प्रकृति के साथ जीने के लिए मिट्टी, पानी और इको सिस्टम से संतुलित व्यवहार पर जोर
इंडियन एसोसिएशन ऑफ सॉयल एंड वाटर कंजर्वेशनिस्ट के राष्ट्रीय सम्मेलन (LNSWSEC-2024) ने खास मुद्दों पर ध्यान दिलाया
देहरादून। न्यूज लाइव
प्रकृति के साथ जीने पर जोर देते हुए इंडियन एसोसिएशन ऑफ सॉयल एंड वाटर कंजर्वेशनिस्ट का देहरादून में तीन दिन का राष्ट्रीय सम्मेलन (LNSWSEC-2024) मिट्टी और जल प्रबंधन, पारिस्थितिकी तंत्र से संतुलित व्यवहार और कृषि से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा के साथ संपन्न हो गया। सम्मेलन में शामिल देश विदेश से आए विशेषज्ञों ने प्रकृति से आजीविका के संसाधनों के दोहन को संतुलित करने के तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया।
आईसीएआर-आईआईएसडब्ल्यूसी के निदेशक डॉ. एम. मधु ने अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान (आईडब्ल्यूएमआई), नई दिल्ली द्वारा आयोजित कृषि पारिस्थितिकीय विश्लेषण और परंपराओं पर विशेष सत्र की अध्यक्षता की। उनके साथ, आईआईएसडब्ल्यूसी कोटा के क्षेत्रीय केंद्र के प्रमुख डॉ. साकिर अली और आईडब्ल्यूएमआई के डॉ. गोपाल कुमार भी शामिल हुए, जिन्होंने सत्र के सह-अध्यक्ष और संयोजक की भूमिका निभाई।
आईआईएसडब्ल्यूसी के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एम. मुरुगानंदम ने पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, खाद्य उत्पादन और आजीविका को बनाए रखने में आर्द्रभूमि के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने आर्द्रभूमि के निरंतर नुकसान को रेखांकित किया और प्रभावी नीति बनाने, सामुदायिक सहभागिता और संरक्षण एजेंसियों के सहयोग पर जोर दिया।
आईएसीआर-आईआईएफएसआर, मोदीपुरम के परियोजना समन्वयक डॉ. रविशंकर ने कृषि पारिस्थितिकीय संक्रमणों के मुख्य चालक के रूप में एकीकृत खेती प्रणाली पर चर्चा की।
आईडब्ल्यूएमआई के डॉ. गोपाल कुमार ने सत्र की शुरुआत की और कृषि पारिस्थितिकी तंत्र विश्लेषण की विशेषताओं पर चर्चा की। डॉ. डी.आर. सेना ने नागरिक विज्ञान की संभावनाओं पर बात की, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों, मिट्टी, और जल संसाधनों का व्यापक क्षेत्रों और लंबी अवधि में प्रबंधन शामिल है।
आईएफपीआरआई की अनुसंधान अधिकारी सोनाली सिंह ने कृषि पारिस्थितिकी के संदर्भ में सामाजिक समावेशन और लैंगिक समानता पर बात की। डॉ. त्रिशा रे ने खाद्य उत्पादन प्रणालियों में विविधता की आवश्यकता पर जानकारी दी।
एक अन्य सत्र में, आईसीएआर-आईआईएफएसआर, मोदीपुरम के निदेशक डॉ. सुनील कुमार की अध्यक्षता में, आईसीएआर-आईएआरआई, नई दिल्ली के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. रंजन भट्टाचार्य को संयोजक और आईसीएआर-आईएआरआई, नई दिल्ली में मृदा विज्ञान और कृषि रसायन विज्ञान के प्रमुख डॉ. देबाशीष मंडल को सह-अध्यक्ष के रूप में शामिल किया गया, जहाँ कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की गई।
आईआईटी रुड़की के जल विज्ञान विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. सुमित सेन ने स्प्रिंगशेड प्रबंधन पर बात की।
डॉ. रंजन भट्टाचार्य ने स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं पर प्रकाश डाला।
दून के जलागम प्रबंधन निदेशालय की परियोजना निदेशक, आईएफएस नीना ग्रेवाल ने जलागम प्रबंधन रणनीतियों पर विस्तृत जानकारी दी।
तीसरे सत्र में, आईआईएसडब्ल्यूसी कोरापुट क्षेत्रीय केंद्र के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. पी राजा को संयोजक, पूर्व प्रमुख, आईआईएसडब्ल्यूसी, कोटा के डॉ. राजीव सिंह को अध्यक्ष, और एमेरिटस वैज्ञानिक डॉ. एसके दुबे को सह-अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।
प्रोफेसर सांगु अंगडी, प्लांट एनवायरमेंटल साइंस विभाग, न्यू मैक्सिको स्टेट यूनिवर्सिटी, डॉ. राजीव पांडे, प्रमुख और वैज्ञानिक, एफ, आईसीएफआरई, देहरादून और डॉ. सुसमा सुधिश्री, आईएआर, नई दिल्ली ने पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और जलवायु प्रतिरोध पर प्रेजेंटेशन दिया।
शनिवार को सम्मेलन में 40 से अधिक प्रेजेंटेशन और 50 पोस्टर प्रस्तुत किए गए, जिनमें मृदा और जल संरक्षण, मृदा जैविक कार्बन प्रबंधन, और सतत जलागम प्रबंधन पर व्यापक शोध और अंतर्दृष्टियाँ प्रदर्शित की गईं। इस विशेषज्ञों की सभा ने प्रकृति और आजीविका दोनों को लाभान्वित करने वाले सतत प्रथाओं को बढ़ावा देने में सहयोगात्मक प्रयासों के महत्व को रेखांकित किया।
तीन दिवसीय कान्फ्रेंस स्थल हिमालयन कलचरल सेंटर में 20 से अधिक विभागों और संस्थानों ने स्टॉल लगाए, जिनमें अपने कार्यों, सेवाओं और उत्पादों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।
समापन अवसर पर मुख्य अतिथि भूमि संसाधन विभाग में वरिष्ठ अपर आयुक्त डॉ. सीपी रेड्डी, विशिष्ट अतिथि ग्रामीण विकास मंत्रालय में डिप्टी एडवायजर डॉ. मुएन गुइटे, International Bamboo and Rattan Organisation (INBAR) की Regional Director, South Asia Dr. Sangeeta Agasty ने विभागों और संस्थानों के प्रतिनिधियों तथा सर्वश्रेष्ठ प्रेजेंटेशन के लिए वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों को सम्मानित किया गया।