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लघु कहानीः बेटे के चित्र की नीलामी

एक अमीर आदमी और उसके पुत्र को दुर्लभ पेंटिंग्स संग्रह का शौक था। पिकासो से लेकर सभी मशहूर चित्रकारों के कलेक्शन उनके पास थे। दोनों अक्सर एक साथ बैठते और चित्रकारों के महान कार्यों की प्रशंसा करते थे। बेटा सेना में अफसर था। युद्ध छिड़ने के दौरान एक अन्य सैनिक को बचाते हुए बेटा युद्ध में शहीद हो गया।

पिता को अपने इकलौते पुत्र की मृत्यु का गम था। लगभग एक महीने बाद एक सैनिक बड़ा पैकेज लेकर उनके दरवाजे पर खड़ा था। सैनिक ने कहा- सर, आप मुझे नहीं जानते। मैं वो सैनिक हूं, जिसकी जान बचाने के लिए आपके बेटे ने अपना जीवन बलिदान कर दिया। उस दिन आपके बहादुर बेटे ने कई सैनिकों की जिंदगी बचाई थी। वह मुझे सुरक्षित ले जा रहे थे कि दुश्मन ने फायरिंग कर दिया। बुलेट उनके हृदय में लगी और वह शहीद हो गए। वह अक्सर आपके और चित्रकारी पर चर्चा करते थे।

सैनिक ने उनको पैकेज देते हुए कहा, मुझे पता है कि मैं महान कलाकार नहीं हूं, लेकिन मुझे लगता है कि आप अपने बेटे को यह देना चाहते थे। कृपया आप इसे स्वीकार करें। पिता ने पैकेज खोलकर देखा तो उसमें उनके बेटे का चित्र था, जो सैनिक ने बनाया था। पुत्र का चित्र देखकर उनकी आंखें नम हो गईं। उन्होंने सैनिक को धन्यवाद दिया और चित्र के लिए भुगतान की पेशकश की। सैनिक ने कहा, ओह, नहीं सर, मैं जीवनभर आपके बेटे के बलिदान की कीमत नहीं चुका सकता। मेरी तरफ से यह पेंटिंग आपके लिए उपहार है।

पिता ने बेटे के चित्र को दीवार पर लगा दिया। वह अपने घर पर पेंटिंग देखने आने वाले लोगों को पहले बेटे का चित्र दिखाते। इसके बाद ही महान कलाकारों के बनाए चित्र दिखाते। कुछ महीने बाद पिता की भी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के कुछ महीने बाद उनके आवास पर पेंटिंग्स की नीलामी हुई। दुर्लभ पेंटिंग्स खरीदने का अवसर जानकर कई प्रभावशाली अमीर लोग नीलामी में पहुंचे।

नीलामी के मंच पर बेटे की तस्वीर लगी थी। नीलामी अधिकारी ने बेटे के चित्र की बोली लगानी शुरू की। बार-बार इस पेंटिंग के लिए बोली का आमंत्रण सुनने से वहां मौजूद एक व्यक्ति गुस्से से बोला, इस तस्वीर के लिए बोली कौन लगाएगा। इस पेंटिंग को छोड़ दो, अन्य मशहूर पेंटिंग्स की बात करो। इन सबसे बेपरवाह नीलामी अधिकारी बोली लगाते हुए कहा रहा था, कौन बोली शुरू करेगा।

एक और आवाज आई, हटाओ इस तस्वीर को। कौन खरीदेगा बेटे के चित्र को। अन्य तस्वीरों की बोली लगाओ। नीलामी अधिकारी के बार-बार बेटे की तस्वीर की ही बोली लगाने से नीलामी में पहुंचे लोग गुस्से में आ गए थे। तभी भीड़ में एक बुजुर्ग व्यक्ति ने आवाज लगाई, मैं खरीदना चाहता हूं इस पेंटिंग को। लेकिन मैं बहुत गरीब व्यक्ति हूं। क्या 10 डॉलर में मिलेगी यह पेंटिंग। उस व्यक्ति ने कहा, मैं इस घर में माली था। मेरे पास 10 डॉलर से ज्यादा नहीं हैं।

नीलामी अधिकारी ने कहा, मेरे पास इस पेंटिंग के 10 डॉलर की बोली है। क्या कोई इससे अधिक की बोली लगाएगा। बार-बार बेटे की पेंटिंग नीलामी की बोली पर भीड़ और ज्यादा गुस्से में आ गई। सामने की सीट पर बेटा व्यक्ति चिल्लाते हुए बोला, बंद करो बेटे की पेंटिंग की बोली। थोड़ी ही देर में नीलामी अधिकारी ने माली को बेटे की पेंटिंग सौंपते हुए कहा, यह नीलामी अब यही समाप्त होती है।

भीड़ में से एक और व्यक्ति बोला, क्या अन्य पेंटिंग की बोली नहीं लगाई जाएगी। नीलामी अधिकारी ने कहा, यह नीलामी एक गुप्त शर्त के तहत केवल इसी पेंटिंग के लिए ही लगाई गई थी। इन पेंटिंग और घर के मालिक ने अपनी वसीयत में यह शर्त लिखाई थी कि जो भी नीलामी में उनके बेटे की तस्वीर को खरीदेगा, उसे ही उनकी पूरी संपत्ति दे दी जाए। क्योंकि वह चाहते थे कि उनके बाद उनके बेटे की तस्वीर को भी उसी सम्मान और स्नेह के साथ रखा जाए, जैसा वह रखते थे। नीलामी में आए लोग स्वयं को कोसते हुए यह कहकर वापस जाने लगे कि अगर 20 डॉलर में ही सही बेटे की तस्वीर खरीद लेते तो पूरी संपत्ति पर उनका अधिकार होता। अंततः माली को पूरी संपत्ति सौंप दी गई। (अनुवादित)

 

 

Rajesh Pandey

राजेश पांडेय, देहरादून (उत्तराखंड) के डोईवाला नगर पालिका के निवासी है। पत्रकारिता में  26 वर्ष से अधिक का अनुभव हासिल है। लंबे समय तक हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर बच्चों के बीच कार्य शुरू किया।   बच्चों के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। दो किताबें जंगल में तक धिनाधिन और जिंदगी का तक धिनाधिन के लेखक हैं। इनके प्रकाशन के लिए सही मंच की तलाश जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं।  अपने मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे, जो इन दिनों नहीं चल रहा है। उत्तराखंड के बच्चों, खासकर दूरदराज के इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए डुगडुगी नाम से ई पत्रिका का प्रकाशन किया।  बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहते हैं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता - बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी, मुख्य कार्य- कन्टेंट राइटिंग, एडिटिंग और रिपोर्टिंग

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