
हरीश रावत को अपने लिए कुछ नहीं चाहिए, पर बेटे को चुनावी राजनीति में एंट्री मिल जाए
हरिद्वार। न्यूज लाइव डेस्क
“चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह, जाके कछु नहीं चाहिए, वे साहन के साह”
यह दोहा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत ने सोशल मीडिया पर अपनी बात उजागर करते हुए पोस्ट किया है।
वो लिखते हैं, मैं हमेशा खुश रहने का प्रयास करता हूं। जीवन के कठिनतम दौर में भी मुस्कुराहट ने मेरा साथ नहीं छोड़ा, क्योंकि मैंने रहीम के दोहे को अपने जीवन का मार्गदर्शक बना दिया।
पहले इस दोहे का अर्थ जान लेते हैं, जो इस प्रकार है- जिन्हें कुछ पाने की इच्छा नहीं, वो राजाओं के भी राजा होते हैं, क्योंकि जब उन्हें किसी चीज़ की चाह नहीं है, तो कोई चिंता भी नहीं, इसलिए उनका मन भी बेपरवाह होता है।
मैं हमेशा खुश रहने का प्रयास करता हूं। जीवन के कठिनतम दौर में भी मुस्कुराहट ने मेरा साथ नहीं छोड़ा, क्योंकि मैंने रहीम के दोहे को अपने जीवन का मार्गदर्शक बना दिया…
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह,
जिनको कछु न चाहिए, वे साहन के साह॥
कल अर्थात 20 मार्च, 2024 को ..1/2 pic.twitter.com/uM0p70URdq— Harish Rawat (@harishrawatcmuk) March 19, 2024
सवाल उठता है, हर चुनाव सक्रिय रहने वाले हरीश रावत लोकसभा चुनाव 2024 में कुछ पाने की इच्छा नहीं, जैसी बात क्यों कह रहे हैं। वो भी उस समय, जब उनके पुत्र वीरेंद्र रावत हरिद्वार सीट से टिकट पाने के लिए जोर लगा रहे हैं। प्रत्याशी चयन के लिए कांग्रेस की मैराथन बैठक के दौर में कई बार इस तरह की खबरें सामने आईं कि वीरेंद्र रावत का टिकट फाइनल हो गया है, बस अब घोषणा होना बाकी है। इन खबरों में कितनी सच्चाई है, यह तो घोषणा होने पर ही पता चलेगा।
ठीक उस दौर में, जब प्रत्याशी चयन को लेकर बैठक चल रही है, इस पोस्ट को साझा किया गया है। ऐसा भी हो सकता है हरीश रावत अपनी अनिच्छा इस वजह से जता रहे हैं, ताकि उनके समर्थक उन पर चुनाव लड़ने के लिए दबाव बनाएं और भरपूर समर्थन का वादा करें। इस दबाव का असर पार्टी हाईकमान पर भी पड़े। इससे उनके पास अपने लिए या फिर अपने बेटे के लिए टिकट के विकल्प बने रहें।
पोस्ट में हरीश रावत लिखते हैं, धनुष भी है, तूणीर में बाण भी हैं, सामने चुनाव की चुनौती भी है, मगर मैं किम् कर्तव्य मूढ़ता की स्थिति (क्या करें, क्या न करें) में हूं? हैप्पीनेस डे पर आप सबकी शुभकामनाएं शायद मेरी कुछ मदद कर सकें। यह पोस्ट 20 मार्च यानी हैप्पीनेस डे पर पोस्ट किया गया था।
मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया जा रहा है कि हरीश रावत अपने बेटे वीरेंद्र रावत के लिए टिकट मांग रहे हैं।
सवाल यह है कि क्या हरीश रावत राजनीति में अपना और परिवार का दखल बनाए रखना चाहते हैं।
2004 के लोकसभा चुनाव में अल्मोड़ा सीट पर उनकी पत्नी रेणुका रावत चुनाव हारीं।
2009 में हरीश रावत हरिद्वार सीट पर विजयी हुए और केंद्र सरकार में मंत्री रहे।
2014 के चुनाव में पत्नी रेणुका रावत को चुनाव लड़ाया, जो हार गईं। उस समय रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे।
2017 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत हरिद्वार ग्रामीण सीट और किच्छा, दो सीटों पर चुनाव हारे।
2022 के विधानसभा चुनाव में हरिद्वार ग्रामीण सीट पर उनकी बेटी अनुपमा रावत ने जीत हासिल की। जबकि इसी चुनाव में हरीश रावत लालकुआं सीट पर चुनाव हार गए थे।
अब उनके पुत्र वीरेंद्र रावत का नाम हरिद्वार सीट पर प्रत्याशी चयन की दौड़ में शामिल है। यह भी कहा जा रहा है कि रावत चाहते हैं कि वीरेंद्र को हरिद्वार सीट पर प्रत्याशी बनाया जाए।
चुनाव की राजनीति में उनके परिवार का दखल बना रहने की चाह रखने वाले हरीश रावत सोशल मीडिया पर “चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह, जाके कछु नहीं चाहिए, वे साहन के साह” की पोस्ट क्यों कर रहे हैं, इसको उनसे ज्यादा कोई नहीं जान सकता, पर यह तय है कि रावत की पोस्ट एक तीर से कई निशाने वाली होती है। यह बात अलग है कि निशाना सही लगेगा या नहीं।