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हुनर से स्वरोजगार में गुमानीवाला की महिलाओं ने किया कमाल

पांच स्वयं सहायता समूहों के प्रयास ग्राम संगठन बना रहा है कैंडल सहित कई उत्पाद

राजेश पांडेय। न्यूज लाइव ब्लॉग

ऋषिकेश। ऋषिकेश से लगभग छह किमी. दूर गुमानीवाला में प्रयास ट्रस्ट की संस्थापक प्रभा थपलियाल का आवास, जहां महिलाएं दीपावली के लिए अलग-अलग डिजाइन के दीये और मोमबत्तियां बनाने में जुटी हैं। मोम को पिघलाकर सांचों में ढालना, मोम को दीयों और मिट्टी के गिलास में भरना उतना आसान काम नहीं है, जितना कि हम समझते हैं। महिलाएं पिघले मोम में अपनी पसंद के रंग मिला रही हैं, ताकि उत्पाद कलरफुल हो जाएं।

सभी ने अपने-अपने काम बांटे हैं, कोई मोम पिघला रहा है, कोई उसमें रंग मिला रहा है और किसी का काम सांचों में बत्तियां डालने का है। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कार्य, दीयों पर ब्रश से शानदार कलर करना है। छोटे छोटे दीयों, मटकियों और मिट्टी के गिलास पर आप अपनी कल्पना के डिजाइन बना सकते हैं, रंग भर सकते हैं। तैयार उत्पादों को गिनती करके पैकिंग का काम भी साथ-साथ चल रहा है।

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि ये उत्पाद कहां बिकेंगे, तो उसका भी जवाब है। ये उत्पाद प्रयास ग्राम संगठन अपने आउटलेट पर बिक्री करेगा। महिलाएं इन उत्पादों की अपने स्तर पर बिक्री करेंगी। सोशल मीडिया के माध्यम से इनका प्रचार किया जाएगा। महिलाएं समय-समय पर लगने वाले मेलों में इन उत्पादों की स्टॉल लगाएंगी, जैसा कि अपने बनाए अन्य हैंडीक्राफ्ट के उत्पादों की प्रदर्शनी लगाती रही हैं।

गुमानीवाला में पांच स्वयं सहायता समूहों का एक संगठन है, जिसका नाम है- प्रयास ग्राम संगठन। प्रयास ग्राम संगठन में गुमानीवाला क्षेत्र के शिवशक्ति स्वयं सहायता समूह, आदिदेव स्वयं सहायता समूह , आकृष्ट स्वयं सहायता समूह , प्रकृति स्वयं सहायता समूह, अभय स्वयं सहायता समूह शामिल हैं। इन स्वयं सहायता समूहों में 55 महिला सदस्य हैं।

गुमानीवाला में प्रयास ग्राम संगठन से जुड़े स्वयं सहायता समूह दीवाली की तैयारियां कर रहे हैं। कैंडल बनाने के साथ आकर्षक डिजाइन वाले दीयें भी बना रहे हैं। फोटो- सार्थक पांडेय/newslive24x7.com

प्रयास ग्राम संगठन की अध्यक्ष प्रभा थपलियाल बताती हैं,  “महिलाएं प्राकृतिक रेशे भीमल से टोकरियां, मैट, लैंप, स्लीपर्स, बैग, पहाड़ी नमक, धूपबत्ती, हवन सामग्री, विभिन्न तरह के अचार, ऊनी स्वेटर बुनाई सहित अन्य उत्पाद पहले से ही बना रही हैं।”

“पिछले साल 27 नवंबर में 35 महिलाओं ने कैंडल मेकिंग की ट्रेनिंग (Candle making training) ली थी। ट्रेनिंग के बाद, कैंडल नहीं बना पाए, पर अब दीपावली त्योहार आ रहा है, इसलिए सभी स्वयं सहायता समूहों का फोकस इन दिनों कैंडल मेकिंग पर है। आजीविका मिशन के तहत समूहों को सहायता राशि मिली है।

सभी पांचों समूहों ने दस-दस हजार रुपये इकट्ठे  किए और लगभग 50 हजार रुपये का कच्चा माल लाया गया है। हमें उम्मीद है कि इस कच्चे माल से दीवाली के लिए उत्पादन पूरा हो जाएगा। महिलाएं प्रतिदिन शाम तीन से छह बजे तक मोमबत्तियां और दीये बनाती हैं। ”

गुमानीवाला में प्रयास ग्राम संगठन से जुड़े स्वयं सहायता समूह दीवाली की तैयारियां कर रहे हैं। कैंडल बनाने के साथ आकर्षक डिजाइन वाले दीयें भी बना रहे हैं। फोटो- सार्थक पांडेय/newslive24x7.com

” करीब 20 महिलाएं, जिनमें शशि पंत, सुधा रावत, रूचि तिवाड़ी, प्यारी रावत, रीना भट्ट, कीर्ति अमोली, मीना भट्ट, मीरा भट्ट, सुबोधिनी, बबीता रावत, विजय लक्ष्मी नौटियाल, रूबी आर्य, प्रियंका आदि शामिल हैं, कैंडल व दीये बना रही हैं।

ये महिलाएं इंटरमीडिएट से लेकर ग्रेजुएट व पोस्टग्रेजुएट हैं। हम महिलाओं के कौशल विकास पर फोकस करते हैं। कौशल विकास से आजीविका के स्रोत खुलते हैं।”

प्रभा थपलियाल गुमानीवाला में रहती हैं। महिलाओं को कौशल विकास, आजीविका के लिए प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूह बनाने में योगदान किया है।

गुमानीवाला में प्रयास ग्राम संगठन से जुड़े स्वयं सहायता समूह दीवाली की तैयारियां कर रहे हैं। कैंडल बनाने के साथ आकर्षक डिजाइन वाले दीयें भी बना रहे हैं। फोटो- सार्थक पांडेय/newslive24x7.com

समूह की सदस्य बबीता, जिन्होंने बॉटनी विषय में एम.एससी. की डिग्री हासिल की है, मोमबत्ती बनाने के इस कुटीर उद्योग से जुड़ी हैं। बताती हैं, “महिलाएं मोम, धागा, कलर, चमकी सहित सभी आवश्यक सामान खरीदने सहारनपुर गई थीं। फिलहाल 50 किलो मोम लेकर आए हैं। हमें अभी यह नहीं पता कि उत्तराखंड में मोम कहां मिलता है, इसलिए सहारनपुर जाना पड़ा। हमें ट्रेनिंग में अच्छे मोम की पहचान बताई गई है, यह जानकारी मोम की खरीदारी के वक्त काम आई। पैकिंग मैटिरियल की भी जरूरत होती है। हमारे पास पैकिंग मशीन भी है। कम से कम दस हजार रुपये की लागत से मोमबत्ती बनाने का लघु उद्यम शुरू किया जा सकता है।”

प्रभा बताती हैं, “हमने डिजाइनर एवं सामान्य मोमबत्ती बनाने के सांचे दिल्ली से मंगाए हैं। ये सांचे हमें सहारनपुर में भी नहीं मिले। छोटे सांचे लगभग ढाई से तीन हजार रुपये के हैं। इनसे थोड़ा बड़े सांचों की कीमत पांच हजार रुपये तक है। हमारे सामने उत्पादों की मार्केटिंग की समस्या तो है, पर इसके एक समाधान के रूप में करीब एक माह पहले गुमानीवाला में ही आउटलेट खोला गया है। आउटलेट में महिलाएं हैंडीक्राफ्ट के उत्पाद बिक्री के लिए रखती हैं।”

मीना भट्ट दीयों को रंगों से आकर्षक बना रही हैं। मीना भट्ट ने बीए किया है और उनके पास ग्रेजुएशन में एक विषय चित्रकला भी था। कहती हैं, “मुझे चित्र हो या वस्तुएं उनमें कलर करना अच्छा लगता है। मुझे अपने कॉलेज का समय याद आ गया। यह अच्छा कार्य है, महिलाएं घर पर कैंडिल बनाकर स्वरोजगार से जुड़ सकती हैं।”

गुमानीवाला में प्रयास ग्राम संगठन से जुड़े स्वयं सहायता समूह दीवाली की तैयारियां कर रहे हैं। कैंडल बनाने के साथ आकर्षक डिजाइन वाले दीयें भी बना रहे हैं। फोटो- सार्थक पांडेय/newslive24x7.com

गुमानीवाला निवासी रूचि तिवाड़ी भी ग्रेजुएट हैं। बताती हैं, “जब हमें पता चला कि कैंडल बनाने की ट्रेनिंग दी जाएगी। हम तैयार थे। अच्छा लग रहा है हम सभी एक साथ बैठकर कैंडल बना रहे हैं। हम एक दूसरे से कैंडल के डिजाइन पर आइडिया शेयर करते हैं। कैंडल के कलर पर चर्चा करते हैं। हम सभी ने अपने कार्य बांटे हैं।”

गुमानीवाला में प्रयास ग्राम संगठन से जुड़े स्वयं सहायता समूह दीवाली की तैयारियां कर रहे हैं। कैंडल बनाने के साथ आकर्षक डिजाइन वाले दीयें भी बना रहे हैं। फोटो- सार्थक पांडेय/newslive24x7.com

गुमानीवाला निवासी मीरा भट्ट मोमबत्तियों के सांचों में मोम भर रही हैं। इसके बाद मोम को करीब 15 से 20 मिनट तक ठंडा होने तक सांचों में रखा जाता है। इससे पहले सांचों में धागा यानी बत्तियों को लगाया जाता है। मीरा भट्ट के पास, तैयार मोम से भरे कलर किए गए दीयों, छोटी-छोटी हंडियों, कुल्हड़ों, सामान्य एवं विभिन्न आकृतियों की मोमबत्तियों की पैकिंग करने का भी जिम्मा है। मीरा सभी आइटम्स की गिनती करती हैं और उनकी पैकिंग करती हैं। इसके लिए पैकिंग मशीन इस्तेमाल करती हैं।

गुमानीवाला में प्रयास ग्राम संगठन से जुड़े स्वयं सहायता समूह दीवाली की तैयारियां कर रहे हैं। कैंडल बनाने के साथ आकर्षक डिजाइन वाले दीयें भी बना रहे हैं। फोटो- सार्थक पांडेय/newslive24x7.com

मीरा कहती हैं, “हम उत्पाद की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”

मीरा सभी को गढ़वाली गीत भी सुनाती हैं।

बबीता बताती हैं, “अभी हम पहली बार कैंडल बना रहे हैं। बिक्री का ज्यादा अंदाजा नहीं है, पर बिक्री हमारे उत्पाद की क्वालिटी एवं मार्केटिंग पर निर्भर करती है। पर, हमें विश्वास है कि उत्पाद की क्वालिटी बहुत शानदार है। एक-एक प्रोडक्ट बहुत मेहनत और लगन से बनाया गया है।”

संगठन की अध्यक्ष प्रभा थपलियाल और बबीता सहित सभी महिलाएं, लोगों से दीपावली पर स्वयं सहायता समूहों द्वारा बनाए गए उत्पादों की खरीद करने की अपील करते हैं।

डुग डुगी यू ट्यूब चैनल की तरफ से भी दीवाली पर प्रयास ग्राम संगठन द्वारा बनाए गए उत्पादों की खरीदारी करने की अपील की जाती है। इस खरीद से आप महिलाओं द्वारा स्थापित कुटीर उद्योग को प्रोत्साहित कर सकेंगे।

Rajesh Pandey

उत्तराखंड के देहरादून जिला अंतर्गत डोईवाला नगर पालिका का रहने वाला हूं। 1996 से पत्रकारिता का छात्र हूं। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश आज भी जारी है। लगभग 20 साल हिन्दी समाचार पत्रों अमर उजाला, दैनिक जागरण व हिन्दुस्तान में नौकरी की, जिनमें रिपोर्टिंग और एडिटिंग की जिम्मेदारी संभाली। 2016 में हिन्दुस्तान से मुख्य उप संपादक के पद से त्यागपत्र देकर मानव भारती संस्था में सेवाएं शुरू कीं, जहां बच्चों के बीच काम करने का अवसर मिला। संस्था के सचिव डॉ. हिमांशु शेखर जी ने पर्यावरण तथा अपने आसपास होने वाली घटनाओं को सरल भाषा में कहानियों के माध्यम से प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया। बच्चों सहित हर आयु वर्ग के लिए 60 से अधिक कहानियां एवं कविताएं लिखी हैं। स्कूलों एवं संस्थाओं के माध्यम से बच्चों के बीच जाकर उनको कहानियां सुनाने का सिलसिला आज भी जारी है। बच्चों को कहानियां सुनाने, उनसे बातें करने, कुछ उनको सुनने और कुछ अपनी सुनाना पसंद है। रुद्रप्रयाग के खड़पतियाखाल स्थित मानव भारती संस्था की पहल सामुदायिक रेडियो ‘रेडियो केदार’ के लिए काम करने के दौरान पहाड़ के गांवों की अनकही कहानियां लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया। सामुदायिक जुड़ाव के लिए गांवों में जाकर लोगों से संवाद करना, विभिन्न मुद्दों पर उनको जागरूक करना, कुछ अपनी कहना और बहुत सारी बातें उनकी सुनना अच्छा लगता है। ऋषिकेश में महिला कीर्तन मंडलियों के माध्यम के स्वच्छता का संदेश देने की पहल की। छह माह ढालवाला, जिला टिहरी गढ़वाल स्थित रेडियो ऋषिकेश में सेवाएं प्रदान कीं। जब भी समय मिलता है, अपने मित्र मोहित उनियाल व गजेंद्र रमोला के साथ पहाड़ के गांवों की यात्राएं करता हूं। ‘डुगडुगी’ नाम से एक पहल के जरिये, हम पहाड़ के विपरीत परिस्थितियों वाले गांवों की, खासकर महिलाओं के अथक परिश्रम की कहानियां सुनाना चाहते हैं। वर्तमान में, गांवों की आर्थिकी में खेतीबाड़ी और पशुपालन के योगदान को समझना चाहते हैं। बदलते मौसम और जंगली जीवों के हमलों से सूनी पड़ी खेती, संसाधनों के अभाव में खाली होते गांवों की पीड़ा को सामने लाने चाहते हैं। मित्र मोहित उनियाल के साथ, बच्चों के लिए ‘डुगडुगी’ नाम से प्रतिदिन डेढ़ घंटे के निशुल्क स्कूल का संचालन किया। इसमें स्कूल जाने और नहीं जाने वाले बच्चे पढ़ते थे। यह स्कूल फिलहाल संचालित नहीं हो रहा है। इसे फिर से शुरू करेंगे, ऐसी उम्मीद है। बाकी जिंदगी की जी खोलकर जीना चाहता हूं, ताकि बाद में ऐसा न लगे कि मैं तो जीया ही नहीं। शैक्षणिक योग्यता: बी.एससी (पीसीएम), पत्रकारिता स्नातक और एलएलबी वर्तमान में मानव भारती संस्था, देहरादून में सेवारत संपर्क कर सकते हैं: प्रेमनगर बाजार, डोईवाला जिला- देहरादून, उत्तराखंड-248140 राजेश पांडेय Email: rajeshpandeydw@gmail.com Phone: +91 9760097344

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