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अल्मोड़ा के बजेला में स्कूल ने ग्रामीणों संग मनाया हरेला पर्व, पर्यावरण पर प्रतियोगिताएं

अल्मोड़ा। अल्मोड़ा जिला स्थित राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला ने विद्यालय से अलग बजेला सेवित क्षेत्र में समुदाय के साथ हर्षोल्लास से हरेला महोत्सव मनाया। उत्तराखंड की संस्कृति के संरक्षण एवं बाल रचनात्मकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह महोत्सव हर साल उत्साह से मनाया जाता है।

विद्यालय पिछले दो सत्रों से कोरोना महामारी के कारण विपरीत परिस्थितियों को देखते हुए कोविड-19 गाइडलाइन का पालन कर रहा है। इसके तहत यह कार्यक्रम विद्यालय से अलग समुदाय के साथ मिलकर आयोजित किया जा रहा है, जिसमें शिक्षक, विद्यार्थी और ग्रामवासी शामिल हुए।

इस अवसर पर शिक्षक भाष्कर जोशी के निर्देशन में बच्चे मेरा हरेला सबसे न्यारा प्रतियोगिता में शामिल हुए। यह दो टोलियों के बीच प्रतियोगिता थी। बच्चों ने अपना अपना हरेला दस दिन पूर्व ही बो दिया था। कक्षा 5 की छात्रा खुशी खनी की टोली प्रथम आई।

हरेला पर्व पर बच्चों ने चित्रकारी और निबंध लेखन के माध्यम से पर्यावरण के महत्व को बताने तथा पेड़ पौधों के संरक्षण का संदेश दिया। बच्चों ने वृहत दीवार पत्रिका बनाई।

शिक्षक भाष्कर जोशी ने ग्रामीणों को कोरोना से बचाव के लिए ग्रामसभा में शतप्रतिशत टीकाकरण के लिए प्रेरित किया। प्राकृतिक आपदाओं के समय किस प्रकार व्यवहार किया जाए, इस पर जानकारी दी गई।

बच्चों ने रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया और पर्यावरण सुरक्षा को लेकर नुक्कड़ नाटक का मंचन किया। विद्यालय में कोविड-19 गाइड लाइन के अनुसार ही विद्यालय प्रबंधन समिति के साथ विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाए गए।

इस अवसर पर ग्राम प्रधान मनोज सिंह , बीडीसी सदस्य कैलाश प्रसाद ,बिशन सिंह, पान सिंह, दरवान सिंह, गणेश सिंह ,दीपा देवी, माया देवी , कमला देवी ,निर्मला देवी, आनंदी देवी आदि उपस्थित रहे।

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Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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