी हिमालय दिवस का आयोजन आगामी 9 सितम्बर को तय हुआ है। इस वर्ष हिमालय दिवस का विषय “हिमालय का योगदान व हमारे दायित्व” तय किया गया है।

इस वर्ष हिमालय दिवस पूरे देश में लगभग 400 से ज्यादा स्थानों में जैसे कि जम्मू – कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य-प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, हैदराबाद व उत्तर-पूर्वी राज्यों में मनाया जाएगा। यह भी कोशिश की गई है कि उत्तराखंडी प्रवासी विदेशों में हैं वो भी हिमालय दिवस मनाएं। राज्य सरकार ने इस बार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए यह निर्णय लिया है कि राज्य भर में 1 से 9 सितम्बर तक हिमालय दिवस विभिन्न रूपों में मनाया जाएगा। सरकार ने स्कूलों, कॉलेजों व महाविद्यालयों में भी हिमालय दिवस मनाने की घोषणा की है।

देश के प्रमुख वैज्ञानिक संस्थान जैसे कि वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन जियोलॉजी देहरादून, फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट देहरादून, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पेट्रोलियम देहरादून, आर्यभट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ़ ऑब्जरवेशनल साइंस नैनीताल, जीबी पन्त इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट अल्मोड़ा, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया देहरादून, बीएसआई देहरादून, जेडएसआई देहरादून, फारेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया देहरादून, जीबी पन्त यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी पंतनगर, रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट देहरादून, नाबार्ड देहरादून, एलबीएस नेशनल एकेडमी ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन मसूरी, सेंटर ऑफ़ साइंस ऑफ़ विलेज महाराष्ट्र, सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एंड डेवलपमेंट नई दिल्ली, मध्य प्रदेश विज्ञानं सभा भोपाल, इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंटीग्रेटेड रिसोर्स मेनेजमेंट असम, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मिलेटस रिसर्च हैदराबाद, डिपार्टमेंट ऑफ़ बॉटनी जम्मू यूनिवर्सिटी, आईबीएसडी इम्फाल और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर हिमाचल प्रदेश से भी अनुरोध किया जा चुका है।

हम परिवार की ओर से डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने बताया कि इस बार हिमालय दिवस की विशेषता यह है कि राज्य सरकार ने दो दिवसीय हिमालय मंथन पर गोष्ठी का आयोजन किया है, जिसमे वैज्ञानिक व सामाजिक कार्यकर्ता भागीदारी करेंगे। इस वर्ष (हम) हिमालय यूनिटी मिशन ने हिमालय दिवस पर रैली व विचार गोष्टी का आयोजन किया है। रैली 9 सितम्बर को प्रातः साढ़े दस से साढ़े 11 बजे गाँधी चौक से घंटाघर – दर्शनलाल चौक- लैंसडौन चौक होते हुए होटल डोंगा हाउस तक पहुंचेगी। इसके बाद होटल डोंगा हाउस में 11:30 बजे से दोपहर 2:30 बजे तक विचार गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को विचार गोष्ठी के मुख्य अतिथि का निमंत्रण दिया गया है। इसके साथ ही विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रदेश अध्यक्षों, प्रतिनिधियों एवं उत्तराखंड सरकार के मंत्रियों को विशिष्ट अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है। गोष्ठी में उत्तराखंड के तमाम बुद्धिजीवी, स्वैच्छिक संगठन एवं ग्रामीण भागीदारी करेंगे। इस अवसर पर  डॉ. राकेश कुमार, जेपी मैठाणी, द्वारिका सेमवाल, कुसुम घिल्डियाल, विनोद खाती, प्रेम कंडवाल, मनमोहन नेगी, राजेश रावत, प्रमोद जोशी उपस्थित थे।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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