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उत्तराखंड चुनावः अपने इस सियासी दांव पर चित हुए हरक सिंह

बार-बार अपने कांग्रेस में जाने की अटकलों को हवा दे रहे थे हरक

देहरादून। भाजपा से निष्कासित पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत को उनकी ही रणनीति ने इस स्थिति में पहुंचा दिया कि वो तीन दिन से कांग्रेस का दरवाजा खटखटा रहे हैं और कोई रेस्पांस अभी तक दिखाई नहीं दिया। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के हालिया बयान से तो यही संदेश जाता है कि कांग्रेस में जाने की अटकलों को राजनीतिक दबाव के लिए इस्तेमाल करने वाले हरक सिंह का दांव उल्टा पड़ गया।

मुख्यमंत्री धामी का कहना है,  भाजपा ने उनको (हरक सिंह रावत) तब तक पूरा सम्मान दिया जब तक वह पार्टी के साथ थे। भाजपा ने उनकी खबरें (कांग्रेस में शामिल होने की) सामने आने के बाद निष्कासित करने का फैसला किया। हमने अपना फैसला ले लिया है, अब कांग्रेस को फैसला लेना है।

पहली बात तो यह कि कुछ माह से लगातार हरक सिंह रावत के कांग्रेस में जाने की खबरें, जो सुर्खियां बन रही थीं, उनमें जताई गईं संभावनाएं फिलहाल इस समय तक नजर नहीं आ रही हैं। यदि इनमें कोई संभावना होती तो अभी तक हरक सिंह कांग्रेस में शामिल हो जाते। इसका सीधा मतलब है कि इस तरह की अटकलों को सिर्फ हवा दी जा रही थी। इन अटकलों को हवा कौन दे रहा था, इस बात अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि हरक सिंह रावत ने अपने सोशल मीडिया पर कभी इन खबरों का कोई खंडन नहीं किया था। उन्होंने एक बार भी दावे के साथ सोशल मीडिया पर यह नहीं कहा कि वो कांग्रेस में नहीं जा रहे हैं। इससे साफ है कि वो अपने कांग्रेस में जाने की खबरों को चर्चाओं में रहने देना चाह रहे थे।

दूसरा, कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफे की खबर पर भी हरक सिंह रावत कई घंटे तक चुपी साधे रहे और फिर मुख्यमंत्री के साथ चाय पर चर्चा करते ही दिखे। उस समय उन्होंने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की तारीफों के पुल बांध दिए थे।

इस बार फिर उनके कांग्रेस में शामिल होने की खबरें सामने आईं, जैसा कि सीएम पुष्कर सिंह धामी ने अपने वक्तव्य में कहा है। इस तरह की खबरों से हरक सिंह का दांव उल्टा पड़ गया औऱ उनको भाजपा से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। जैसा कि हरक सिंह स्वयं कह रहे हैं कि सोशल मीडिया पर चले एक मनगढ़ंत समाचार को आधार बनाकर उन्होंने (भाजपा ने) इतना बड़ा निर्णय ले लिया, जबकि मेरे सबसे अच्छे संबंध थे, लेकिन उन्होंने मुझे से बिना बात किए हुए इतना बड़ा निर्णय ले लिया।

अब देखना यह है कि कांग्रेस अपने दरवाजे पर उनको इंतजार कराती है या फिर उनका स्वागत करती है या फिर कोई बात ही नहीं करती।  हालांकि यह राजनीति है इसमें संभावनाएं पल-पल में बदलती रहती हैं और इसी के साथ आशंकाएं भी जन्म लेती रहती हैं।

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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